पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४७

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उतरना उतरिवौ की तैयार होना । जैसे, मोजा उतरना, थान उतरना, कसीदा चित से उतरना=(१) विस्मृत होना। भूल जाना । (२) उतरना । जैसे, चार दिन के बाद यह मोजा उतरा है । (८) नीचा ऊँचना । अप्रिय लगना। अश्रद्धा भाजन होना । जैसे- ऐसी वस्तु का तैयार होना जो खराद या साँचे पर चढ़ाकर उसकी चाल ऐसी है कि वह सपकै चित्त से उतर जाएगा। बनाई जाय । (६) भाव का कम होना । जैसे, गेहू का भाव चेहरा उतरना= मुख मलिन होना। मुख पर उदासी छाना। आज कल उतर गया है। (१०) डेरा करना । ठहरना । टिकना । जैसे, उनका चेहरा अाज हमने उतरा देखा । चेहरे का रंग उतरना -दे० 'चेहरा उतरन' । । जैसे, जव अप बनारस अाइए तब मेरे यहाँ उतरिए। ११ नकल उतरना--क्रि० स० [ स० उत्तरण ] नदी, नाले या पुन को पार होना । खिचना । अकित होना । जैसे, (क) तुम्हारी तसवीर करना । उ॰--लेवन दीव पय उतर करारा। चई दिसि कहीं उतरेगी । ( ख ) ये सर्व कविताएँ तुम्हारी कापी पर फिरेउ धनुप जिमि नार। |--मानस २॥१३३ ।। उतरी हैं । १२ बच्चों का मर जाना । जैसे, उसके बच्चे हो उतरवाना-- क्रि० स० [हिं० उतरना का प्रे० रूप ] किसी को होकर उतर जाते हैं। १३ भर आना । संचारित होना । उतारने के कार्य में प्रवृत्त करना ।। जैसे, नजला उतरनी । दूध उतर ना। फोते में पानी उतरेना। उतरहा --वि० [हिं० उत्तर+ही ( प्रत्य० )], [ ० उतरन्न । जैसे, उसकी माँ के थनो में दूध ही नहीं उतरता १४ फलो का | उतरवार। उत्तर का । पकने पर तोडा जाना । जैसे, तुम्हारी ओर खरबूजे उतरने उतराई-- सुज्ञा स्त्री० [हिं० उतरना] १ ऊर से नीचे आने की लगे या नहीं ? १५ भभके में स्विच कर तैयार होना । खौलते क्रिपा । २ नदी के पार ग्राने का महसूल या मजूरी । उ०---- हुए पानी में किमी चीज का सार उतरना । जैसे, यहाँ अर्क कहेउ कृपाल ले हि उतराई, ३ वट चरन गहे प्रकुनाई।--मान किम जगह उनरता है ? ( ख ) अभी कुसुम का रंग अच्छी । २।१०२ । ३ नाव अादि पर से उतरने का स्थान । ४ तरह नही उतरा है, और खौलायो । (ग) अभी चाय अच्छी नीचे की ओर ढलती हुई जमीन । उनार । ढाल । तरह नहीं उतरी। १६ लगी या लिपटी वस्तु का अलग उतराना-क्रि० अ० [सं० उत्तरण] १ पानी के ऊर गाना । पानी होना। सफाई के साथ कटना । उचड़ना। उघडना । जैसे, की सतह पर तैरना । जैसे,—काग इतना हल्का होता है कि कलम बनाते हुए उसकी उँगली उतर गई (ख ) एक ही हाथ पानी में डालने से उतराता रहता है। २ उबलन । उफान में बकरे का सिर उतर गया ( ग ) बकरे की खाल उतर खाना । उ० --ताही समय दूध उतराना, दोरो तुरत उनार न गई। १७ धारण की हुई वस्तु का अलग होना । जैसे, उसके जाना [--विश्राम ( शब्द० ) ३ पीछे पीछे लगे फिरना । शरीर पर से सव कपडे लत्ते उतर गए । १८ तौल में ठहरना । जैसे--हि बच्चा कहना नहीं मानता साथ ही साथ उतरता जैसे, देखें यह चीज तौल में कितनी उतरती है। १९ किसी फिरता है । ४ प्रकट होनी । हर जगह दिखाई देना। इधर बाजे की कसन का ढीला होना जिससे उसका स्वर विकृत उधर वहका फिरना। जैसे, अाजकल शहर में कावुली बहुत हो जाता है। जैसे, सितार उतरना, पखावज उतरना, ढोल उतरराए हैं। (ख) घायल ह्व कर सायल ज्यो मृग त्यो उतही उतरायल घूमें । देव (शब्द॰) । उतरना । २० जन्म लेना । अवतार लेनी । जैसे,— उतराना--क्रि० स० [ उतारना क्रिया का प्रे० रूप ] उतारने का तुम क्या सारे संसार की विद्या लेकर उतरे हो ? २१.। सामने आना। घटित होना, जैसा तुम करोगे वैसा तुम्हारे । काम अन्य से कराना उतारना' । उतरायल)--वि० [हिं०उतारना ] उतारा हुमा व्यवहार किया आगे उतरेगा । २२ कुपती या युद्ध के लिये अखाडे या मैदान हुप्रा । पुराना । जैसे,—-उतरायल कपड़े ( शब्द०)। में माना । जैसे, (क) अखाड़े में अच्छे अच्छे पहलवान उतरे उतारी@f- वि० [सं० जनर+हि० प्रारी प्रत्य० ) उत्तर को हैं । (ख) यदि हिम्मत हो तो तलवार लेकर उतर आयो । ( हवा । २३ अादर के निमित्त किसी वस्तु का शरीर के चारो तरफ उतराव- सज्ञा पुं० [हिं० उतरना ] उतार । ढाल । उ०--जिमना घुमाया जाना । जैसे, अारती उतरना, न्यौछावर उतरना । मसूरी इत्यादि स्थानों में जहाँ सरकार ने पत्थर काटकर सुडके २४ तरंज में किसी प्यादे की कोई वडा मोहर बन जाना । जैसे, फरजी उतरा और मात हुई । २५- निकाल दी हैं वहां चढ़ाव उतरावे तो अवश्य रहता है, पर लोग वसूल होना । जैसे,-:( क ) कितना चदा उतरा ? ( ख ) बेखटके घोडा दौडाते च ने जाते हैं |---शिवप्रसाद (शब्द०)। हुमा सुव लहन उतर अायो । २६- स्वीस भोग करना । उतरावना)–वि० सं० [हिं० उतारना क्रिया का प्रे० रूप] उतारने ( अशिष्ट की 'मापा)। २७---अग पर चढ़ाई जानेवाली | का काम किसी और से कराना। चीज का पककर तैयार होना । जैसे, पूरी उतरन । पाग उतराहा ---क्रि० वि० [सं० उत्तर+हि० हा० (प्रत्य॰)] उत्तर की उतरना। ग्रोर । उ॰--- मिथुन तुजा कुम पछ। हां, करक मीन विरकि महा०—उतरकर= निम्न श्रेणी का । नीचे दरजे का। उ००- उतराहा ---जायसी (शब्द॰) । वह जाति में मुझसे उतरकर है।---ठेठ हिदी० १ ० ६ । गले में र उतरल ज +..ra -वि० [हिं० ] दे० ' ण' । उतरना या गले के नीचे उतरना=(१) निगल जाना। उतरिवौ --झि० अ० [ हिं०] दे० 'तग्ना' ३० जैसे,—-या करें, दवा गले के नीचे उतरती ही नह। । (२) अरपा ती मन में घंसना । चित्त में असर करना । जैसे, हमारी कही बात लागी निसि बासर विलोचननि, बादौ परवाह भयौ नावान तो उसके गले के नीचे उतरती ही नहीं। उवरियो ।-मतिराम ग्रे २, पृ॰ ३५६।।