पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४८५

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कुलतिलक सिंवा जूस चद सो चंद कियो छवि छीनो --मुपण ग्र०, कुलझान -सा बौ० [हिं०] दे० 'कुलझानि' । उ०—३ न त पृ० ४६ । ताके सुने र इदै कुनझान --स० वप्तक, पृ० १८८t : कुलचा- सी पुं० [फा० कलीच १ एक प्रकार की खमीरी रोटी, कुत्रकानि-बुझा दी० [ मु० फुल + हि० कान= मर्यादा ] कुत्र की जो खूव फूली होती है। २ तवू या खेमे के डंडे के ऊपर का मया । कर की लज्जा । उ०--छुटेउ लाज इगरिया मी गोल लट्टू । ३ छिपाकर इकट्ठा किया हुआ रुपया। कुलकानि । कुरत जात अपरयुवा परि गई वानि |-- कुलच्छन—सा पुं० वि० [हिं॰] दे० 'क्षण' । रहीम { शब्द०)। कुलुच्टनी- सच्चा पुं० [हिं०] दे॰ 'कुलक्षणी' । दुलको सङ्ख्या ४० [३०] चिरम । कूलच्छनी-सा स्त्री० [हिं॰] दे० 'कुलक्षणी' । उ॰—(क) बेहतर कुलकुंडलिनी श्री० [मु०] नेत्र के अनुसार एक शक्ति जिसका। | यह है कि राजा से कहिए, यह कुनच्छनी है, अापके योग ममग्र असार एक अज हैं। इनकी महिमा ‘प्रकृति' या शक्ति नहीं 1---लल्लू ( शब्द०)' ( ख ) पति को दुख देखनेवानी के नाम कही जाती है और इम की उपासना होती है । मैं कुच्छनी सती हू-लक्ष्मण सिंह (शब्द०)। कुलकुल-सहा पुं० ]अनु०] पक्षियों की मधुर पनि । उ०—वृगकुञ्ज कुलज-सुवा पु० [सं०] {बी० कलज] १ उत्तम वश में उत्पन्न । लकु? दोन रहृ :-- , पृ० -१६ । कुत्रीनं। २. परवल । परो । कुनकुल- सा पु० [ य०;] योनल वा सुराहो से मदिर! या जल कुलजन-ज्ञा पुं० [सं०] सुत्कुलोन्पन्न प्रवित । कुलीन जुन (को०)। किराने के समय होने वाली प्राइज कौ । कुलजा--मुछा स्त्री० दश॰] एक प्रकार की जपली भेड जो पामीर कुनकुन्नाना - मि० अ० [अनु॰] कुन कुल शुदद करना । ' ' 'ऋौर गिलगित में होती है। यह डील डील में नहीं होती है। मृहा+--अनि कुनकुन्ना = अत्यंत भूध लगना । उ०पेट की कुचकार । अति कुनकुना रही य ।---मेगन दिनी (शब्द०) । । । कुलज' संज्ञा स्त्री० [सं०] कुलवधू ।। ।। विशेष-जब पेट वानी होता है, तब अf से कुनकुल शब्द । कुलजान - वि० [सं०] वश में उत्पन्न । वं शोद्व निना है ।। कुलजावा--सबा खी० [सं०] कुन स्त्री | पतिव्रता [को०] । कुलदुनो-मुच्चा ङ्गी [ अनु० 1 १ कभवनहट । खुजली । २ । कुलुट'- वि० पुं० [सं०] [स्त्री॰ कुल ] वहृत स्त्रियों से प्रेम रखनेदेवनी ।। वाला । व्यभिचारी। देदचलन। उ०—श्याम सखी कारेहू ते कुनकैनु—सा पु० [सं०] कु. में पता के समान श्रेष्ठ । कुल को कारे । ' तव चितचोर भोर व्रजवासिन प्रम नेक ब्रत टारे । लै | यशस्वी वनानेवाला व्यक्ति [को०] ।' सुरवसे नहि मिले मूर प्रभ कहिये कुलट विचारे ।--- कुलक्षण-संज्ञा पुं॰[नं०] १ बुरा लक्षण 1 बुरा चिह्न, २ कुचाल । सुर ( शब्द०)। बदचलनी । कुलक्षण’--वि० [म०] [स्त्री॰ कलक्षण] बरे लक्षणमाला । २, कुलट-सा पुं० [सं०].औरस के अतिरिक्त और किसी प्रकार का , पुत्र । क्षेत्रक, गोलक, दत्तक या क्रीत पुत्र। | दुराचारी ! वाला। कुलटा--वि० सी० [सं०] बहुत पुरुषो से प्रेम देखनेवाली ( श्री) । कुणी -सच्चा पु० [कुलक्षण +ई (प्रत्य॰)] १ बुरे लक्षणेवाला । छिनाल [ बदचलन । व्यभिचारिणी 1 मुश्चली । २. दुराचारी । । पर्या--पुश्चल } स्वैरिणी । पाशुला 1 व्यभिचारिणी । कुलक्षणी–सुझा दौ० १ वृरे लक्षणवाल । २. दुराचारिणी ।। कुलदा-सच्ची बी० [भ] वह परकीया नायिका जो बहुत पुपो से कुलक्षय-नः पुं० [३०] कुन या वश का विनाश (को॰) । | प्रेम रखती हो । लरिमा--सह्य रू० } सं० 1 वंश का' 'गौरव । खानदान की। कुलतंतु---सा पुं० [ १० कुलतन्तु ] वह पुरुप जिसे छोड़ अौर कोई | इज्जउ (को॰) । दूसरा सहारा उसके कुलालों को न हो। कुलगिरि-- सृज्ञा पुं० [सं०] दे॰ 'कुलवंत' (०}} • कुलतारन--वि० [सं० कुल+हि० तारन] [वि० बी० कुलतारनी] कुल 5-5ज्ञा पुं॰ [सं० झुरगुर] दे॰ 'कुलगुई। उ०-वेदविहित | को तारनेवाला । कुल तो पवित्र करनेवाला । उ०—-सुतहिं कुनरीति कीन्ह हुई कुनगुर --तुलसी ग्र०, पृ० ५७। कह्यो तै मो कुनतारन । मोहिंदरसायो बारन तारन !-रघुकुलगुरु-सा पु० [ मु० ] वश या खानदान का गुरु । कुल राज ( शब्द०)। पुरोहित (को०) ! कुला-मुघा • [सं० + हिं० लत] बुरी अदितृ । कुटेव ! लगृह-सचा पुं० [मं०] उच्चवश का भवन । प्रतिदिळत घर । कुलतिथि–सद्या स्त्री० [सं०] प्रसिद्ध चाद्ध दिवस। शुक्ल पक्ष की *घ्ने- वि० [सं०] व श या केतु का नाश करनेवाला (को०)। चतुर्थी, अष्टमी, द्वादशी या चतुर्दशी तिथि (को॰) । कुलचो -सा स्वी० [सं० कुलचग्दी] एक देवी का नाम । न कुलवल -सी पुं० [सं०] वश की प्रति वढानेवाला पुरुष । | वेश का गौरव (को०)। अशित करनेवाला । कुलभूपए । उ०—साहि तने कुलचंद कुलतिले क- वि० कुल की प्रतिष्ठा बढ़ानेवाला । कुल में थे।