पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४६१

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'१७९ कुटकी कुवा-- स्त्री० [सं० कु= पृथ्वी+अ=जायमान] १ सीता। कुट'—सच्चा पुं० [सं०] [ी० कुटी] १. घर। गह। २.कोट । गढ़। जानकी। उ०—टूटे धनुष कठिन है व्याहू । दिन भजें को बरी। ३ कलश । ४. वह घन जिस एयर तोड़ा जाता है। ५. कुबाहू |–विश्राम (शब्द०)। २. कात्यायिनी का एक नाम । वृक्ष । ६. पर्वत । । कुजात संज्ञा स्त्री॰ [सं०] दे॰ 'कुजाति' । कुट–सुज्ञा स्त्री० [सुं० कुष्ट, प्रा० कुठु] एन वी मोठी झाड़ी यौ०–जात कुजात । जिसकी जद सुगधित होती है। विशेप-कश्मीर के किनारे को ढालू पहाडियों पर ८००० से कुजाति-सी स्त्री० [सं०] दुरी जाति 1 नीच जाति । उ०—दुख ६००० फुट की ऊँचाई तू यह होती है । चनाव प्रौर के नाम के सुबे, पाप, पुण्य दिन राती । साधु, असाधु, सुजाति कुजात-- ऊँचे कछारों में भी यह मिन्नती है। कश्मीर में इसकी जड़ तुलसी (शब्द॰) । खोदकर बहुत इकट्ठी की जाती है और छोटे छोटे टुकडो में कुजाति—चुज्ञा पु० १ बुरी जाति का आदमी । नीच पुष । उ०-- कटिकर बाहर कलकत्ते गौर ववई भेजी जाती है, जहां से नहि तोप विचार न सीतलता । सुव जाति कुनाति भये इसकी चलान चीन और योरप को होती हैं । कश्मीर में मैंगत। --तुलसी (शब्द०) । पनत या अधम पुरुष । इसका से ग्रह राज्य की अोर में होती हैं। प्रत्येक कवितकार उ०—कुर कु बाति कपून अघी सवक सुधरे जो करै भर को कुछ जड़ कर के रूप में देनी पड़ती है। इसकी सुगंध बड़ी पूजा -तुलसी (शब्द०)। मनोहर होती है और चीन में इसे धूप की तरह जलाते हैं। कुजाम-सज्ञा पुं० [सं० कु+याम दे० 'कुजून' । इससे बाल भी मला जाता है। इसके विपय में यह प्रसिद्ध है। कुजप्टम--संज्ञा पुं० [अ०] फलिन ज्योतिप के अनुसार एक योग जो कि इससे नफेद बाल काले हो जाते । काश्मीर में चीन के जन्मकुंडली के चक्र में मंगल के अाठवें स्थान पर होने से होता व्यापारी इसे दुशालो की तह में उन्हें कोई ने बचाने के लिये है । यह योग बडा ही अशुन माना जाता है। ज्योतिषियों का रखते हैं। पहले लोग अमुली कश्मीरी शनि की पहचान इसी | मत है कि कुनाष्टम योग कुडली के अन्य शुभ योगों को नष्ट की महक से करते थे ! वैद्यक में यह गरम, कफ और वात- कर देना है। । । नाशक, दाद, खुजली ग्रादि को दूर करनेवानी और शुक्रजनक कुन-संज्ञा स्त्री० [ फा० कुइट =cाला ] छोटी घुरिया । मानी गई है। हकीम लोग कुटे तोन प्रकार की मानते हैं। कुन-सी औ० [सं० के+हि० जून = समप] १. कुसमय । बुरा एक मीठी, तौल में हलकी, सुगधिर गौर पीलापन लिये सफेद | समय । २३ प्रति काल । देर ! नावतं ।। होती है। दूसरी कडवी, कुछ करीछे रग की अोर निी महक कुजोग --सज्ञा पुं० [सं० कुयोग १.कुसंग । कुमेन ! वुरा मैन । की होती है। तीसरी नान रग की और स्वाद में फीकी होती है और उसमे घीवार की सी महक होती है । ३०-—ग्रहु भैपज जन पवन पट, पाइ कुजोग सुजोग । होहिं । कुर्वन्तु सुवस्तु जग लवह सुलच्छन लोग।--तुलसी (शब्द॰) । पर्धा-कृष्ट । व्याधि । परिमाय । व्याप्य । पाकल । उत्पन्न। २ बुरा सोग। बुरा अवसर । प्रतिकूल अवस्था । फदाये । दुष्ट । प्राप्य । जरण । कौवेर। भामु । दाह्न । केजी - वि० [स० कुयोग] असं थमा । उ०-पुरुप कुजोगी जिमि कुठिक । काकल । नीरज 1 अामय । इजा । गद। पारिन | उरगारी। मौ; विटप न सकहिं उतारी -तुलसी (शब्द॰) कुत्सित । पावन । 3ग्जा-वज्ञा पुं० [फा० फुजह.प्याला]१ मिट्टी का प्याला । पुरवा । | कूट-संज्ञा पुं० [सं० कुट= कूटना] १. कूड़ा इको टुकड। मिट्टी केजे में जमाई हुई मिस्त्री की बड़ी गोन डली । यौ०–कसकुटे । तिलकुट । तिसरुट । कुज्झटि, कञ्झटी–सद्या स्त्री० [भं०] १० 'कुज्झटिका' कि]। महा०--कुट फरना= मॅयी वंडित करना । वालको फा दी पर कुज्झटिका-सच्चा स्त्री० [सं०1 कुहरा । कुहेलिका | द्ध- | नाखून सूट से बुलाकर मियता तोडना । कुट्टी करना । बच्चन प्रकाश, गुरु गर्जन घुर भासे. कुज्झठिका अट्टहासे, मद्द ग विनिस्तद्र माराघना, पृ० १३ ॥ | २ फूटा और सड़ाया हुमा कागज ! फुट। कुटक–स पुं० [सं०] १. हुल का फन्ने । २. मयानी की रची नपेटने टक--सा पुं० [सं० कुटङ छाछन् । छप्पर। छन [को०]। का इड।। ३ भागवत वणित एक देश यर उसके निवासी । कूटगक सभा पुं० [सं० कुटङ्गक } १ लताकु ज। लता मंडप । २. । ४ वृक्षविज्ञेय का नाम [को॰] । झोपु । कुटी । ग्रावास [को०]। अल्पा० पुटफो] १ छोटा कूटका'-संवा पुं० [हिं० फोटना] [नी " ° [हिं० फूटना + त (प्रत्य॰)] १. कटने का 'माव । टुकड़ा । उ०—साधुन को झुपडी भली, ना वाटे को गाँव । कुटाई । २. मार। पहार। जैसे-जाम्रो घर पर खूर्व फुटते चंदन को कुटकी भली, ना व वनराव •कौर (शब्द॰) । ग 1 39-जेहि जियत इंद्रपुर में कुटत ! गज वाजे ऊट २. कसीदे मे का तिकोना व्दी । तिघोडा । वृषभ लुटन |----सूदन (शब्द॰) । , कुटकारिका—सपी० [सं०] दासी । परिचारिका [को०] । ३ संज्ञा पुं॰ [सं० कुटुम्ब दे० 'कुटंग'। उ०-कुर्टम कलित कुटकी- पी० [सं० फन्टुफा ] १ ए३ पौधा जिसकी जड़ शील 3 | न रहत नद ही हुम, जाf के खेवास वास विस्व में विभाढ़ प्रकृति की होती है और दवा के काम में आती है। हैं ।पौर अभि० अ०, पृ० १३५ । विशेष—यह पश्चिमी प्रौर पूरवी घाटी में तया पन्य पत्रिी प्रदेशों में व पुं० [हिं० काटना पडी भली, ना वाद कुटत-सदा स्त्री॰ [हिं० फूटना+त! । हि जिय मखुप