पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४७९

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६६७ कुरवानीः कुर'म---सुवा पुं० [सं० कूर्म ] कूमं । कछुवा । उ०—-वेंक कुरंम धिलाप करि कुरुच सरिस रघुराई । तदै लगि मैं सिंप्यन सहित कुरच। इस सरिस सुम भरसिय !---पृ० ० ६ । ६५ । पहुंचेउ तेहि वन अाई मधुसूदनदास (शब्द०)। कुरान--सबा पु० [अ० करन] दे॰ 'कुरान' । उ०—जर दोन है, कुचिल्ल---सम्रा पुं० [सं०] केकड़ा । कुरमान है, ईमाँ है, नवी है ! जर ही मेरा अल्लाह है, जर राम कुरट---सज्ञा पुं॰ [सं०] १ चमड़ा बेचनेवाला । २ जूते बनानेवाला । हमारा ?--भारतेदु प्र ०, मा० १, पृ० ५२५।। चर्मकार (को०)। कुरकुनी-सुज्ञा स्त्री॰ [देश॰] घोड़े या गधे के चमड़े का अगला भाग करडा--सा पु० | देश० 1[सी० कुरड़ी] अरबी और नुरको जति जिसकी कीमुस्त नहीं बन सकता। कै घोडो के जोड़े से उत्पन्न एक दोगली जाति का घोड़ा । इस कुरका--सच्चा सौ० [सं०] १ सलई । चीड । २ दक्षिण की एक देश जाति के घोड़े अरव मे मिलते हैं। जिसे अब कुर्ग कहते हैं । ३ एक नगर जो कुर्ग देश में ताम्रपर्णी कुरता-सा प्री० [तु०] [ जौ० कुरती ] एक पहनावा जो सिर नदी के किनारे था और जहाँ वैष्णव प्राचार्य शठकोप की डालकर पहना जाता है और जिसमें सामने छाती के नीचे जन्म हुआ था। किसी प्रकार का जोड़ या परदा नहीं होता । कुरकी-सज्ञा स्त्री० [तु० कुर्क] दे० 'कुर्की' । कुरती-सघा जी० [हिं० कुरता ] १ स्त्रियों का एक पहनावा जो कुरकु ड—सा पु० [देश॰] एक पास जिमे रीहा और कनखुरा भी। फनाही की तरह का होता है । २ (सोनार लोगों की बोली कहते हैं । यह माम और वगान मे होती है। इसका रेशा मे ) म्त्री। बहत दृढ़ और बारीक होता है और जाल कपड़े अादि बनाने के काम में आती है। कुरथी--सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं०] दे० 'कुलयों'। विशेप-६० 'हा' । कुरन'–सद्या पु० [हिं०] दे० 'कुरड' । उ०—-शब्द मस्कला खरे ज्ञान कुरकुट'--संवा पुं० [सं० कुट= कुटनी या कुट र अाम्नलित रूप ] | का कुरन लगावै !--पलटू०, पृ० ६। किसी वस्तु का छोटा टुकड़ा। कुरन --सा पुं० [हिं० कूरा राशि । हेर। कुकुट ७-सा पु० [स० कुक्कुट] १. मुर्गा । तुमचुर । २ मुर्गे कुरना - क्रि० अ० [हिं० कुरा = ढेर ] १ ढेर लगना । । की बौनी । उ०—कुरकुट सुनि चुरकट भई वाला । लीन उससि लगना । उ०—(क) वैभव विभव ब्रह्मानंद की अपार धार उसाय विसाला ।-नद० ग्र०, पृ० १४२। फोशल की कोश एकबार ही कुरे परी :-रघुराज (शब्द०)। कुरकुटा-सी पुं० [स० कुट-कूटना] १ किसी वस्तु का कूटा हुआ (ख) पारावार, पूरने, अपार परब्रह्म राशि, जसुदा की मोरे रवा । टुकडा २ रोटी का टुकड़ा। उ०--कैसे सेहद खिनहि एकवार ही कुरै परी ।—देव (शब्द॰) । खिने भूखा । के से खवि कुरकुटा रूखा ।—जायसी (शब्द०)। संयो॰ क्रि०--जाना ।---पड़ना। कुखर-संवा पुं० [अनु० ] खरी वस्तु के दबकर टूटने का शब्द । २. दे० 'कुरलना' । उ०—सारो सुग्री जो रहच करहीं। कुहि जैसे,- पापड दाँत के नीचे कुरकुर बोलता है। परेवा औ करबरही ।—जायसी (शब्द०)। क्रि० प्र०—करना --होना ।-वलिना । कुरव-संज्ञा पुं० [हिं०] इज्जते । उ०--कवियणे किंतु पायो कुरकुरा--वि० [हिं० कुरकुर ] [ ओ० कुरकुरी ] खरा और करार कुरव मागे मावडियो वाँकी ग्र, भा॰ २, पृ० १५। | जिसे तोड़ने पर कुरकुर शब्द हो । कुरव--सुशा पुं० [सं०] कुवेक नामक वृक्ष योर उस चा फुन । चाल कुरकुराना-क्रि० अ० [हिं० कुरकुर] १ कुरकुर शब्द करना । ३. फटसरैया (को॰) । कुकुर शब्द करते ए खाना (को॰) । कुरखक–धा पु० [सं०] फटसरैया। कुरकुराहट-सज्ञा जी० [हिं० कुरकुर कुरकुर शब्द होने का भाव ।। करवनही-सृा जी० [हिं० चोर+बनना] बढइयो का एक औजार कुकुरी ची पुं० [देश० । अनु०] १ घोड़े की एक वीमारी जिसमे जो सुखानी के प्रकार का होता है और जिससे कोने को कवर उसका पाना, पेशाब बंद हो जाती है और पेट फूल आता है। छीलकर साफ करते हैं। इसमें दस्ता नहीं होता। २. पतली मुलायम हड्डी, जैसे, कान की । करवान-वि० [अ०] १. जो न्यौछावर किया गया हो। जो वनिदान कुरखेत'७f-सा पुं० [सं० कुरुक्षेत्र] १ वह स्थान जहाँ महाभारत किया गया है। २. न्यौछावर । निसाः । ३, वलि । दिसा का युद्ध हुआ था । ३. युद्ध । सघर्ष । [ ]। कुरखेतु सा पुं० [हिं॰] वह खेत जिसकी जुताई हो गई हो सितु प्रा6--कुरान करना=न्योछावर करना । वरना। इ9-4 बुवाई न हुई है। इचले चदि विशाल विवि लोचन मोचन मान । विगत दियि गरा-सा पुं० [हिं० कोर+गर एक छोटी यापी जिसमें दर्जवदी ३ देवि मन को करि कुरवान --विश्राम (शब्द॰) । वथा कारनिस अादि का बारीक काम किया जाता है । कुरवा जाना=न्पोछावर होना । बनि नाना । कुरवात करप-सा ३० [ मै० व 3 काकुल प्रज्ञो । उ३५-६ विधि होना = (१) न्योछावर होना । (२) मरने । प्राण नैनः । दिनि जाति सिंग, पुरच सरि नन मोहि । है रघुवर हे कुरबानी–घकी जी० [अ॰] १ कि 11 t; 6 लि. शि। पनि केछि मप इ, नाfa -(शब्द॰) । (ख) बारव ३६ जी हो तिन करने की क्रिया । कुरान करने का नाम । १५