पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४७४

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पढ़ ९६० कुफर कुपढ–वि० [सं० कु+हि० पढ़न] अनपढ़ । मूर्ख । कुपुत्र--संज्ञा पुं० [सं०] वह पुत्र जो कुपथगामी हो । कुपूत । दुष्ट पुत्र । कुपत्थ -सच्चा पुं० [ सं० कुपथ्यु, प्रा० कृपश्य] १ किसी रोगी के कुप्पक-सी पुं० [सं० कोप] घोड़ो का एक रोग जिसमें उन्हें ज्वर रोग को बढ़ानेवाला आहार विहार । २ अस्वास्थ्यकर अाता है और उनकी नाक से पानी बहता है। खान पान । कुप्पना सच्चा पुं० [हिं० फोन ६० 'कोपना' । उ०—सुनी राव कुपत्थी-वि० [सं० कुपथ्य) कुपथ्य करनेवाला । अस्यमी । | हम्मीर कुप्पे सुमारी ।--- रासो०, पृ० ६६ ।। कुपत्थी-- सखा पुं० वह व्यक्ति जो पथ्य से न रहे। बदपरहेज कुष्पल--सज्ञा पुं० [देश॰] एक प्रकार की सज्ज़ी जिसके कलम वारीक | आदमी ।। और नुकीले होते हैं । यह लाल रंग की होती है और बार को कुपथ'—सुद्धा पुं० [सं०] १ बुरा रास्ता 1 २ निषिद्ध आचरण । लोनार झील के पानी को सुखाकर निकाली जाती है । " बुरी चाल । कुप्पा-सा पुं० [स० कृपक] [ी० पल्पा० कुप्पी 1 चमड़े का बना यौ०-कुपयगामी = कुमार्गी । निषिद्ध आचरण का । हुआ घड़े के आकार का एक बडा बर्तन जिसमे घी, तेल आदि कुपथ -सज्ञा पुं० [सं० कुपथ्य ] वह भोजन, जो स्वास्थ्य के लिये रखे जाते हैं । हानिकारक हो । ३०-राज काज कुपथ कुसाज भोग रोग को यौ०-कुप्पासाज । है वेद वुध विद्या वाय विवस वलही । —तुलसी (शब्द॰) । मुहा०-फुप्पा लुढ़ना या लुढ़कना = (१) किसी बड़े श्रादमी का कुपथ्य-सय पुं० [सं० कु-+qथ्य] वह भाहार विहार जो स्वास्थ्य को मरना । (२) अधिक व्यय होना। कुप्पा होना या हो जाना = हानिकारक हो । वदपरहेजी । (१) फूल जाना। सूजन । वरम होना । जैसे-भिड के काटने क्रि० प्र०—करना ।—होना । से उसका मुह कुप्पा हो गया(२) मोटा होना । हृष्टपुष्ट होना । कुपना -क्रि० प्र० [हिं० कोपना] ६० 'कोपना' । जैसे,—वह दो महीने में ही कुप्पा हो गया (३) रूठना । कृपक्षी-सच्चा बी० [हिं०] घे० 'कोंपल'। उ०—जीभ न जीभ रूठकर वोलचाल बद करना । जैसे-वह जरा सी बात में विगोयनो । दर्द का घोघा कुपली, मेल्ही ।-ची० रासो, कुप्पा हो जाते हैं । फूलकर कुप्पा होना=(१) मोटा होना। पृ॰ ३७ । हृष्ट पुष्ट होना । (२) अत्यत इपित होना । मानद से फूल कृपाठ-सच्चा पुं० [सं०] बुरी मंत्रणा । वुरी सलाह । उ०—कीन्हेसि जाना । जैसे,—जिस समय वह यह सुनेगा फूलकर कुप्पा हो कृठिन पछि कुपा । जिमि न नवे पुनि उकठि कुकाठू ।- जायगा । किसी की मुह कुप्पा होना= किसी का नाराज तुलसी (शब्द॰) । होकर मुह फुलाना। किसी का रूठकर वोलचाल बद करना। कपाठी---वि० [सं० कुपाठिन् बदमाश । नटखट । दुष्ट । उत्पाती। जैसे—-जरा सी बात पर तुम्हारा मुह कुप्पा हो जाता है । कूपातर---वि० [सं० कुपात्र] दे० 'कुपात्र' । उ--म्हारी जात मैं कुपातर-वि० [सं० कृपा कुप्पा सा मुह करना = मुह फुलनि। रूटकर बोलचाल | भी कोई कुपवर निकल गयो ।--श्रीनिवास' अ ०, पृ० ४४ । वास १० ४४ । वैदे कर , कुस्मा+फा० साज] कुप्पा बनानेवाली कपा--वि० [सं०] १ किसी विपय का अनधिकारी,। अयोग्य ।। | नालायक । २ वह जिसे दान देना शास्त्रों में निषद्ध है। व्यक्ति ।। | कुप्पी-सच्चा स्त्री० [हिं० फुप्पो का अल्पा०] चमड़े का बना हुआ कुप्पे. कृपार -सा पुं० [सं० अकूपार] समुद्र । ४०-देख अब क लक । से छोटा वर्त त जिसमे तेल, फुलेल अदि रखते हैं। फुलेली । जरत निशक तेरी तऊ न बुझेगी जो लौं अाइहीं कुपार को । | -हनुमान (शब्द॰) । कुफर---सच्चा पुं० [अ० कुफ] दोप। पाप। अपराध । अपवित्रता । कृतघ्नता । उ०-अपनी कुफर चीन नहि. भाई, हिदू को काफर कुपिंद-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं० फुविन्द] जुलाहा । तंतुवाय । बतलाई ।-तुलसी० ०, पृ० २११ । कुपित-वि० [सं०] १, ऋद्ध । क्रोधित। ३ अप्रसन्न । नाराज। कुफरान-- सच्चा पुं० [अ० फुफुन] १ एहसान फरामोशी । कृतघ्नता । कुपितभूल (सैन्य)-सच्चा पुं० [सं०] भड़की हुई सेना। उ०—कुफरान जिकिर छोडी । पद सूचि देव गोड़ों ।-- विशेष—कौटिल्य के मत में भड़की हुई और भिन्नगर्भ तितर गुलाल, पृ० ११२। बितर हुई) सेनाओं में से कुपितमूल सामादि उपायों से शात कुफराना--वि० [अ० कुझीन/कृतघ्नता से भरा हुआ । उ०—काफिर की जाकर उपयोग में लाई जा सकती है। कुफर करे कुफराना । दिल दलील हैराना -सत तुरसी०, कुपिन--सा पुं० [हिं०] दे० 'कोपीन' । पु० १९८। कुपिया—क्रि० वि० [अ० खुफीयह] छुपे छुपे । चुपचाप । छिपे हुए। कूफ़ल-सच्ची पुं० [अ० कुफले, कुप ल] वाला । तालिका । द्वारय । खोपिया। पोशीदा । उ०—के प्रपच कुपिया करे, रुपिया उ०-जिन यह कु जी कुल उघाटी।--कबीर श॰, पृ॰ २२ । जोडण ओक । परपीडी पे नहीं, ऐ लोभीडा लोक !-बाँकी कूफार-सुझा पुं० [अ० कुप फ़ार, काफिर की बहुव०] काफिर लागे । ग्र ०, भा० ३, १० ५६ । अविश्वासी लोग । मूर्तिपूजका लोग उ–गारी वकत कुफार कुपीन-सा स्त्री० [सं० कोपन] कोपीन् । लंगोटी । उ०---गाँठी जीति दल वा सु न सोच लयो री !-भारतेंदु ग्र, भा० १, सत्त कुपन में सदा फिरे नि सके । नाम ममल माता रहै गिने पृ० ५०३।। द्र सो रकमलूक०, पृ० ३३ । कुफार.- सा पुं० [हिं० + फार] कुवचन । बुरी बात । झगड़ा।