पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४७६

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कुर्विज कुममा कुर्बिजवि० [ स० कुदअ ] दे० 'कु' । उ०—कुविज खुज अरु कुञ्जिका--सा ग्वी० [सं०] १ अाठ वर्ष की अवस्था की नइक । २ । स्याम दंत नर-पं० रोसो, पृ० १४ । दुर्गा देवी का एक नाम । कुबिजा सच्चा श्री० [हिं॰] दे॰ 'कु ' । कुब्बा सझा पुं० [हिं० कुन हो] जिल्ला । कुड़ । कुबूजवा-वि० [स० कुञ्ज, हि० कुविल, कुबुज+वा ( प्रत्य० ) 1 कुत्र--सदा पुं० [सं०] १ जुगन् । २ यज्ञार्थ निमित कु ड । ३ अनूठी । कुवडा । कुब्ज । उ०—सइयाँ हैमरे कुवुजबा हो हम धर अल्प ४ कान में पहनने का एक अभूपेण । बानी । ५ डोर । कुमारि ।-गुलाल, पृ० ५३ ।। ततु । घोगा । ६ गाड़ी । घाफट (को॰) । कुबूजा सच्चा स्त्री॰ [हिं०] दे० 'कुब्जा' । उ०—कोउ कहे रे मधुप कुभरा--सच्चा पु० [हिं० कुम्हार] दे॰ 'कुम्हार । उ०—कुमरा ह्व | स्याम जोगी तुम चेला । कुबजा तीरथ जाइ कियौ इद्रिन को । फरि वारान धरिहू घोबी हूँ मल धोम |--कवीर ग्र०, मेला ।—मद० ग्र ०, पृ० १८५।। पृ० २१७ । कुबुद—सा पुं० [देश॰] एक प्रकार का वर्गला । कुभा-सा बी० [सं०] १ पृथ्वी ती छाया । २, बुरी दीप्ति । ३. कुबुद्धि'-वि० [सं०] जिसकी बुद्धि भ्रष्ट हो गई हो। दुवुद्धि । काबुल नदी ।। मुखं । । कुभाय-सृज्ञा पुं॰ [ स० कुभाव ] दे० 'कु रव' । उ० -नायं कुभायें कुबुद्धि–सच्चा स्त्री॰ [सं०] १ मूर्खता । वेवकुफी । २ बुरी सलाह । अनख मालस हैं। नाम जपत मगन दिसि दराहू -- कुमण। मानस, १।२८ । कुवुधि)}-संशा स्त्री॰ [हिं॰] दे॰ 'कुबुद्धि' । उ०—काम औ क्रोध कुभाव--सच्चा पु० [सं० कु + भाव अनुचित भाव । दुवृत्ति । प्रेम शून्य | दुइ पाप का मूल हैं, कुबुधि का बीज का जानि वोवे ।--कबीर भाव । | रे०, पृ० ३२ । कुभत–सच्चा पुं० [सं०] १. पर्वत । २ सात की सच्चा । ३ काबुल कुबेर संवा पुं० [सं० कुबेर ] दे॰ 'कुवेर' । नदी। कुवेला-सच्चा स्वी० [सं० कुवेला बुरा समय । अनुपयुक्त माल। कूमठी-- सुज्ञा स्त्री० [सं० फमठ = बसि] पतली लचीली टहनी । उ०—अगर डोला कभी इस राह से गुजरे कुबेला, यह अवेवा | | ०-- पाता वह बड़ देखि के चढ़े कुमठी धाय । तुरुवर होय तो तुरे रुक एक पल विथाम लेना |--ठडा०, पृ० १८ ।। 'भार सह टूट रे' अरराय गिरिधर (शब्द॰) । कुबोल---सच्चा स्त्री॰ [ सं० + हि० बोल ] १ बुरी बात । अशुभ कुमणा---सज्ञा स्त्री॰ [सं० कुमन्त्रणा] बुरी सलाह। | वचन । मम स बात ।। कुमत्रित–वि० [सं० कु+मन्त्रित जिसे असत् परामर्श दिया गया हो । कुबोलना—वि० [हिं० कुखोल] बुरी या अशिष्टतायुक्त वात कहनै- कुमइत--सज्ञा पुं०, वि० [हिं०] दे० 'कुम्मैव' । वाला । अशुभमापी । कुभाखी । कुमकु --संज्ञा स्त्री॰ 1तु ०] १ सहायता । मदद । उ०-लार्ड कलेड कुबोलनी–वि० स्त्री॰ [ हि० फुवोल ] बुरा बोल बोलनेवाली ।। ने जाने से पहले जलालाबादवालो की कुमका के लिये पेशावर कुभाषिणी । उ०-युवति कुरूप कुशेलनि जाकै । सदा शोक | में फौज जमा होने के लिये हुक्म जारी किया |--शिवप्रसाद यि ह्व है ताके --निश्वल (शब्द॰) । (शब्द॰) । ३ पक्षपात । हिमायत । तरफदारी । कुब्ज-वि० [सं०] [स्त्री० कुब्जा] जिसकी पीठ टेढ़ो हो । कुबड़ा । क्रि० प्र०—करना ।--पढ़चना |--पहचाना देना 1-माना। कुब्ज-सच्चा पुं० [सं०] १ एक रोग जिसमें वायु क विकार से छाती मुहा०--'कुमक पर होना= हिमायत करना । पक्ष लेना । तरफ या पोठ दृढ़ होकर ऊँचा हो जाता है। यह दो प्रकार का दारी करने।। ५ होता है। एक में पाठ योग की और और दूसरे में पीछे की कुमका-वि० [तु कुन ककुमक या कुम ६ ३ सबध रखनेवाला। मोर झुकती है। १ अपामार्ग । लहचिचिड़ा । लटज । जैसे---कुमकी फौज । कुब्जकठ-सा पु० [सं० कुजफण्ठ) सनिपात का एक रोग । कुमको–सा लो० हाथियों के पड़ने में सहायता करने के दिये विशेष—इसमे फळ रुक जाता है अर रोगों के पुल के नीचे पानी सिखाई ६६ थिनी । नहीं उतरता। इसमें वह, मोह मादि भी हुवा है । वैद्य में कुमकुम--सच्चा पुं० [सं० कुङ्कभ] १. केशर। उ०—–जहाँ स्माम घर इसे असाध्य माना है, और इस्को अवधि १३ दिन बतलाई है। रस उपायो। कुमकुम जल सुख वृष्टि रमायो ।-सूर (शब्द०)। कुन्जक-सा पु० [सं०] १ मालती । २ नगर के माठ प्रशारों में २ कुमकुम । उ०-चदन काल कट सभ जानुई। कुमकुम पवि से एक । उ०—यहर आठ तरह के होते है--राजधानी, नगर, प्रहार इव मानहू --मधुसूदनदास (शब्द॰) । पुर, नगरी, खे, खवाट, कुब्जक, पहुन ।--हिंदु० सुभ्यता, कुमकुमा—सा पुं॰ [ तु० कुमकुम ] १. लाख का बना हुआ पर ५० ४८४ । ३ । प्रकार का पोला, गाल या चिपढा खट्ट, जिसमें अवीर सीर कुब्जा-सा अ० [सं०] १ क को एक दासी, जिसकी पीठ कवी गुलाल भरकर होली मे लोग एक दूसरे पर मारते हैं । इसके थी । यह कुचद्र से अधिक प्रेम रखती थीं । कुबरी। १, दूटने से गुप्ताव अवीय अदि इधर उधर बिखर जाता है । उa- कैकेयी की मंथरा 14 की एक दासी । ३०- लखनु, भरतु, चलत कुमकमा रग पिचकारी के मुताब का रि-मारतें। पिदमन सुमित्रा कुवरी क दर सावे । लसी (शब्द॰) । मृ', भा० १, १० १०४ । ३ पु मा । वर्ग मुइ छ। छोक!