पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४६७

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कुतु सपी । कण-सुवा बी० [सं०] छोटी चिड़िया मैना आदि ० । कुतरन----सञ्ज्ञा पुं० [हिं० कुतरना] कुतरा हुअा टुकड़ा। कणात-सज्ञा पुं० सं०] १. एक प्रकार की चिड़िया । २. कतरन-क्रि० स० [स० कर्तन =कृतरना] १ किसी वस्तु में से वहुत थोडा सा भाग दाँत से काटकर अलर करना । दाँत से अशोक का एक पुत्र [] । कुणि-संज्ञा पुं० [मुं०] १ तुन का पेड । ३ वह मनुष्य जिसकी बाहु छोटा सा टुकडा काट लेना । जैसे—(क) चूहों ने कई जगह | टेढ़ी हो गई हो या मारी गई हो। ३. नवव्रणु । अबुद । कपड़े कुतर डाले हैं। (ख) हिरन पौधो की पत्तियो कुनर गए हैं । २ किसी वस्तु में से कुछ अदा निकाल लेना । वीच ही में | गुनका क्वेि०] ।। कछ अंश उड़ा लेना। जैसे—५) रुपए में मिले थे, उसमें से कृत-क्रि० वि० [स० कुतस्] १ कहीं से । किस स्थान से। २ दो रुपए तुम्ही ने कुतर लिए ! कहीं। किसे जगह । ३ क्यो । क से [को०] । कुतग-ि--सज्ञा पुं० [हिं० कुत्ता] कुत्ता ! कुकुर । श्वान । उ०० कुतक—सा पुं० [हिं०] दे० 'कुतका' । कृतका-सज्ञा पुं० [हिं० गतका] १ गतका । २. मोटा इंदा । सोटा । दीन हौ दीन हीं दीन महा नटनागर के घर को कुतरा हौं । उ०—ले कुतका कहैं 'दम्म मदार' । राम रहै इनहू ते न्यारा । नट०, पृ० ३।। उ०—कबीर (शब्द॰) । ३ भाँग घोटने का डडी । मॅगघोटना । कृतरु-वि० [स० के -+तम्] बुरा पेड़ । उ०—कुतर फुपरपुर राजमग लव भूवन विख्यात ।—तुनमी ग्र०, पृ० १८ । महा०—कुतका दिखलाना या देखना= किसी चीज के देने से कतर्क-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] बुरा तेके । वेदगी दलील 1 चकवाद । विनडा । | साफ इनकार कर जाना । अँगूठा दिखलाना । कुनकोसा स्त्री० [हिं० कूतका] छोटी लकडी 1 छड़ी । उ०—अरघ कुतकी'- सज्ञा पुं० [सं० कतकिन्] व्यथे तर्क करनेबाना । वकवादी । वितडावादी ।। चद हैका दिए हेका गोल हुनार। हेका कुग्की हे दुवै एह दुष्ट अवतार –चा की अ०, मा० २, पृ० २६। । कुर्की-वि• कुतर्कदूपित । कृतक्का-सज्ञा पुं० [हिं०] दे॰ कुतका' । उ०—वहबंध वाँधि कुनालाई-सा पुं० [हिं० करना, तुलनीय अ० कत्ल = काट डालना] कुवा लीना दम दम कर दिवाना !-सुदर ग्रं॰, भा॰ २, हँसिया । । पृ० ८८५} कुतवार-सम्रा पुं० [हिं० कूतना + वरि] ( प्रत्य० ) वह पुरुप जो कुना–क्रि० अ० [हिं० कृतना ] कुतने का कार्य होना । कूती वंटाई के लिये वैते की फसल के कनेकृत करे। जाना । कतवार - सुज्ञा पुं० [सं० कोटपाल, कोतवाल] कोतवाल । उ0- कृत--संज्ञा पुं० [सु०] १ दिन का अठवां मूहूर्व जो मध्याह्न समय में नीं पौरी तेहि गढ मेंझियारा औं तहे किरहि पाच कृतवारा। होता है । २ मिताक्षरा के अनुसार अाठ वस्तुएँ जिनकी श्राद्ध जायसी (शब्द॰) । में प्रविश्यकता होती है, अर्थात्-ध्यान, खड़गपात्र या गैहे कृतवारी--सज्ञा स्त्री॰ [ म० कोटपाली, हि० कोतवाली ] १. के चमड़े का पात्र, नेपाली कंबल, चादी का दरतन, कुत,तिनु, कोतवाल का कान । उ०—शैप ने पायो अत पुमि जा की। गाय और दौहित्र। इसे कुतपाष्टक भी कहते हैं । ३ एक फनवारी । पवन बुहारत द्वरि सदा सुकर कुतवारी -सूर वाज। ३ वक्री के बाल का केवल । ५ सूर्य । ६. अग्नि । (शब्द॰) । २ कोतवाल का कार्यक्यान । कोतवाली । ७. द्विज । ८ अतियि । ६ माजा । १०. वपम् । बैल (को॰] । कतवाल-सज्ञा पुं० [हिं०] दे॰ 'कोतवाल' । उ॰—त्रापु भए कुतवान ११ अन्न (०) । १२. कन्या का पुत्र कि०] 1 १३ भली विधि लूटही ।—कवीर रा०, भा० ४, पृ० २।। कृश (को॰) । कृतवाली-- सज्ञा स्त्री० [हिं०] दे० 'कोतवाली। वाचा पुं० [अ० व्रतबह] १. वह धामिक व्याख्यान जिसे कुतारारामा ५ कूतार-सट्टा पुं० [सं० कु हि० तार] अडसे । प्रसुविधा ।। " , "" कुठाल--सा पु० [सं० कु+ताल ] संगीत में वह तान्न जो असामयिक इमाम जुमा ( शुक्रबार ) की या ईद की नमाज के बाद देता और अनियमित हो। उ०-ताल कुताल सप्त सुर जाने ।- है और जिसमें तत्कालीन खलीफा या शाह की प्रशंसा रहती माधवानल०, पृ० १६१।। है। दे॰ 'सृतवा' । उ०—कृतवा पढ्यो छ सिरतान् । वैठि कुतही-सज्ञा स्त्री० [हिं० कोताही] दे० 'कोताही' । तदत फेरी निज शान १–अर्ध०, पृ॰ ४ । । कुतिया- सच्चा स्त्री० [हिं० कुत्ती] कुत्तों की मादा 1 कुकरी । कुती । तर -सज्ञा पुं० [सं० कुतर्] १ बुरा वक्ष, नीम, ववून आदि । उ०—इह दसा स्वान पाई ऊ कुतिया सौं उरझत गिरत - उ- कुकब हूँ त ग्रा कुतर ऋगे चंदण पास —बाकी 7 ०, व्रज० ग्र ०, पृ० ११० । HT० २, पृ० ६३ । २ एक प्रकार का तृग जो कृपडे में चिपक कुतु क-सच्ची पुं० [सं०] १ ईच्छा ! अमिलोपा] लालसा ] ३. जाता है। इसे कूत्ता भी कहते हैं । चौतुक । कुतूहल । ३ उत्कट इच्छा या कामना [को०] । -- सद्या पुं० [सं० कुतर्क दे० 'कुनके' । उ०---कुपये कुतरक., कुतुप 41 Pa |न' । ---कपये कतरक, कुतुप सज्ञा पुं० [सं०] १ दिनमान का प्राठ्व मूहूतं । कुतप । २ तेल सच्चा पुं० [सं०] | कुचालि कलि कपट दंम पाखंड --मानस, १३२।। रख, मड़े की कुप्पी । तरकी--वि॰ [सं० कुतकन] दे॰ 'कुतर्की' । उ०—हरि हर । । । ० कुत्व] १. ध्रुवतारा । नेता । नायक । उ०- • कुतुब हैं वो खबर लिए मात्र से अपने रस ति मति ने कुतरको । तिन्ह क मधुर कया रघुवर की | १०, पृ० २६८ ।। मानस, १।९।।