पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४७१

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९६६ कृपक उ०---अपने उन अग्रगण्यों की कुनीति की हानियों कछ सझने खानदान । ३० -इनकी बदौलत उसुकै कुनबे ने खूब चैन किए ! और ७०, पृ० १४। लगी है ।—प्रेमघन॰, भा० २, पृ॰ २४५ ।। मुहा०—कुनबा जोड़ना= नाते गोते के लोगों को इकट्ठा करना। कुनेरा-सुन्ना पु० [हिं० सुनना] लोहे पीतल आदि के बरतन परिवार जुटाना । उ०—कही की ईट कहीं का रोडा। की कुनाई करनेवाली जाति और उस जाति का व्यक्ति । भानमती का कुनबा जोड़ा । कुनैन--संज्ञा पुं० [अ० क्विनिन) एक प्रोषधि जो अग्रजी चिकिता में ज्वर के लिये अत्यत उपकारी मानी जाती हैं । कुनाइन । कुनवी-सी पुं० [ सृ० कुटुम्ब, हि० कृनदा ] हिंदु प्रो की एक जानि विशेप- यह एक पेड़ की छाल का सत है, जिसे तिकोना कहते जो प्राय खेती करती है। कहीं कहीं ये लोग अपने को गहस्य हैं । यह पेड़ पहले दक्षिण अमेरिका में ही होता था पर कहते हैं। अब यह भारतवर्ष के नीलगिर, मैसूर, तिकिम अादि ऊँचे नई सुबा ली० [देश॰] एक कंटीला छोटा पैड, जिसमें बहुत मी पहाड़ी स्यानो मे भी लगाया जाता हैं । यह दो ढंग से लगाया पतली टहनियाँ होती हैं। जाता है। कहीं तो बीज वकिर' पघि उगाते हैं और कहीं विशेप-इसकी छाल ऊपर से सफेद होती हैं। पत्तियाँ ३-४ डालियाँ काटकर कलम लगाते हैं। इसके बीजो को घना अगुल की होती है । गरमी के दिनों में इसमें बहुत छोटे-छोटे बोते हैं और खुव सिंचाई करते हैं। ऊपर से फून अादि पीने फूल लगते हैं। इसकी लुकडी बहुत कड़ी होती है अौर्य की छाया भी करते हैं । ४०-४१ दिनों में अँखुए निकल खेमों के छ ? आदि बनाने के काम में आती है। अाते हैं । जब दो या तीन जोड़ी पत्तियाँ निकल ग्री केवा-धमा पु°! हि० कुनना [ स्त्री० कुनवीं ] खरीदने वाला हैं तव पौधों को दूसरी जगह लगाते हैं। इसी प्रकार मनुष्य । वरतन अादि चरखे पर चढ़ाकर खानवाला मनुष्य। पौधों की कई वार उखाड़ उखाड़कर अन्यथ लगाना पडता वादा । है। ये पौधे चार या छह छह फुट के अउर पर कुनहसंज्ञा • [फा० कान्ह 11 वि० शूनही । १. द्वैप । मन- लगाए जाते हैं। सिकोना कई प्रकार का होता है—भूरी मान्य । मनमोटाव। उ०—कन कुन विन गुनई जिन छाल का लाल, छाल का रि पनी छाल का । लाल छाल तिन सुख सुना न पाव । सहुसवाह सुरनाय भृगु अत्रिव का पेड़ बड़ा होता है, भूरी छाल छ। मध्यम प्रकार का | सुत भुराव --विश्राम । (शब्द॰) । २ पुरानी वैर। होता है और पीली छाल का झाडी के आकार का छोटा क्रि० प्र०--करना। निकालना।—रखना । होता हैं। जव पौधा चार वर्ष का होती है तव उराको छाले नही-वि॰ [हिं॰ कुनह| द्रुप रखनेवाला। बुरा माननेवाला ।। मे सच्छी तरह क्षरि अा जाता है और वह काम यश कृनाइ-सा • ] हि० कुनना = खरीदना, खुरचना ] १. वह चूर हो जाती है । सातवें वर्ष से वारि कुछ घटने लगता है, इससे मी बुकनी जी किसी वस्तु को खरादन या खुरचन पर निकलवा १२-१४ वर्ष के भीतर ही सारे पेड़ छाल के लिये उखाड दिए है। बुरादा। २. खरादन की क्रिया । ३ खरीदने की जाते हैं। जड़ में क्षार का अश विष होता है। इससे यह सौर भागों की अपेक्षा बहुमूल्य चमझी जाती है। कुन -सा पु० [सं०] एक पहाड़ी पक्ष ने] । कन्याई--सच्चा पु० [= बुरा + न्यायी, हि० ग्याई अन्याय या 14 - पु० [सं०] १. वेवडर। वातावर्त २ दौ निधियों करनेवाला । अन्यायो । ३०–एकहि भूल सवै उपजाई । में से एक ।। भेंटयो वैज़ अहे फुन्याई ।--कवीर सा०, पृ० ६ । नाम-सबा पुं० [सं०] कुख्याति | वदनामी । उ---| देवून इरि | कन्याय--सुवा पुं० [+ ग्यप] अन्याय । न्यायविरुद्ध काम । उ०-~ । सवन को कह अपना किया बालक पे तेग वाही सो कुन्याय सल्ला !-शिखर, पृ० ६२ । कुनम सूर (शब्द॰) । कपखि -सा पु० [सं० हो+पसिन्] बुरा पक्षी । कट ब्द चने- क्रुि० ५०--$रना ।-ना । वाला पक्षी । दुप्ठ पक्ष । उ०--इंस सु मनि सरोवरो, छपरि नको सेवा ० [सं०] कातिल पक्षीं। कायल 1 परभृत [को०]। अाया वासु । सपति मागे कुपवि की शिउ छुटे विन पासु । नd५)वि० [३० क्वाणते। शुब्द कारवा. हुमा । 1 जारी रता प्र०, मा० १, पृ० १०५। इम। । वलित हुमा । बजता हैसा । झनकार करता है । कृपृथ-स। पुं० [सं० पथ] [वि० रुपयो ] १ बुरा मा । ३. निषिद्ध आचरण । ऋचाले । उ०—रघुव सिंच व अहर्ज ३०-निरुणा टि कुनित कई छाचुर। झनझार । इदये सुमाऊ । मन पथ पग घर म ऊ ।—तुलसी (शब्द॰) । चाकी चमक बैठा हुभ मातिने हार--सूर (शब्द॰) । क्रि० प्र०—पर चलना। °५६° केनन +इया (प्रत्य॰)] वाइनबाल; व्यक्वि । | ३ बुरा मत । फुत्सित सिद्धांत । उ०-चैरात १५ ५ गई नयास पु० दि० कुना कुनाकत कृतवाला। छरे । कपट कलेवर कनिमल भई ।—मानते, १।१२।। मासु • ३० का, हि० कानिया काना । उ०-वाम | के वक्त वह थक कर दावार छ अनिया से पीठ लुगा बंई कुप---सुधा पुं॰ [देश॰] घास, भूचा, पुमा भादि का ३५ (०) । कृपक-सा पुं० [फा० कवक ] एक पक्षी विस्की अावा मु। । अमा ५।-फस1० ५० ५५! होती हैं। ॥ ९ [सं० * *नाविवर्तीति । इरी नीधि । सुविचार | मजदू।।