पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४८०

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९९६ कुरवा कुम्हलाना कुम्हलाना–क्रि०अ० [सं० + म्लान १ जिगी का जाता रहना । कुर गिन, कुरगिनि --सज्ञा स्त्री० [सं० फुरङ्ग) हिरन । उ०-~- सरसता भौर हरपन न रहना । मुरझाना । जैसे,-पौधे, परी, (क) चदन माँझ फुर गिन खोजू । तेहि को पाव को राग भोजू ।--जायसी (शब्द॰) । (ख) जोबन पखी विरह फूल आदि का कुम्हनाना । उ०—तर पर फून कमल पर जल विधूि । केहरि भयो कुरगिनि साध |-- जायसी ग्र० (गुप्त), कणं सुदर परम सुहाते हैं । अल्प काल के बीच किंतु वे पृ० २३६।। कुम्हलाकर मिट जाते हैं ।--श्रीधर पाठक (शब्द०)। २ । सूखने पर होना । ३ प्रफुल्नता रहित होना। फाति का मलिन कुरगसार--सुद्धा पुं० [म० कुरङ्गसार] फतुरी। मुश्क । उ०— पडना । प्रमाहीत होना । जैसे---इतनी धूप में ग्राए हो, चेहरा केसर कुरगसार रग से जिपित दोऊ दूह मे दिपति ग्रौ छिपति जात छाती में ।—देव (शब्द॰) । कुम्हलाया हुआ है। उ०—सुनि राजा प्रति अप्रिय बानी । हृदये कप मुख दुति कुम्हलानी।--तुलसी (शब्द०)। कुरगी'---सा सी० [मे० कुरी ] हरिणी । मगी। कुम्हार–सा पुं० [सं० कुभकार, प्रा० भार] [स्त्री॰ कुम्हारन] कुरगी-वि० [सं० फु+हि० रगी] बुरे लक्षण, स्पमा पा रवा न । १ मिट्टी का बरतन बनानेवाला मनुष्य । २ मिट्टी का वरतुने कुरच -सद्या पु० [सं० फौन्च] दे॰ 'च' । उ॰—ठाम ठाम जल | बनानेवाली जाति । थाने मद्वि जल जीव निसिय । ढुक कुरम कुरच हस सारस कुम्हिला-TG- क्रि० अ० [हिं०] दे० 'कुम्हलाना' । उ०—(क) । सुभ भासिय 1---]० ० ६ । ६५ । | सुदर तन सुकुमार दोउ जन सूर किरिन कुम्हिलात ।—सूर०, | कूरचदौq---संज्ञा पुं० [सं० शौचञ्चदीप] दे० 'क्रोचद्वीप' । उ०-- ६। ४३ । (ख) भजन वेलि जात कुम्हिलाइ । कौनि जुक्ति कुर चदीप जब मनग्रा हैं। रेचक है िजस अतरि गई । के भक्ति दृढाइ ।—जग० श०, भा० २, पृ॰ ६८। । कुम्ही -संज्ञा स्त्री॰ [सं० फुम्भो] एक पौधा जो पानी पर फैलता। कुरट-सा पुं० [सं० कुरण्ट] दे॰ 'कुरंटक' [को०) ।। हैं। उ०-लोचन सपने के भ्रम भूने । मोते गए कुम्ही के जर कुरटक-सज्ञा पुं० [सं० कुर पटक] [ी० कुरदिफा पीली कटसरैया। यो ऐसे वे निरमूले । सूरश्रम जुल राशि परे अत्र रूप रंग कुरड'–सम्रा पुं० [कुद - मणि को एक खनिज पदार्थ, जो | अनुकले ।—सूर (शब्द॰) । एक प्रकार का मूच्छित अलुमीन में है और मिस्त्री की चमकीली विशेष--हैं• 'कभी ।। डली के रूप में जमा हुआ मिलता है। कुम्हेडा —सपा पुं० [हिं० कुम्हडा] दे॰ 'कुम्डा ' । विशेष--फडाई में यह हरि से कुछ ही कम होता है । इनके कुयलिया -सच्चा स्रो॰ [हिं० कोयल +इया ( प्रत्य॰)] दे० चूर्ण को लाख अादि में मिलाकर हथियार तेज करने ‘कोयल' । उ०—ककनि लगी कुयलिया मधुर महान ।—नट०, की सान बनाते हैं । विशुद्ध अवस्था मे चुवक अादि से पृ० १०४ ।। मिला हुअा जो दानेदार कुरड मिलता है, वह मानिकरेत कुयोनि-सच्चा सी० [सं०] क्षुद्र जतु की कोटि । तिर्य क्योनि । कहलाती है, जिससे सोनार सोने चाँदी के गहनो पर जिना कुरकर, कुरकुर-सद्मा पुं० [सं० कुरङ्कर, कुरवार] सारस पक्ष देते हैं । अधिक फातिवाले जो कुछ मिलते हैं वे रत्न माने (को०] । | जाते हैं, और रग के अनुसार उन्हें मानिक (लाल), नीलम, कुरंग'-- सा पुं० [सं० कुरडू] [स्त्री० कुरगीं] १ वादामी या पुखराज, गोमेद अादि कहते हैं। तामढे रग का हिरन । २ मृग। हिरन । कुरड.-सुज्ञा पुं॰ [सं० कुरण्] १ प्रौपध के काम में प्रयुक्त होनेवाला यौ –कुरगलाछन । एस पौधा ।। ३ घरदै छद का एक नाम । ४.चद्रमा मे दृश्यमान धब्बा (को०)। विशेष--यह पौधा खेती के किनारे गौर इधर उधर उगता है। कुराग-सी पु० [सं० कु+हि० रन] १ बुरा रग ढग 1 बुरी इसमें सफेद रंग के फूल लगते हैं। वैद्यक में इसे अग्निदीप, लक्षण । २ घोडे का एक रग जो लोहे के समान होता है। रुचिकारक, वीर्यवर्द्धक और मूत्रकृच्छ को दूर करनेवाला वीला । कुम्मैत । लेखोरी । ३ इस रंग का घोडा। कुलंठा, माना है । लखौरी । उ०—-हरे कुरग महूम वह 'भत । गरर कोकाई २ फोता बढ़ने का रोग ! अडवृद्धि रोग (को॰) । वलाह सुपाती।-जायसी (शब्द॰) । कुरंडक-सच्चा पुं० [सं० कुरण्डक] पीली कटसरैयः । कुरग-बुरे रंग का । बदरग । कुरंद, कुरंदर-सम्रा पुं॰ [देश॰] गरी । दरिद्रता । उ० --(क) कुरगक-सा पुं० [सं० कुरडूक] हरिण । मृग (को। मन महराण समापण मोजा, कापण दीन तरणे कुरद -- कुरगनयना-वि० जी० [सं० कुरगनयन] हिरन की अाँखो के समान रघु० रू०, पृ० १६ । (ख) बामण चार वेद के बकता, | बडी वडी अखिोदाली [को०] । अागम दुष्टी ज्ञान धुरधः । साहुकार सको धजवंधी दूजी गत पर्या -कुरगनयनी -कुरगनेत्रः।-कुरगलोचना । अलेप कुरदर --रघु० रू०, पृ० २७४ । कुरगम- सज्ञा पुं० [सं० कुरङ्गम] हरिण । मृग । कुरंगक [को०)। • कुरवा---सझा पुं० [देश॰] भई की एक जारि डी। डौल में छोटी कुरगनाभि---सा पुं० [सं० कुरङ्गनाभि] कस्तूरी ‘को] । होती है और जिसके बाल नीचे से करने पर सिरे पर सफेद कुरगाछन-सच्चा पु० [सं० कुरङ्गताञ्छन] चंद्रमा । मृगलछिन । होते हैं। इसका मास अच्छा और स्वादिष्ट होता है ।