पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४८२

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कुरम - २ अात्मत्याग । अमिवलिदान को]। ३ दागे। स्वार्थ- कृरखी-सच्चा पी० [सं०] १ फुररी पक्षी । ३ वाज़ की मादा। त्याग (को॰) । कूरव-सा पुं० [सं०] १. एक वृक्ष जिसके फूल लाल होते हैं । लाने क्रि० प्र०—करना ।—चढ़ाना ।—देना । फुलं की कदम,। नाल कुरैया । कुरबक । मडुवा। उa--- कुरम--सज्ञा पुं० [ सै० कूर्म ] कछुआ। कछपे । उ०--कुरम घट व कुल कदव पुनम रसाल । कुमुमत तरुनिकर कुरव सुतन की घरत है ऊंचे प्रापु उद्र फो घाव ।—कबीर श०, तमाल ।---तुलसी (शब्द॰) । २ सफेद मदार । माफ । ३ भJ० ३, पृ० १६ । सियार । ४. कर्णकटु स्वर । कर्कश स्वर ।। मूरमाणु-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० कुनवा] फुट ३ । परिवार। उ०—-भेद कुरव-वि० [सं० फू+रव] कर्करा या कट शब्द फरने वाला (को०)। कर –वि० की भेरी अलोक के झालर, कौतुक भी कलि के कुरमा मैं । कूरवक—सा पुं० [सं०] कुरैया का वृक्ष और फूल । कुरव । उ०— जूझत ही बलवीर वजे बहू दारिद के दरबार दमानँ ।--केशव | छोटा सा कुरवर्क का पेड कैमा एक साथ फून उठा-भारतेंदु ग्र ०, भा॰ १. पृ० १३१ । ग्र ० भा० १, पृ० ३६३ ।। कुरमा का बक-सा पुं० [वैश०] वे झाडी लकड़ियाँ जो जहाज के कुवा–सचा पुं० [सं० कुरवक] कटसरैया । नीचे अदर की ओर शहतीरो के बीच में उनको जकड़े रखने के कुरवा-सा पुं० [ सुं० कुडव ] लकडी का एक वर्तन जो अन्न लिये लगाई जाती हैं ।---(लश०)। नापने के काम आता है। यह एक सेर का होता है। कृमी-सद्बा पुं० [हिं०] दे० कुर्मी' । उ०—नव कुरमी सत्रह कोरी।। कुरवारना--क्रि० स० [सं० कन] खोदना । करोदना । खरोचना । तेरह कुम्हारे सवै सिर मोरी।--कबीर सा०, पृ० ५६३ ।। उ०---(क) पग है चलति ठठकि रहै ठाढ़ी मौन धरे हरि के फुरमुराना- क्रि० अ० [अनु॰] कुरकुर करना । गतिशील होना । रस गीली । घरनी नख चरनन कुरवारति सौतिन भाग सुहाय उ०—लता दृटी, कुरमुराता मूल मे है सूक्ष्म भय का कीट। डहीली --सुर (शब्द॰) । ( ख ) कन्यो यिरिकि वैठ तेहि हरी घास०, पृ० १८ । डारा । फोन्यों कली केल कुवारा ।—जायसी (शब्द॰) । कुररसा पुं० [सं०] १ गिद्ध की जाति का एक पक्षी । २. करोफुल । कुर विद-सा पुं० [सं० कुरुविन्द दे० 'कुरुविंद' । कोच । , कुरुषेत५सया पु० [सं० फुरुक्षेत्र] 'कुरुक्षेत्र' । कुररा--सच्चा [ १० फुररा][ लौ० कुरो ] १ करोकुल । झींव। कुरसथ-सा पुं० [ वे० ] एक प्रकार की मैली खौढ़ । उ०—-छत्र विटप वट पटु पिके डाढ़ौ । कुरर नकीद करत कुरसा-सा पुं० [ वैश.] १ ए वन जो बहुत शीघ्र बढ़ता है। धुनि गाढी ।—देव ( पब्दि०)। ३ टिटिहरी । उ०--ले के रसा | और देखने में बहुत अच्छा मालूम होता है । इसकी लफडी लान कतै भो कुरा लोपी। कठिन विछोह जियहि किमि गोपी - रग की और मजबूत होती है और मकान वया पुल के बनाने जायसी ।—(शब्द॰) । के काम आती है । यह कुमायू, नीलगिरि अवध, वाल, कुरराव' —सा पुं० [सं० कुरराज ] दुर्योधन । उ०—जाप को आसाम और मद्रास में होता है । २ जुगली गोभी। पेगबर, आपका दरियाव । ताप का सेस ज्वाल दाप का । कुरसा--सा खी० [सं० कुलिश] १ एक प्रकार की वडी मछली । कुरराव रा० रू०, पृ० ६७ । । कुरसी-सा बी० [अ०] १. एक प्रकार की चौकी जिसके पाये कुछ कुरराव-सा पुं० [सं०] क्रौंच या वाज पक्षियों से घिरा स्थान ।। ऊचे होते हैं और जितमे पीछे की भोर सहारे से निपे पटरी कुरी--सहा वी० [सं०] १ आप छंद का एसे भेद, जिसमे चार गुरु या। इसी प्रकार की और कोई चीज लगी रहती है। किसी और उनचास लघु होते हैं । ३. कुररा का स्त्रीलिंग रूप । किसी में हायो के सहारे के निये दोनो ओर दो लकड़ियां भी क्रौची । उ०—लै दच्छिन दिसि गयो गुसाई । विलपति प्रति लगी रहती हैं। यह केवल एक आदमी के बैठने योग्य बनाई कुररी सी नाईं !-—तुलसी (शब्द०)। दे० 'कुर' । जाती है। कुरल-सझा पुं० [सं०] १. च । २ वाज पक्षी । ३. कु चित्र के । विशेष—कुरसी प्रायः लकड़ी की बनती है मौर उसमे वैठने मौर घुघराले बाल । सहारा लगाने का स्थान वेव से बुना या चमड़े अादि से मढ़ा कुरल-सुज्ञा पुं० [त०] मद्रास के निकट प्रयलापुरम् मे जन्म लेनेवाले होता है । कभी कभी पत्थर, लोहे या किसी दूसरी धातु से संत कवि तिरुवल्लेदर रचित तमिल भाषा का धर्मनीति शास्त्र भी कुरसी बनाई जाती है। यह कई कई प्रकार और प्रकार अथ जो ‘तमिलवेद' नाम से प्रसिद्ध है । की होती है । कुरलना---क्रि० अ० [सं० कलरव या कुरव, हि० कुरं या अनु० ] यौ॰——ाराम कुरती= एक प्रकार की बड़ी कुरसी जिसपर मधुर स्वर से पक्षियों की बोलना । उ०—(क) कुरलहि सारस आदमी लेट सकता है। कह हुलासा । जीवन मरने से एक पासा |-अायसी २ वह पबूतया जिसके ऊपर इमारत या इसी प्रकार की और (शब्द०)। (ख) कौतुक केलि करहि दुण नंता । खुदहि कुरलहि कोई चीज बनाई जाती है । यह घासपास की भूमि से कुछ जन सर हुग --जायसी (शढ०) ।। ऊचा होता है और पानी, स४ यादि से इपरित की रक्षा कुरला-सा पुं० [हिं०] १ खेल । क्रीड़ा । ३. कुल्ला । मुह में करता है । ३ पीढ़ी । पुग्त । भरकर पानी गिराना। यौ--कुरसीनमा ।