पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४८९

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कुलाले ३००१७ कुलीन । पुलान-मडा पुं० [सं० तुल फॉ० कुलाल] [ला० कुलाली १ मिट्टी निषिद्ध समझा जाता है । 5 कैकई । कर्क : ९ स्वजन । के बरतन बनानेत्रना। कुम्हार । उ०—जैसे चक्र कुला परिजन (को०) । १० आवेदिक । शिकारी (को॰) । का फिरता बहु दसै । और छोड़ि कतई न गया वह विसव' कुनिय-सृष्ट्वा पुं० [१०] करज 1 नख [को॰) । वीतं -सु दर० ३०, भा० २ पृ० ८६४ । कुलिया–सच्चा ली० [हिं॰] दे॰ 'कोन्डिया'! यो०- कुलाले घ= कुम्हार का चाक । कुलिर-सज्ञा पुं० [सं०] केक।। ३ कर्क राशि [ये । ३ जगन्नी मु । ३. 'उलूक । उल्लू । कुलिश--सज्ञा पुं० [सं०] १ हीरा । उ०—माणिक मर्कत कुलिश कुलालिका-- ओ० [सं०] चिडियाखाना ।। पिरोजा। चीर कोरि पच रचे सरोजा ---- तुलसी (शब्द॰) । कुलालो'-- श्री० [पुं०] १ कुम्हार की स्त्री । कुम्हारिन ।२ २ बुन्न । विजली । गाज। चिल्ली । उ०—भयो कुलाहल कुम्हार जाति की स्त्री। ३ अजन या सुरभे में प्रयुक्त होने वा । । अवध अति, सुनि नृप राउर सोर। विपुले विहंग वन परयो एक प्रकार की नीला पत्थर (को॰) । विधि, मानो कुलिस कठोर तुती (शब्द॰) । ३ कुलाली -सच्चा छौस० फ६पाली लाने की स्की । कलाली । ईश्वरावतार राम, कृष्णादि के चरणों का एक चिह्न, जो फलारिन । उ०——भरि भरि प्याला देत कुनाली वाढ भक्ति । वैज्र के प्रकार का माना जाता है। उ०—अरुण चरण | मारा t--वरण वानी, पृ० १७१।। अकुशध्वज, कंजू कुलिश चिह्न चिर, भ्राजत अति नपुर वर कुल्लाली-- ज्ञा स्त्री॰ [देश॰] दूरवीन ।--(डि०) । मधुर मुखरकारी ।—तुलसी (शब्द॰) । कुनाह-संज्ञा पुं० [सं०] भूरे रंग का घोड़ा, जिसके पैर गाँठ से सुमो यौ--कुलिशघर = वज्रधर । इद्र ।। तक काले हो । ४ कुठार। ५. एक प्रकार की मछली । कुलह-सज्ञा स्त्री॰ [फा०] १ एक प्रकार की ऊची टोपी जो फारस कुलिश्कर--सज्ञा पुं० [अ०] दे० 'कुलिशधर' (को॰] । और अफगानिस्तान आदि ने पहनी जाती है। उ०-खडा रहे कुलिशवर-सच्चा पुं० [सं०] इंद्र। सुरज । दरवार तुम्हारे, ज्यों घर का चंदाजादा । नेकी की कुनाह सिर कुलिशपाणि-सच्चा पुं० [सं०] दे० 'कुलिशधर' । दीये, पले पैरहुन सृजा ।—सतवाणी, भा॰ २,१० १०३) कुलिशनायक- सज्ञा पु० [सं०] एक प्रकारे का रविवध [को०] । २ ताज ! मुकुट (को०) । टो (को०)। " : कुलिशासन-संज्ञा पुं० [सं०] बुद्धदेव का एक नाम । लाहुक - संज्ञा पुं० [सं०1 गिरगिट ककवाक । प्रतिनको । कुलिशो-संज्ञा स्त्री॰ [सं०] एक वेदोक्त नदी जो अाकाश के मध्य में कुलाहलपु---सच्ची पु० [सं० कोलाहल] दे॰ 'कोलाहल' 1 उ०-पुस | मानी जाती है । म सब करत कुनाहन धौ धमरि घनु बुलाए --पुर० कुलिस-सच्ची पुं० [सं० फुलिश] वच्च । कुलिश । उ०——ोटि कुलिस १०1४४७ ।। । सम वचनु तुम्हारा । व्यर्थ घरह धनु वान कुठारा। कुलिग'—सा पु० [सं० कुलिङ्ग] १.एक प्रकार का पक्षी । २ । मानस, १।२७३ । विड । गौरा ३.पशी चिड़ियr। ४ काकड़ा । सींगी 1 ५. कुलीजन-सक्षा पु० [हिं॰] दे॰ 'कुल जन'। एक प्रकार की सर्प (को०)। ६ एक किस्म का चहा (को०)।७. कुलो'--संघा, पुं० [तु०] १ बोझ ढोनेवाला । मजदुर । मोटिया। भूमिककूष्माड । मुई कुम्हडा (को०) ६ हाय । मतगज (को०)। २ गुलाम (को०)। कुलग’---सवा स्त्री॰ एक नदी का नाम । | यौ०--कुली फवारी-छोटी जाति के लोग । कुलग--वि० बुरे लिंग का । कु लोसा पु० [सं० कुलिन्] १.सप्त कुलपर्वतों में से एक । १. लिगक--सा पुं० [स० कुलिङ्गको चिढ़ा । गौरा । पक्षी । चटक ।। | पृवंत [क]। कलिजुनसय पुं० [अ० कुलञ्चन ! ३० कुलजन' । | कूली—सच्चा बी० [सं०] १. बडों साली पत्नी की बड़ी बहन । २. कुलदै सुज्ञा पुं० [पुं० कुलिन्द] १ एक प्राचीन देश जो उत्तर भटकट या को०] । पश्चिम भारत में या । कृनिद । २ उक्त देश का निवासी । कूली--वि० [सं० लिन् कुलीन । कुलवाले । ऊचे वश में उत्पन्न । ३ उक्त देश को राजा ।। जैसे,--कुली छतीस= छत्तीस कुलवाले । ल'--वि० [हिं०] दे॰ 'कुन' उ००-त्रिविध दोष दुख दारिद । कुलीन'-वि० कलीन-वि० [सं] [सच्चा कुलीनता] १ उत्तम कुल मे लुत्पन्न । दावन । कलि कुचालि फुलि कलुप नसावन ।—मानस १५३५ । अच्छे घराचे का। खानदानी । २ पवित्र । शुद्ध। साफ । कुल-सा पुं० [सं०] १ हथि । हस्त । कर । २ भटकढ़या को०] । उ.---गंग जो निरल नीर कुतीना । नार मिले जल होइ 3लक-सज्ञा पु० [सं०] १. शिल्पकार । दस्तकार) कारीगर । २ मलना ।—जायसी (शब्द०)। चामे वश में उत्पन्न पुष्प । ३. अाठ महानगो में से एक । कुलीन-सम्रा पु० [सं०] १. एक प्रकार के वेलीं ब्राह्मण, जो उन जाति या पुचि ब्राह्मणी की संतान हैं, जिन्हें पंचड़ के महाराज आदि कुन का प्रधान पुरुप ७ ज्योविप में दिन और रात का शुर अपने राज्य में साग्निक ब्राह्मण न होने के कारण, आठवीं कुछ निश्चित अशु, जो यात्रा या अन्य शुभ कर्मों के लिये । शताब्दी के प्रारंभ में काशी से अपने साध ले गए थे।