पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४७३

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६६३ कैरीि कृविचारी झट । उ०—-पार परोसिन इाहै हो निस दिन करत फोर । । सबसे अधिक किरात इरे जो ये मी कि अँवार । कुनड़े नीचे -गुलाल०, पृ० ५४ । नीचे चल के डर से हो गए पार-रत्नावली (शब्द॰) । कुसारी--वि० [हिं० कु+फार ] अश्लील । गंदी। असभ्य की सी। कुवडा--वि० [वि० डी० कुवा ] झुका हुआ । टेढ़ी। उ०—उन सुवा | ३०--मापुन मत हुँमावत औरन देत कुफारी गारी ।- कुवडी पीठ हुई घोड़े पर जीन धरो वावा ।-नज़ीर। झारतेंदु में 2, भा॰ २, पृ० ४११ । (शब्द०) । कफुर'-सा पुं० [अ० कुछ ] मुसलमानी मन के विरुद्ध अन्य मत ! कबड़ापन- संज्ञा पुं० [हि• कुवडी+पन] कुबड़ा होने का भाव । | ३०-उाहिं देवालय कफुर मिटा'। पातसह को हुकुम कुवडो -सच्चा स्त्री० [हिं० फुड़ा] १ दे० 'कुवर' । २. वह छडी चला।--लाल (शब्द॰) । वि० दे० 'कफ' । | जिसका सिर झुका हुआ हो । टेदिया। कर-संक्षा पु० पाप ! अपराध । दोष । अविश्वास । उ०—मीखा कुवत ---संछा बी० [स० कु+ हि० बात] १. वुरी वात् । निदा। कहै कृफुर तब टूट जद साहव करहि छहाई।—भीखा श०, उ~-को कुवत जग कुटिलता जो न दीनदयाल । दुखी पृ॰ ३२ । होहगे सरल हिय वसत त्रिम लाल |--विहारी (शब्द॰) । कुफेत--संश्च झी० [सं०] कावुले नदी का पुराना नाम । इसे वैदिक २ कुचाल । वुरी चाल । ३०---कहति ने देवर की कुवत, | काल में कृभा कहते थे । फुल तिय नह डराति ! जिगत मंजार ढिंग सुक लौं कुर-सा पुं० [स० कु+हि० फेर] बुरे दिनो का चक्कर। दुर्भाग्य । | सुखति जाति -विहारी ( शब्द०)। उ०—-मुख चौ नाम रटा करे, निस दिन साधन संग ! कहो कूवरी--सा बी० [हिं० कुवे ] १. केस की एक दासी जिसकी पीठ ध कौन कुफेर से, नाहिने लागत रंग-कवीर सा० स०, टेढ़ी यी । यह कृष्णचंद्र पर अधिक प्रम रखती थी। कुब्जा । भा० १, पृ० ३३ । । उ०-योग कया पठई व्रज को सब सौ सठ चेरी की चाल क्र—स पु० [अ० फुफ ] १ मुसलमानी मत से भिन्न अन्य मत । चलाकी । ऊधो जू क्यो न कहें कुबरी जो वरी नटनागर हेरि उ०—सव कृ% और इस्लाम के झगड़ो में है भूले । देखा ने हुलाकी --तुलसी (शब्द॰) । २ वह छड़ी जिसका सिरा अभी जिस्म का वुवाना किसू ने --दविखनी०, पृ० २४१ । झुका हो । टेढिया । ३. एक प्रकार की मछली जो भारत, १ मुसलमानी धर्म के विरुद्ध वाक्य । चीन और लका में पाई जाती है। क्रि० प्र०--चना । कवलय---सुझा पु० [सं० कुवलय कुमुद । कमल । उ०-क्यों न कुपन सूची पु० [अ० फ्ल] वाला । जतर। उ०- कु जी फिरे सब जगत मैं कुरत दिगांवचये मार । जाके दुगसामत हैं उसकी जवान शीदीं है । दिन मेरा कुल है बतासे का ।-कविता कुवलय जीतनहार --मवि० अ ०, पृ० ३६६ । कौ॰, भा॰ ४, पृ० १६। कुवलयापोड़--सच्चा पु० [सं० कुवलयापीड] दे० 'कुवलयापीई । “ कृफ्लो-सा चौ० [हिं०] दे० 'कुल्फी'। कुवली-सच्चा स्त्री॰ [सं० कुवलय = गोल] पिडी गोला । वड'५-सी पुं० [ सु० कोण्ड, प्रा०, पु० हि० कोबड ] धनुष । ३२९ वहा-वि० [ हि० + (प्रत्य॰)] केंदडवाला । उ०—(क) कुवड कियो विविखंड महा वरवडे प्रचंड भुजा कुवाक कुवा -सा पु० [सं० वाक्य १ कुवचन । टेढ़ा वोल। कठोर वचन । कडी दातृ । उ०--तुजी सुना सकुवृति नचति बोलति बल है।--हनुमान (शब्द॰) । (ख) भुसु डिय र कुवडिये बाक कुवाका । दिन छिनदा छाका रहति उठत न छिन छरि साधि ! परे दुई रन वेभुट आँध (सुदने (शब्द॰) । छाक ।—विहार (शब्द०) २. गाली । अपशब्द । ३. शाप । कुबई'--वि० स० के+इण्ठखज] खोड़ा । विकृाउँग । ३०- कुवादो--वि॰ [ स० ॐ+ वादिन 1 व्यर्य का विवाद करनेवाला । है। जति सुरवा महशु को पूत गणेश को दत उपार लियो । उ०--श्री शंकराचार्य जी ने उस कामकीतुकवाद को, इस यम को वश के पुनि वाहन का जिन तोरि विपाए कुबड कियो । ढंग से समझ के कुवादी संवड़ का बाद में परास्त किया। -हनुमान (शब्द॰) । --भक्तमाल (०) १० ४६७। कुन-सा पु० [फा० कदवह! ३, छोटा गु बंद । दुजा । गुमटी । ३. कूवानि -सा ४० [सं० कु+ह वानि बुरी अदित] बुरी टेव । गुदद के आकार की पीठ । कुवर । बुरी लत । कुटेव । वसा पु० [?] एक जूते जा गिलहरी के आकार का होता है। कुवानी'--सम्रा सो० [सं० कु+वाली] बुरा बोल । अशिष्ट ब्दि। वर्ष----सुबा पु० [सं० कुज) कुवड़ा। | अम गल वात । | वजा-सा बी० [सं० कुञ्ज! ३० 'कुब्जा' कुवाना५---सा • [सुकु -+वनी ( वाणिज्य ) 1 बुरा व्यवसाय । यIT-सुवा बो० [हिं० कुजा) दे० कुव्जा' । उ०-ऊधो वे1ि. खाव वाणिज्य । उ०—अपन चलने से कीन्ह कुवानी । लाम सिधारी ब्रजचे तुन जात हम हारे । नट नागर सो यो कहियों न देख मूर भई हानी !-—जायसी (शब्द॰) । कुज्या को न विसारे - नद०, १० ४५ । कुबासन--सी स्त्री० [अ० कुवासन] ३० 'कुवासना । ५६'-सा पु० [स० कुब्ज + हि० है । (प्रत्य)] [स्त्री० कुबड़ी] वह कुविचार-वि० [स० कुविचार! दे० 'कुवि वार' । पुरुष जिस पीठ देवी हो गई है या नुक गई हो । उ०-- कुविचार ---सपा जी० [सं० कुविचारिन्। दे० 'कुविचारी। -*