पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४६९

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- --- -- - - ६२७ कुदाम कय- सा पुं० [सं०] १ फुयी । कयी। २.हाथी की झन । ३. कुदलाना–ऋ० अ० [हिं० कदन] कदते ए चरी । उठना । रथ, पालकी अदि का अोहार 1४ एक कीड़ा । ५ कूदना । उ०—-एहि विधि वरपऋतु के माहीं । वन वेरू प्रात काल स्नान करनेवाला ब्राह्मण । ६ कुश (को॰) । तिन सम कुदलाही !--(शब्द०)। कुबनी---क्रि० अ० [हिं० कयना वहुव मार खाना। पीटा जाना । कुदलीसा धी० [हिं० कुदाली दे० 'कुदाल'। कुयरी--- ० ० १ = पृथिवी+ स्तृ= स्तरण, मास्तरण] कुदश-संशा बी० [स० फु+शा दुरी गति । बुरी दशा ।। दे० 'क्रय' । । अधोगति । उ०----कार्यर्ताओं का विशेष ध्यान देश की कुदया कुरू-सा पुं० [स० कुतूण] अाँख का एक रोग । की अोर खीचा जाय |--- प्रेमघन॰, भा॰ २, पृ० २०६। कुथा-- सझा ची० [त०] १. कैथा । कथरी । २. हाथी की झून (को॰) । या। २• हाथी का झन (को०)! कुदसियाँ+--वि० स० [अ०] फरिश्ता 1 पवित्र उ०--ॐ महशर लग कुयप्रा-सा मं० [सं० कुतुणक] बालकों की अाँख का एक रोग रहे प्रो जाजा हर तर। अछे नित कुदसियों उसपर झू बर।-- जिसमें पल के भीतर दाने पड जाते और वही खुजली दक्खिनी॰, पृ॰ २३७ । होती है । कूदाँव-संज्ञा पु०सै० कु+हि० दौव]१.बुरा दवि ! कुवात् । विश्वास कुदई-सा बी० [हिं० कोदई] दे॰ 'कोदो' । घात। देगा । धोखा। उ०—पूरे को पूरा मिले १र पर कुदकडा--संज्ञा पु० [हिं॰ कूदना] दे० 'कुदक्का' । उ० ---जिग्नप्छी दाँव । निगुरा तो कुव्वट चले, जब तुम करै कुदाँव -- गोदी में जी चाहें खुल कर लॅट, हँसे, शरारत करें, कुकड़े कवीर (शब्द॰) । | मारें ––चाँदनी०, पृ० ९२ । । क्रि० प्र०—करना ।—देना उ०-समुझि सुमित्रा राम सिय कुदकना--कि० अ० [हिं० कूदना उछलकूद करना ! ३० –मेमन । | रूप सुन सुमाव । नृपसनेह लुखि धुने सिर, पापिनि दीन्ह से मेघों के वल, कुदकते ये प्रमुदित गिरि पर --पल्लव, १० २० । कुदाँव —तुलसी (शब्द०) । f२ शौचट ! बुरी स्थिति । संकट की स्थिति । ३. बुरा स्यान। कुदक्कड़-वि० [हिं० कूदना याकुबक + ३ (प्रत्य॰)] कूदने में । विकट स्थान ।। | कुशल । कूदनेवाला । कुदाई - वि० [हिं० कुदाँव बुरे दुग से दांव घात करनेवाला कुदक्का-सा पुं० [हिं० कूदन] उछलकूद ।। छली। विश्वासघाती ३०----बार बहारन मोर ही हौं पठई मुहा०--कुदक्की मारना = इधर उधर कूदते फिरना। मतिहीन मतो के लुगाइन । छेरी किंवार उघारत ही पलि मोर। कुदरत--सच्चा • [अ० कु उन] १.शक्ति । प्रभुत्व । इखतियार । चकोर कठोर कुदाइम ---देव (शब्द॰) । सामथ्यं । उ०—कुदरत पाई खरी सौं चित सो चित कुदाउँ सुझा पुं० [हिं॰] दे॰ 'कुदाँव' । ! भवर विलंबा कमल रस अब कसे उहि अाय }-- कवीर (शब्द॰) २ प्रकृति । माया । ईश्वर शक्ति । | कूदता--सवा पुं० [सं० कु =१ वुरा । २ पृथिवीं )+दाता] १. 3 कृपण । २ पृथ्वी का दान देनेवाला । उ०—कृतघ्नी कुदावा महिमा । उ० उ०—कुदरत वाकी मर रही, रसनिधि सेवही कुकन्याहि चाहै ।--राम च०, १० ६६ । जाग । ईधन विन वनि यों रहे ज्य पाहन में आग ।- रसुनिधि (शब्द॰) । कुदान-संवा पुं० [सं० छु+नि] १ बुरा दान (लनेवाले के लिये) । विशेप---शय्यादान, गजदान भादि लेनेवाले के लिये बुरे समझे मुहा०- कुदरत का खेल = ईश्वरीय लीला | प्रकृति की सूचना । | जाते हैं। ३०-पढ़' फारसी वेचे तेल । यह देखो कुदरत का खेल । २ कारीगरी । रचना । २. कुपात्र या अयोग्य यादि को दान । कुदान--संवा बौ॰ [हिं० /कूद +पान (प्र०)] १ कदने की कुदरत - वि० [अ० कुदरती 1 हे० 'कुदरती। उ०—ग्रप्पिय ३५ क्रिया 1 कूदने का भाव । २.वहुत पहुँचकर कहना १ दूर की भाइ जहाँ मिलि पान । कुदरति कया एक परमान |--१० t०, २४१३३ १ । कोड़ी लाना। ३ उतनी दूरी जितनौ एक बार कूदने में पार कुदरती-वि० [अ०] १ प्रतिक । स्वाभाविक । ३. दैवी । की जाय । जैसे—वह पाँच पाँच गज फी कुदान मारती हैं। ईश्वरीय । क्रि० प्र०--मारना । ४ कूदने का स्थान । जैसे—लोरिक की कुदान । SIT-संगी पुं० [सं० कुद्दात] कुदार । ३०- कुदरा खुरपा चैले गुनाफा छुरा कतरनी । नहुनी वहन परी डरी हुँ झरना । कुदाना--क्रि० स० [हिं० कूदना] १. कूदने का प्रेरणार्यक रूप । झरनी।- सूदन (शब्द)। कूदने में प्रवृत्त करना । ३०- सन्मुख जाइ सुजि फुदाई । न-वि॰ [सं०] जो देखने में बुर। मालूम हो । कुरूप । बदसूरत । तुजत शुल चाट्यो रिसि छाई -गोपत्र (नन्द०) २ घोड़े भद्दी । भव्य । ३--कामी कृपण कुचील कुदर्शन कौन अदि पर चढ़कर उसे दौडाना । जैसे--पोड़ा कुदानः । । पा करि तारयो । वाते कहत दयालु देव मूनि फाहे सूर कुदाम-सी पुं० [से० + हि० दाम ] खोटा सिक्का । खोटा विचारयो - सूर। (शब्द॰) । रुपये।।उ०---जौ १ चैराई राम की करो न लजातो ! तो तु दाम कुदान ज्यो कर कर के विकातो .तुल 7०, १० ५३५। । | ३३१ ।