पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४६३

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कुटु वी | केटि–सच्चा स्त्री॰ [सुं०] 1 झोपडी । कुट' । २ मोड । घुमाव । कुटिलाई-सेवा स्त्री० [हिं०] दे० 'कुटिलता' । कुटि --सको पु० [सं०] बह गाँव जिसका प्रबन एक वक्ति कुटिलिका––समा श्री० [सं०] १ विना अहट के पैर दबाकर आना। | ह वै ।। | नि शब्द प्रागमन । २ लोहार की घौंकनी या भायी (को०] । कटिका--सुङ्गा सी० [सं०] दे॰ 'कुटिया' । कटिहा--वि० [हि• कूट+हा (प्रत्य॰)] १. कुट कहनेवान।। ३. व्यंग्य से हैंसी उडानेवाला । ३. दिल्लगीवाज ।। कुटिचर-सुवा पुं० [सं०] जपनू घर । शिशुमार । सूस कि०] । कटी–सुच्चा स्त्री० [सं०] १ जगलो या दे इन में रहने के लिये घास कुटिया महा स्त्री० [सं० कुटिका] छोटी झ पड़ी। फूस से बनाया हु। छोटा वर । पर्ण गरे । कुटिया । कुटर-सा पुं० [सं०] झोपड़ी 1 कुटिया (को॰] । कुटिल-वि० [सं॰] [वि० ख० कुटिला] १. दक्र । टेढ़ी। झोपड़ी । २ मुर नामक गधद्रव्य । ३. मफेद कुड़ा । कुटज । यो०---कुटिसकोट = सोप। कुटिलबुद्धि, कुटिलुमति, कुटिलस्वभाव, ४ भरुश्रा नामक पौधा । ५ मदिरा । मद्य (को०]। ६. कुटिलाशय =दुरात्मा । टेढ़ी प्रकृति का । बुरे स्वभाववाला । लतागृह । लता मंडप (को॰] । ७. पुढ7 का स्तवक । फूल की २. दगावी पटीं । छली । गुच्छा कि०] । ६ मोड । घुमाव [को०] । कुटिल-सया पुं० [सं०] १. ठ । वन । २. वह जिसका रग पृाला कटीका-चबा जी० [सं०] छोटा घर । कुटिया [को०)। लिए सफेद हो और अखि ल’ल हो । ३. चौदह से धरो का कटोचक--सज्ञा पुं॰ [सं०] चार प्रकार के सन्यासों में से पहना । एक दृर्ण वत्त जिसके प्रत्येक चरण में स, भ, न, य, ग, म, विशेष--इस कोटि का सन्यासी शिखासुत्र का त्याग नहीं करता। होते हैं । उ०—सुम नायो गगरिक तु गगी पानी । जिन शभू यह तीन द मौर कमडलु रखता, कपाय पहनता और त्रि घाल सिर जननि दया की खानी तनि सारे कुटिलन कपटी को सुंध्या करता है। यह अपने कुटु व अौर वधु पो के अतिरिक्त साया । तिनपाई अति सुभ गति गाव गाथा ।४, तगर का दूसरे के घर की मिक्षा नहीं लेती। मरने पर इसका दाहकर्म फुल । ५. दिन (को०]।। किया जाता है। कुटि लई0-- सुज्ञा स्त्री० [हिं०] कटिलता । कटीचर-संज्ञा पु० [सं०] दे॰ 'कुटीचक' 1 उ०—प्राचीन आर्यों की कुटिलक-वि० [सं०] मुडा हुआ । वक्र [को०] । धर्मनीति में इसी लिये कुटीचर और एकातवासियों का ही कुटिलकोट-सा पुं० [सं०] सर्प । सुप । उ०—तनु तुज्यो कुटिल- | अनुमोदन किया है --कंकाल, पृ० १६) कीट ज्यों तज्यो मात पिता हैं।—तुलसी (शब्द०)। कृटीचर-सा पु० [स० कुचर या यी सं० फूट +चर या सं० कुटीचर] कुटिलकीटक--सबा पुं० [सं०] मकडा [को॰] । कुटिल । कृपटी । छली । उ०—जोवन वैर पस्यौ है फुटीचर काम १ बाहू अनेक चहाँगी ।-घनानंद, पृ० ६००। कुटिलति--सी सी० [सं०] १ बृपति । टेढी चाल । २. एक वर्णवृत्त [वै] । | ५ कुटीप्रवेश-सज्ञा पुं॰ [सं०] घायुर्वेद के अनुसार कल्पचिकित्सा के लिये विशेष प्रकार से निमित कुटी में रहना [को०] । कुटिलगा-सा नी० [सं०] नदी । सरिता [को॰] । कुटिलता--सवा खी० [सं०] १. टेढ़ापन । २ छोटाई। धोखेबाजी। कुटीर-सवा पुं० [सं०] १. ३• 'कुटी'२. रति किया । ३. सुपू- र्णता को॰) । | छल । कपट कुटिलपन--संज्ञा पुं० [स० कुटिल +हि० पन (प्रत्य॰)] ३• ‘कुटि: कुटीरक-संज्ञा पुं० [सं०] कुटी । कुटिया । कुटपक-संज्ञा पुं॰ [सं० कुटुगेक] १ वृक्ष पर चढ़ी हुई लता ने वन। ला' । ३०-कैकय नदिनि मंदमति कठिन कुटिलपन कीन्ह । हुमा मडप । लताकुज । २. वृक्ष पर चढ़ी हुई लता । ३. —मानस, २६१।। छत ! छाजन । १ कुटीर। झोपड़ी। ५ अन्न का कुटिललिपि-सज्ञा स्त्री० [सं०] कटिना नामक एक लिपि भार (को०)। | कुटिला २।। पुं० [सं० कुटुम्व] १. परिवार । कुनबा । खानदान १. कुटिला--संवा स्त्री० [सं०] १. सरस्वती नदी । २ एक प्राचीन लिपि, कटु वसा परिवार के प्रति कृतव्य कर्म (को०) । ३. रिश्तेदार ! सुगंधी जिसका प्रचार भारतवर्ष में आठवी शताब्दी से ग्यारहवी। (को०)। ४. नाम (को०)। ५. जाति (को०)। ६. समूह (को०)। शताब्दी के यो ।। विशेष—भारतीय प्राचीन लिपिमाला (पृ० ४२) के विवरण के कुटुबक-सा पु० [सं० कुटुम्ब ] १. दे० 'कुटु व' । २ एका प्रकार की घास ने] । अनुसार इसके अक्षरो तथा विशेषकर स्वरो की मात्रा की कुटिल प्राकृतियों के कारण इसका नाम कुटिल रखा गया। कट दिक-सा पुं० [सं० कुटुम्विक दे० 'कट'वी' । कट विनी--सा • [सं० कुटुम्बिनी १ एक क्षुद्र गुल्म जो मीठा, यह गुप्त लिपि से निकली और इसका प्रचार ई० स० की छठी संग्राहक, कफपित्त का नाशक, रक्तशोधक प्रौर व्रण में उपकारी ती से नवी तस रहा और इसी से नगरी मौर घारदा होता है। २. घर गृहस्यीवानी स्त्री। परिवारवाली लिपियाँ निकला। | स्त्री [को०] । ३. कुडव के प्रधान की परनी । ४, घर की ३. मसबरगं नामक गधद्रव्य, जिसका उपयोग भोपधो में भी नौकरानी । होती है । ४, चैतन्य सप्रदाय के अनुसार राघका की ननः कटु बी--सा पुं० [सं० कुटुम्विन् ] [स्त्री॰ कुटुम्पिनी] १. ११.१८ र सयान्घोष की वहून ।