पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४६४

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R कुटको कुटि' भी होता है । इसकी पत्तियां लबी लवी कठावदार मौर ऊपर की बात दूसरे से कर दो अदमियों में झगड़ा करनेवाला। को चौड़ी होती हैं । इसकी जड़ मे गोल गोल वेडौल गांठे चुगलखोर ।। पडती हैं जो अपध के काम में आती हैं। स्वाद में फुटकी कूटना-- सुद्धा पुं० [१० फूटना] १ वह मजार या हथियार जिमसे कडवी, चरपरी और रूखी होती है। प्रकृति इसकी शीतल है। कुटाई की जय ! ३ कुटे जाने की क्रिया ।। यह भेदक, कफनाशक तथा वित्तज्वर, श्वास, कोढ यौर कृमि यो०-फटना पिसना = ई और पोसे जाने का फाम । को दूर करनेवाली मानी जाती है । इसमें दीपक मोर मादक कुटना- क्रि० स० [हिं० फूटना] १ फूट जाना ! . मेरा यह गुण भी होता है । यह २ री से ४ रत्ती तुफ खाई जा सकती पीटा जाना। है। इसे कानी कुटकी भी कहते हैं। कुटनाई - सवा नौ॰ [हि०] दे॰ 'नपन'। पर्या०--तिवती । काडैराहा ! अरिष्टा । चक्र [गी । शकुलादिनी ।। कूटनान--क्रि० स० [हिं० फूटना] १ किमी स्त्री को बहकाकर कटुका । मत्स्यपि । नकुलासादिनी । मतपर्वा । द्विजागी । सुमार्ग पर ले जाना । २ करना । मलनेदिनी। कृष्णा । कृष्ण मेदा । कृष्णभेदी । महौषधि । कुटनापन----मझा पुं० [हिं० फुटना + पन (प्रत्य॰)] ६० 'कुग्नपन' । कटवी । अजनी कटु । वामनी । चिया । कुटनापा-सद्मा पुं० [हिं० फुटना+पा (प्रत्य॰) दे० 'कुटनपन'। २ एक जडी जो शिमले से काश्मीर तक पांच से दस हजार फुट कुटनी-सा बी० [सं० कटुनी] १ स्त्रिया हो वह कर उन्ह पर की ऊँचाई पर पहाड़ों में होती है। यह जिनशियन नाम की । पुरुप से मिलाने अथवा एक का संदेश दूसरे तक पहुँचानेवाली अग्र जी दवा के स्थान में व्यवहूत होती है । यह बल प्रौर। स्त्री। दुती । २ चुगली वाकर दो व्यक्तियों में झगढ र नेि- वीर्यवर्धक होती है। वाली स्त्र। इधर की उच्च सेनेवाली औरत । कुटकी- सज्ञा स्त्री॰ [देश ० ] १ एक छोटी चिडिया। कुटनोपन--सा पुं० [हि कुटनी+पन (प्रत्य॰) । ३० ‘कुटनपन' । विशेप-यह भारत के घने जंगलों में होती है और ऋतु के। कटन्तक–सपा पुं० [सं०] केवट मया । कोरू। अनुसार रग बदलती है । यह पाँच इच लवी होती है और तीन चार अडे देती है। यह कभी जोड़े में और कभी फुट रहती टन्नट-- सपा पुं० [सं०] १ श्योनाक । छका। २ केट है। बोली इसकी कडी होती है। यह पत्ते, फूप, बाल, कपास मोथी । केयर्त मुस्ता ।। आदि गृथकर घोंसला बनाती है । कुटप-सपा पुं० [सं०] १ अन्न की एक नाप । कुइव । २ घर से २ धादिंए के पेंच का वह भाग, जिसमें लोहे की कील या छडो लगा हुआ या समीपवर्ती बगीचा । ३ घत । तपस्वी । । में पेंच बनाया जाता है। कमल । पद्म [को०] । कुटेकी -सच्चा स्त्री० [हिं० कुटका= छोटा टुकड़ा ] कंगनी । चेना । कुटम -सधा पुं० [सं० कुटुम्च] दे० 'कुटु ३' । उ०- कुटम सेव कुटकीसज्ञा स्त्री० [सं० कट +9ीट] एस उड्नेवाला कीडा जो कुत्ते, करि खेस, करदे नै अदल पठाए ।--ह० म०, पृ० १२१ । विल्ली आदि पशु के शरीर के रोयो मे घुसा रहता है और कुटर--सच्चा पुं० [सं०] वह डंडा जिसमें मयानी की रस्सी लपेटी उन्हें काटता है। जाती हैं। कुटचारि -सञ्ज्ञा पुं॰ [सं० फूटचार] चुगुली । वाव । उ०--- कुटर, कुटर--- सपा पुं० [अनु॰] किसी भी वस्तु के चबाने का अस को अहि कुटीचर सग । के फुटचारि कीन्ह रस भंगा -- वि० पृ० ५३ । कुरु- सच्चा पुं० [सं०] १. काग। २ तबु । खीमा [को०)। कुटज---सा पुं० [सं०] १ कुरैया। कच । इद्र जौ । अगस्त्य मुनि । कुटल-सच्चा पुं० [सं०] छप्पर । छत [को॰] । ३. द्रोणाचार्य का एक नाम । ४, पद्म। कमल । कुटवाना-क्रि० स० [हिं० ‘कटन' का प्रे० रूप] फूटने की क्रिया कृटन ई-सज्ञा स्त्री॰ [हिं॰] दे॰ 'कुटनपन' ।। करनी 1 फूटने में तत्पर करना ।। कुटनपन, कुटनपेना-सच्चा पुं० [सं० कुट्टन अयया हि० कुटनी+पन कूटवारसा पुं० [सं० कोटपलि] गांव की गोड इत् । चौकीदार। (प्रत्य०) 16 कुटनी का काम । श्रियो को फोडने फासनै कुटारो- सपा सी० [सं० कोदपाल प्रा० कटुवाल = नगररक्षक, हि० को काम । दुत में में । २. इधर उधर लगाने का काम । कोतवाल, वाली] कोतव ने का कार्य । नगररक्षा या झगडा लगाने का काम । । चौकसी । दे० 'कोतवाली' । ३० -कैसे नगरि क कुटवारी, कूटनपेशा–सज्ञा पुं॰ [हिं० कुटन+फा० पेश] दे० 'कुटनपन' ।। चचल पुरिप विचपन नारी ।—कबीर ग्रं॰, पृ० ११३ । कुटनहारी-संज्ञा स्त्री० [हिं० कूटना+हारी (प्रत्य॰) 1 धान कटने कुटहारिका - सच्चा सौ" [सं०] दासी । सेविका । नौकरानी (को०] । का काम करनेवाली स्त्री । वह स्त्री जो धान कूट कर भूसी और कुटाई-सच्चा [हिं०फूटना] १ कूटने का काम । १ कूटने की चावल अलग करने का व्यवसाय करती है। मजदूरी । ३ किसी को बहुत अधिक पीटना । कुटास । कुटना सज्ञा पुं॰ [ हि० कुटनी ] १. स्त्रियों को बहुकाकर उन्हें कुटार- संज्ञा पुं० [हिं० काटना] नटखट टटटू । परपुरुप से मिलाने वाला अथवा एके का स देशा दूसरे तो कुटास-सा स्त्री० [हिं० कूटना] खूब मारना । पीटनी । पहुचानेवाला व्यक्ति । स्त्रियों का दलाला इत। टाला । २. एक कुटि'-सवी पुं० [सं०] १ देह । शरीर । २. वृक्ष।