पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४७०

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कुतुब कृत्स्य यौ॰—कुतुब जनबी = दक्षिणी ध्रुव । फुतुबनुमा । कुतुब सिमाली, है और यह जरा रे खटके से जाग उठता है। अपने स्वामी | कुतुबशमाली = उत्तरी ध्रुव ।। का यह बहुत शुभवितफ अौर मक्त होना है। कि किसी जाति कुतुब-[अ० फिताब का ननु व०] पुस्तक । किताबें [को॰] । के कुले की प्राण पापित वहुत प्रपल होती है जिसके कारण कुतुबखाना--सच्चा पुं० [फा० कुतुबखानह] पुस्तकालये । वह किसी के पैरों के निशान मूवक उसके पास जा कुतुबनुमा सझा पुं० [अ० कुवनुमा] एक यत्र जिससे दिशा का पहुचता है। शिकार में भी इससे बहुत सहायता मिलती | ज्ञान होता है । दिग्दर्शक यत्र । है । पागल कुत्ते के काटने से मादमी उस फी वृरह से नुकने विशेष-- यह एक छोटी द्धिविया के ग्रामार का होता है, जिसके लगता है और प्रायः कुछ दिनों में मर जतिा है। बरसात भीतर लोहे की एक सूई के मुह पर अयस्कात की शक्ति रहती | में इसके विप का दौरा अधिक होता है । काटे हुए स्थान पर है जिससे वह सदा उत्तर दिशा की ओर रहा करती है। यह कुचना घिसकर लगाना लाभदायक होता है। यत्र सामुद्रिक नौका और मापको के काम आता है। यौ०-कुत्ते खसी = व्ययं और तुच्छ कार्य । कुतुबफरोश-सज्ञा पुं० [फा० कुतुफश पुस्तकविक्र ता । कितवें महा---पया कुत्त ने की है= क्यः पागल हुए हैं : उ०- | बेचनेवाला ।। क्या हमे कुत्ते ने काटा है जो हमें इतनी रात को वह जाएँगे ? कुतुबमीनार--सज्ञा स्त्री० [अ० कुत्बमीनार] पुरानी दिल्ली की एक विशेप-साधारणत पागल कुत्ते के काटने से मनुष्य परगन हो। वहुत ऊ ची मीनार । जाता है इसी से यह मुहावरा वना है । इसका प्रयोग प्राप विशेप-कहते हैं इसे गुलामवण के वादशाह कुतुबुद्दीन ऐबक ने प्रश्न के लिये होता है और काकु अलकार से मर्य सिद्ध निर्मित कराया था। इसी के पास लोहे की एक लाट है जिसे होता है। कुतुब वाहव की नाट कहते हैं । यह लाट चौहान राजा पृथ्वी कुत्ते ने नहीं फाटा है = दे० 'क्या कुत्ते ने काटा हैं ? कुत्ता राज द्वारा निर्मित कही जाती है। घसीटना=नीच और तुच्छ कार्य करना । कुत्ते की मौत कुतुबशाही--- सच्चा स्त्री॰ [अ०] दक्षिण भारत के पाँच वहमनी राज्यों मरना=बहुत बुरी तरह से मरना । कुत्ते कोई उठना= मे से एक । (१)पागल कुत्ते के काटने को लहर उठना (२) अचानक कुतुरझा- सज्ञा पुं॰ [देश०] एक हरा पक्षी जिसकी चोच, पीठ और यी कुसमय में किसी वस्तु के लिये अतुर होना । कुत्ते का

  • पर लाल होते हैं ।

दिमाग होना या कुत्ते का भेजा खाना=बहुत अधिक वकषाद कुतुली- सच्चा नी० [देश॰] इमली का कोमल फल, जिसके बीज करने की शक्ति होना। बहुत वक्की होना । कुत्ते की दुम= । मुलायम हो। केंटिया ।। कभी अपनी बुरी चाल न छोडनेवाला। जिसपर समझाने कुतू—संज्ञा जी० [सं०] चमड़े की वह कुप्पी जिसमे तेल रखा जाता है। वुझाने या सत्सर्ग आदि का कोई प्रभाव न पढे ।। कौ] । विशेष- कुत्ते की दुम सदा टेढ़ी रहती है, वह कभी सीधी नही कुतूणक-सज्ञा पुं० [सं०] दे॰ 'कुथ' । कुतूहल--सञ्ज्ञा पुं० [सं०] [कुतूहली] १. किसी वस्तु के देखने होतt 1 इमी से यह मुहारा वना है। २ एक प्रकार की घास जो कपडों में लिपट जाती है और जिसे या कि बात के सु ने की प्रबल इच्छा। उत्कय । २ वह लपटौवी कहते हैं। ३ फल का वह पुजा जो किसी चक्कर वस्तु जिसके देखने को इच्छा हो । कौतुक । उ०—चन तो मेरे को उलटा या पीछे की मोर घूमने से रोकता है ४ लेकडो लिये ६ तूहल हो गया ।- साकेत, १०, १३८ । ३ क्रीड़ा। फा एक छोटा चौकोर टुकड़ी जो करगहने में लगा रहता है। खिलवाइ । उ०-काम् कुतूहल मे विलस निशि वीरवधू मन- मौर जिसके नीचे गिरा देने पर दरवाजा नहीं खुल सकता। मान हरे ।—केशव (शब्द०) ४ अाश्चर्य । अचमा ५ बिल्ली । ५ संदूक का घोडा। ६. नीच या तुच्छ मनुष्य । नायिका का एक अनकार । कुतूहली-वि० [सं० हरिन्] २ जिसे वस्तुप्रो को देखने यो कुत्ती--सम्रा वी० [हिं० कुता] कुकुरी । कुतिया । कुत्तों की मादा । जानने की उत्कठा हु | करे तमाशा देखनेवाला । उ०—यदि कुत्र–क्रि० वि० [ सं०] कहाँ । किस जगह ? किस वातावरण में बहू मुझे बहुत कुतुहल न समझे तो मैं एक बात जानने के [को०] । लिये उत्सुक हैं। - जिप्सी, पृ० २६७ । २ कौतु की। कुर्स- सच्चा पुं० [सं०] एक ऋषि का नाम, जिनकी बनाई हुई वहुत सी खिलवाड़ी। ऋवाए ऋग्वेद में हैं। कुतृण-सज्ञा १० [सं०] कुभो । जलकु । अाकाशमूली [को०)। कुत्सन-संज्ञा पुं० [सं० ] [ वि० आत्तिन ] १. निदा । २ नीच कुत्ता--सच्चा पुं० [देश॰] [स्त्री० कुत्ती] १. भेड़िए, गीदद काम । निदित काम। अौर लोमडी अदि की जाति का एक हिसक पशु जिसे लोग कुत्सा–संज्ञा स्त्री॰ [सं०] निंदा । कुँत्सिव--सी पुं० [सं०] १, कुष्ठ या कुः नाम की मौषधि । २. साधारणत घर की रक्षा के लिये पालते हैं। श्वान । कुकुर। | कुडा। कोरैया।। विशेष—इसकी छोटी बड़ी अनेक जातिय होती हैं और यह सारे कत्सित-वि० १ नीच । अधम । २ निदित । गहित । खराव । संसार में पाया जाता है । इसकी श्रवण शक्ति वहुत प्रबल होती कुँत्स्य-वि० [सं०] निंदनीय । निदा के योग्य ।