पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४९

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उतारना ५६ उतावली साथ उतार जा । १४ जन्म देना । उत्पन्न करना । उ०- उताल’--क्रि० वि० [प्रा० उत्ताल, जल्बी, शत्र] जल्दी । शीघ्र । दियो शाप भारी, बात सुनी न इमारी, घटि कुल में उतारी, उ०---( क ) कहै न जाइ उताल जहाँ भूपति तिहारो । हौं देह सोई याको जानिए |---प्रिया (शब्द॰) । १५ किसी ऐसी व दावन चद्र कहा कोउ करे हमारो ? |-- सूर (शब्द॰) । (ख) वस्तु का तैयार करना जो सुत या उसी प्रकार की और किसी कहैं घाय मिनाय के प्राव उतात तू गाय गोपाल की गाइने अखड सामग्री के बरावर वैठाते जाने से तैयार हो । सुई तागे मे --रघुनाथ (शब्द०) । (ग) सो राजा जो अंगमन पहुँचे सुर ग्रादि मे बनने वाली चीजो का तैयार करना । जैसे, जुलाहे ने सु भवन उताल ---सूर०, १० । २२३ । कल चार थान उतारे । १६. ऐसी वस्तु का तैयार करना जो उताल -सुज्ञा स्त्री० शीघ्रता । जल्दी । उ०---(क) ज्यौं ज्यौं अवति खराद, साँचे या चाक अादि पर चढाकर बनाई जाय । जैसे, निकट निसि त्यौं त्यौं खरी उताल, झमक झमकि टहल चाक पर से वरतन उतारना, कालिद पर से टोरी उतारनt.। कर लगी रहचटै वाल 1---विहारी र०, दो ५४३ । (ख) उ०--(क) कुम्हार के दिन भर में १०० हँडियां उतारी। (ख) कहै शिव कवि दबि काहे को रही है बाम, धामि ते पसीना भयो केशोदास कुदन के कोश ते प्रकाशमान चिंतामणि ग्रोपनी सों ताको सियराय ले, वात कहिवे में नदलाल की उताल कहा ? अपि के उतारी सी । (शब्द०)। १७ वाजे अादि को कसन हाल तो, हरिननैनी ! हफन मिटाय ले |---शिव (शब्द॰) । को ढीला करना । जैसे, सितार और ढोल को उतार- उताली ' ताली (@t-सज्ञा स्त्री० । सुज्ञा स्त्री० [हिं० उतील] शीघ्रता । जल्दी । उतावली । कर रख दो ।—केशव ( व्दि०)। १८. भभके से खीचकर चपलता । फुर्ती । उ०--गोपी ग्वाल माली जुरे पुस में कहैं तैयार करना । खौलते पानी में किसी वस्तु का सार उतारना। अली कोऊ जसुदा के चौतरयो जो इद्रजाली है, कहै पदमाकर जैसे, (क) वह शरावे उतारता है। (ख) हम कुसुम का स्ग कर को यौं उताली जापै रहन न पावै कहू' एको फन खाली है। अच्छी तरह उतार लेते हैं । १६. शतरज भे प्यादे को बढ़ाकर --पद्माकर ग्र०, पृ० २३१ ।। कोई वे इ मोहरा बनाना । २ स्त्री का सभोग करना । उतालो-क्रि० वि० शीता के साथ। जल्दी से । उ०—सि कहू ( अशिष्टो की भाषा )। २१ तौल में पूरा कर देना । जैसे, कढि माली गयो गई ताहि मनावन सासु उताली - पद्माकर वह तौल में सैर का सेवा सेर उतार देता है । ३२ अाग पर ग्रं॰, पृ० १६१ ।। ३ढाई जानेवाली वस्तु का पककर तैयार करना । जैसे, पूरी उतावल- -क्रि० वि० [प्रा० उत्ताउल] जल्दी जल्दी । शीघ्रता से उतारना । पाग उतारना । उ०- ( क ) कौउ गावत को बैनु धजावत कोऊ उतावल सयो०क्रि० -डालना - देन- -लेना । धावत । हरिदर्शन की असा कारन विविध मुदित सव मावत । उतारना.-क्रि० स० [ स० उत्तारण ] पार ले जाना । नदी नाले के सुर०, १०१४२८२ ( ख ) मोको थी गोकुल उतावल ही पार पहचाना। उ०-वर तीर मार लखनु पै जब लगि ने पाय जातो है --दो सौ बावन॰, भा॰ १, पृ० ४४। पन्छनि हौं। तब लगि न तुलसीदास नाथ कृपालु पार उतावली --वि० दे० 'उतावला' । उतारिहौं ।--मानस, २।१००! उतावला- वि० [प्रा० उत्ताबल+ग्रा (प्रत्य०)] [स्त्री० उतावली उतारा' -सच्चा मुं० [हिं० उतरना ] १ डेरा डालने या टिकाने का। १ जल्दी मचानेवाला । जिसे जल्दी हो । जल्दवाज । कायं । 3०-बाग ही मै पथिक उतरी होत अायो है ।-दुलह चंचल । उ०—(क) पानी हू ते पात । ६ प्र ( शब्द०)। २ उतरने का स्थान । पहाव। उ०-गरजते क्रोध हू ते झीन, पवन लोभ कौ नारी, सूझत कहूँ न उतारौ !-सुर० १२०६। वेग उतावला दोस्त कबीर कीन । ३ नदी पार करने की क्रिया ।। -कबीर (शब्द॰) । अरे मन, तू उतावना न हो, यौ०.-उतारे की झोपडा= सराय। धर्मशाला । धीरज घर, तेरे हित की अनसूया पूछ रही है ।-शकुंतला, उतारा--सम्रा पुं० [हिं० उतारना ] १ प्रेतबाधा या रोग की शाति १० २० । ८. व्यग्र ! घवराया हुअा। उत्सुक । उ०—या जाने उतावला होकर जी बहलाने के लिये उसने बाजे में फुजी दे के लिये किसी व्यक्ति के शरीर के चारो और खाने पीने आदि को कुछ सामग्री को घुमाक़र चौराहे या और किसी स्थान रखी हो ।-अयोध्या (शब्द॰) । उतावलिः --संज्ञा स्त्री० [हिं० 1 दे० 'उत्तीवली' । उ०-सो पर रखना। उ०• •कह रूसत रोवत नहि सोवत रगवाये न जनेऊ तौरि के बुहारि उतावलि गो वाँधी ---खो सौ बावन०, रगाही, घी के तुला करावहि जननी विविध उतार काहीं । ---रघुराज (शब्द॰) । - भा॰ २, पृ० ८५ । क्रि० प्र०---उतारना ।---करना । उतावली संज्ञा स्त्री० [ प्रा० उत्तावल--- (प्रत्य) ] १. जल्दी । २. उतारे की सामग्री या वस्तु । शीघ्रता । जल्दबाजी । हुडवडी । उ०-(क) वसने शुक्र तनया उतारू--[ हि० उतरना ] उद्यत । तत्सर । सन्नद्धे । तैयार । मुस्तैद । के लीन्है, करत उतावलि परे न चीन्हे ।-पूर०, ९ । १७४। जैसे, इतनी ही सी बात के लिये वे मारने पर उतारू हुए। (a) उनको कई तीर्थों में जाना है इसलिये वह उतावली कर क्र० प्र० --करना |---होना । रहे हैं । अयोध्या शब्द० । २ व्यग्रता । चचलता। उतारू.-सी पुं० [ हि० -7 मुसाफिर ---(लश०) । उतावली--वि० स्त्री० जिसे जल्दी हो । जी जल्दी में हो। शीघ्रता २-५ करनेवाली । उ०--तवहि गई में व्रज उतावली आई ग्वाल रखना होकर जी बहलाव हुआ। उत्सुक कसी स्थान