पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४६८

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१६ कुणपाशी विशेप १२ प्रकृति या मुटठी छ। एक कुइव और ४ कुडब का बातन गूढ यह, बूढने हैं रंग होइ ।---विहारी (शब्द०) । एस प्रस्य होता है । पर वैद्यक से कुडव ३२ तोले का होता है २ बुरी तरह का । बदमजा। कुढगा । और प्रकृ1ि १६ तौल की मानी जाती है । कुढगा--वि० [हिं० कुठ ग] [चौ० फुढगी] १ बुरी चाल का कुडा-सा पुं० [सं० फुटज] 1 इद्र जौ का वृक्ष । कुरैया । बेशऊर । उजड्डे । २ बेढंगा । भद्दा । कुडा-- संज्ञा पुं० [अ० करहह, हि० कुढ़ा] दे॰ कुढ़ा' । कुढगी-वि० [हिं० कुढग] कुमार्गी। बुरी चालचलन का । उ०—- कुडाली-सच्चा सी० [सं० कुठारी] कुल्हाडी (लश॰) । परयो एक पतित पराग तीर गुग जू के, कुटिल कृतघ्नो कोठी कडिसुझा पुं० [सं०] देह । शरीर (को०] । कुठित कुढ़गी अध।-पद्माकर (शब्द )। कुडि का-सा श्री० [सं०] मृतिका का या काष्ठ का बना हुआ जल कुढ़-सच्चा धौ० [सं० क्वथ् प्रा०, ढ, कुत्थ] दे० 'कुढ़न'। पात्र [को०] । कुढन-सच्ची भी० [सं० ऋछ, प्रा० कुड्ढ] १. वह क्रोध जो मन ही कडिठिसय जी० [सं० कुदृष्टि] कुदृष्टि बुरी नजर । उ०-रूप भन रहे । वह क्रोध जो भीतर ही भीतर रहे. प्रकट न किया हुमर वैरी भए गेल देइवि कूडिठि साल है--विद्यापति पृ०३५०॥ जाय । चिढ़ । २ वह दुख जो दूसरे के अनिवार्य कष्ट की कृडिया-सच्चा पुं० [सं० कुण्ड, हि० कु कूड, कुड़ि+ईया(प्रत्य॰)] देखकर हो । | टॉप । उ०—सुन वे साँवलिया कुडिया दे ऊपर की हुया फिरदा कुन । कुढना-क्रि० अ० [सं० ऋद्ध,या ऋष्ट,प्रा० कुंडढ] १ भीतर ही भीतर सिपाही ।—यनानद, पृ० ४६७ ।। क्रोध करना । मन ही मन खीझना या चिढ़ना । बुरा मानना । कुडिज-सज्ञा पुं० [सं० कुडिका] स्नान कराने का पाय । उ०- २ इहि करना ! जलन !उ०-चद्रगुप्त से उसके भाई लोग माटी के कुडिल न्हवाग्रो झटोले सुताओ - पोद्दार अभि० बुरा मानते थे और महानद अपने सब पुत्रो का पक्ष करके इससे ० पृ० ६१७। । कुढता था।--हरिश्चंद्र (शब्द०) । ३ भीतर ही भीतर दुखी कुड़िश- सुझा पुं० [सं०] एक प्रकार की मछली (को०] । होना । मसोसना । उ०—श्रीकृष्णचद इतना कह पाताले कूडी-सच्ची झी० [सं०[ कुटी । कुटिया । कुटीर [को०] । पुरी को गए कि माता तुम अब भत कुडो, मैं अपने भाइयों को कडी--संज्ञा स्त्री॰ [प०] लड़की । कन्या [को०) । अभी जाय ले आता है ।-लल्लू । (शब्द०)। ४ दूसरे के कष्ट कंड क' सम्रा पुं॰ [देश॰] प्राचीन काल का एक प्रकार का बाजा को देख भीतर ही भीतर मसोस कर रह जाना । । जिसपर चमडा मढा होता था । कुढ़ब वि० [स० कु+हि० वब] १ बुरे ढग का । वेढव । २ कठिन । कड़के-सच्चा स्व० [फा० कुरक] अडा न देनेवाली मुरगी । दुस्तर ।। कूडकर-वि० व्यर्थ । खाली । कुढा- सच्चा पुं० [अ० करवाह.] सूजाक के रोग में वह गोठ जो पेशाव | महा०—उर्फ बोलना == व्यर्थ होना । खाली जाना । की नज़ी में पड़ जाती है और जिसके कारण पेगाव बाहुरे कडेर-सवा स्त्री॰ [हिं॰ कुडेरना] वह नाली जो कुरिया में राब नहीं निकलता और वही पीड़ा होती है । यह गरेठ रक्त और १ का सी निकालने के लिये वनाई जाती है। पीब के भीतर जम जाने से पड़ जाती है। कुडेरना-क्रि० स० [देश॰] राब के वीरो को एक दूसरे पर इस कुढाना--क्रि० स० [हिं० कुना] १ क्रोध दिलाना 1 विढ़ाना।

  • प्रकार रखनी जिसमे उसकी जूसी बहकर निकल जाय।

खिझाना । २ दु बी करना। कलपाना । कुडौल-वि० [सं० कु+हिं० डौल] वेढगा ! भद्दा । । । कुढावनाएं-क्रि० स० [हिं० कुढ़ाना] ३• कुढ़ाना' । उ॰—मौर कुडमल-सबा पुं० [सं०] १. कली। मुकले । २ इक्कीस नरको मे से वैष्णव, मात्र को काहू प्रकार सों कुठावन नाही !-दो सौ एक,नरक । ३. नोक । अनी (को॰) । बावन ०, पृ० ३३९ । कुण'—संज्ञा पु० [सं०] १ चीलर । २ नामि का मैल । कीट । ३ कुड्ध-सच्ची पुं० [सं०] [स्त्री॰ कुड्या] १ दीवार । भित्ति । ।

  • यौ॰—कुडपच्छेदी= सेंध लगानेवाला चोर । कुडघच्छेद्य =

बच्चा । उ०—कोल कोल कुण कचर माही । वल ते भिरे दीवार का गड्ढा । कुडघमत्सी, कुड्यमत्स्य= छिपकिली गृहण स्कोप तही ही ।--गोपाल । (शब्द॰) । कुण-सर्व ० [हिं०] कौन । उ०—चद वदन कई कारणइ । कुण धिका।। वर वरसी भीज कुवार ।—बी ० रासो, पृ० ७ । २ (दीवार पर) पलस्तर करना या चढाना । ३,उत्सुकता । कुणक-सच्चा पुं० [सं०] सद्य उत्पन्न हुँमा पशुशावका [को०] । कौतुहल (०] । कुणप-वि० [सं०] [वि॰ स्त्री० कुणी] दुगंधयुक्त । अशुचि गंध कुढयक- संज्ञा पुं॰ [सं०] दीवार । मिति [को॰] । कृढभार--- सच्चा पुं० [ १०, हि० कूडT] तुच्छ 1 नगण्य । उ०—६क. वाला [को०] । सुही दुजी सोहणी, तीजी सो भावती नारि । सुइने रुप्पे कुणप-सा ५० [सं०] १ मृत शरीर । शव । लापा । ३ ईगुदी । पच्चरी, ननिक' विनु नावे कुछयार !-सतवाणी०, पृ० ६६ ।। गोंदी । ३. राँगा । ४.वछ । भाला । ५. अशुचि [ध । दुर्ग में किये] । कढग'-सा पु० [सं० कु+हि० ग] बुरा ढग । कुचाल । बुरी रीति। कुणपा-सा • [सं०1रछी । भाली । कृढग, कुढग--वि० १ वुरे ढग को। बेढगा । भद्दा । वुर । उ०- कृपाशी-सी पुं० [सं० कुणपशिन्] १. एक प्रकार की प्रेन जो मुर्दै कुडग छोप तजि रग रली करति जुवति जग जोछ । पावस बाता है । मुर्गं बानेवाला जंतु । जैसे,ध, को, गीव!