पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४८४

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१६२३ कुरी—संज्ञा स्त्री० [ देश० ] १ घुमे । टीना । उ०—हान सो करे कुछ चिह्नअवतक पाए जाते हैं । ऐसी प्रसिद्ध है #ि यहाँ के गोद लैइ बाढ़ा । फुरी दुवौ पैज के काढ़ा--जायसी (शब्द॰) । मम्सर नामक सरोवर में परशुराम ने स्नान करके अपने आप २ ढेर। समूह । उ० -तेइ सुन बोहित कुरी चलाए । तेई सन को क्षत्रिय हत्या के पाप से मुक्त किया था और महाराज पवन पख जनु लाए ।-जयिसी (शब्द॰) ३ कोल्हू । पुरूरवा ने इसी के किनारे बिछडी हुई उर्वशी को फिर से पाया कूरी-सधा स्त्री० [हिं० कुरा = ढेर, भाग] विभाग । खड । दुता। था । चद्र वशी र राजा कुरु इन्हीं सरोवरों में से किसी एक के तट उ०-सीधे हैं कड़े चने, मिली एक एक कुरी।-अर्चना । पर बहुत दिनो तक तप करके गुप्त हुए थे । तभी से इसका पृ० ६४। । नाम धर्म क्षेत्र और कुरुक्षेत्र पड़ा । महाभारत के प्रसिद्ध युद्ध के मुहा०-~-कुरी कुरो हो । = टकड़े टुकड़े होना । उ०-- जाके रूप सिवा इस स्थान पर और भी अनेक बड़े युद्ध हुए थे । पीछे से अागे र भा रति उरबसी, याची ची मान मनका को ह्व गर्यो यही पर स्याणु नामक महादेव की एक मूर्ति स्थापित हुई और कुरी कुरी !-रघुनाय (शब्द॰) । ( थानेसर ) नामक नगर वसा, जहाँ राजा पुप्पमूर्ति ने वर्द्धन कुरीज'—सच्चा पुं० [फा० कुरोज 1 १ चिडिया का सालाना पख नामक राजवंश की प्रतिष्ठा की, जिसमें प्रसिद्ध महाराज गिराना । २ बेत या नरकट की बनी झोपड़ी। हर्षवर्द्धन हुए । ग्रहण, पर्व अदि अवतरो पर अब भी यह कुरीज---वि० परकटी (चिदिया ) । ( वह पक्षी ) जिसके पंख टूट बहुत बड़े बड़े मेले लगते हैं। या गिर गए हों । उ०—इ पिता के पद गहे माँ रोई उर कुरुख-वि० [सं० + फा० रुख ] जो मुंह बनाए हुए हो । नाराज । शेकि । जैसे चिरी कुरीज की त्यौं सुत दसा विलोकि । कुपित । उ०—(क) थकित सुमल दुग अन उनीद कुरुख अर्घ०, पृ० १९ ।। कटाक्ष कृरत मुख थौरी । खजन मृग अकुलात घात र श्याम कुरीति--सा स्त्री० [सं०] १ बुरी रीति । कुप्रथा । २. कुवाल । व्याघ वाधे रति डोरी --सूर (शब्द॰) । ( ख ) मिलतहि कुरीर-सा पुं० [सं०] १ स्त्रियों का शिरोवस्त्र । स्त्रियों के लिये कुरुख चुकत्ता को निरखि कीन्हो सरजा, सुरेस यो दुवित्त सिर का एक पहनावा । कु ब । २ सभोग । रतिक्रिया [को०] । व्रजराज का भूपण ( शब्द०)। कृरु ट--सच्चा पुं० [सं० कुरुण्ड] लाल फटसरैया (को०] ।। कुरुखेत–संज्ञा पुं० [सं० कुरुक्षेत्र] कुरुक्षेत्र । उ०-- निंदक न्हाय गहन पर्या०—कुरुन्टक–कुरुण्ड । कुरुखेत । अरपे नारि सिगार समेत । चौसठ कुप्रf बाउ खुदवावे । कुरुम--सच्चा पुं० [सं० कर्म] दे० 'कर्म'। उ०—तरहि, कुम वासुकि तबहू, निंदक नरकहि जावे -कवीर (शब्द॰) । के पीठी । पर इद्र लोक पै दीदी 1--जामसी अ ० (गुप्न), कुरुजागल--सच्चा पु० [सं० कुरजाङ्गत, कुजङ्गल ] एक प्राचीन देश पृ० १४६ । । जो पाचाल देश के पश्चिम में था । कुरु-सच्चा पुं० [सं०] १ वैदिक अार्यों का एक कुल। २ एक प्राचीन कुरुविल्व--सी पुं० [सं०[ १ पद्मराग मणि । मानिक) २ बन्देश जो दो भागों में विभक्त था-उत्तर कुरु और दक्षिण कुलथी। कुरु । दक्षिण कुछ हिमालय के दक्षिण में था, जिसमे पाचा कुरुम५- सज्ञा पुं० [सं० कुम्भं | कूर्म। फच्छप । उ०--कुरुम है। लादि देश थे, और उत्तर कुरु हिमालय के उत्तर में था जिसमे भुईं फाढे तिन्ह हस्तिन्ह के चालि 1--जायसी (शब्द०)। फारस, तिब्बत अादि देश थे । इसको लोग स्वर्ग भी कहते कुरुराज-सबा पुं० [सं०] १ दुयधर । ३. युधिष्ठिर । थे। ३ को सोमव शी राजा का नाम जिसके वश में पाडू मौर। कुरुल'-सा पुं० [सं०] बान को लट, जो माथे पर बिखरी हो। धृतराष्ट्र हुए थे। ४ कुरु के वश में उत्पन्न पुरुष । ५ पुरो कुरुल–सा पुं० [हिं०] ६ कुर' । हितकर्ता । ६. पका हुआ चावल। भात । । कसला----संज्ञा स्त्री॰ [सं०] सगीत में एक प्रकार की गमक । कुरुआ—सद्मा पुं० [सं० कुडवे ] अन्न नापने का एक मान, जो दस कुरुक्ष-सी पुं० [सं०] उत्तर कुरु । छटक के बराबर होता हैं। कुरुविद-सज्ञा पुं॰ [सं० कुरुविन्द १ मोया। २. काच लवण । ३. कुरुमा1---सज्ञा पुं० [हिं० | दे० 'कड़ भा' । उ०---कुरुमा क तेल उनद । ४. मनिक । ५ दर्पण । ६. ई गुर। गिरफ। | आग लाइम बढिी वड दासो छपाइअ ।-कीति०, 'पृ० ६६। कुरुविव--सा पु० [सं०] एक पुरानी तोल का नाम । कुरुई-सच्चा स्त्री॰ [सं० फुडव] बॉस या मुष को बनी हुई छोटी कावस्त--संज्ञा पुं॰ [सं॰ सोने का एक निश्चित परिमाण [को०)। डलिया । मौनी । कुरुकदक-सधा पुं० [सं० कुरुकन्दक] मूलुक । मू (को०)। कुरुवृद्ध-सा पुं० [सं०] भीम (०) । कुरुक्षत्र–समा पुं० [सं०] एक बहुत प्राचीन तीर्थ, जो सरस्वती नदी कुश् ष्ठ, कुरुसत्तम-सभा पुं० [सं०] अजुन (को॰) । | के बाएँ किनारे पर अ बाला और दिल्ली के बीच मे है । कुरूप--वि० सं०] [स्त्री॰ कुरूप] बुरा शकस का । बदसूरत। विशेष—अग्वेद के कई ब्राह्मणो मे लिखा है सि प्राचीन काल में बेहोल । वेढगा। उ०—कार कुख्य विधि परवस कीन्हा ।' म्यपि लोग इसी स्थान पर ज्ञापि किया करते थे। अब तक बवा सो लुनिय दिय जो दीन्हा ।---मानस, २०१६ । प एक बहुत पवित्र और प्राचीन सरोवर के चिद वर्तमान कुरूपaf—सा जो० [सं०] कुष्प ६॥ने का भाव । वववरती । हैं, जिसका नाम ऋग्वेद में 'सुम्यतावत' लिखा है । किसी के रूप्य- सा पुं॰ [सं०] दान [को०] । धमय में इसके अ वेगव्र अनेक वर्षे और पवित्र वीथ थे, जिनके कुरेदन--क्रि० स० [स० कचन] खुरचना । खरोचना । कुरोदना।