पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४५८

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

६७४ कुकुरमुत्ता कुकर-सम्रा पुं० [अ०] रसोई बनाने का एक आधुनिक यंत्र जिसपर राजचिन ।४ वैल का डिल्ला । उ०—जब ते तेरे कुचि, एक साथ शनैक चीजें बनाई जाती हैं । रुचिर, हरि हेरे भरि नैन। कनक कलस कबुक के मुद, नीके कुकरी -सज्ञा स्त्री० [सं० कुक्कुट, कुक्कुटी, पुं० हि० कुकडी (कबीर), तक लगें न ।-स० सप्तक, पृ० २५७ । कुकडा (खुसरो) ] मुरगी । बनमुरगी । उ०—हारिल चरज कुकुमत्---वि० [सं० फुकुमत्] चोटी या शृगवाला । ढिल्लवाला । आइ वेद परे । वन कुकरी, जलकुकरी घरे ।—जायसी उ०-पागुर करते दृढ़ निद्वंद्व रूकुमत् शैल वृषभवत् । (शब्द०)। २ कच्चे सूत का लपेटा हुआ। लच्छा । अटी । अतिमा, पृ० १३७ ।। कुकडी । मुढा । उ०-छह मास तागा बरस दिन कुवारी । कुकुंभ--सज्ञा पुं० [म०] १ एक राग का नाम । वि० दे० 'ककुम' । लोग बोले मन कातल बपुरी ।--कवीर (शब्द॰) । २. एक मात्रिक छदं जिसके प्रत्येक चरण में १६ और कुकरी-सच्चा स्त्री॰ [देश॰] १ पीड़ा । ददं । २ वह झिल्नी या १४ के विभाग से ३० मायाए होती हैं । छंद के पादात | सन् जो घाव पर पड जाती है । पर्दा । झिल्ली । ३ खुखड़ी ! में दो गुरु का होना आवश्यक है । जैसे,—-गिरिधर मोहन कुकरौदा-सा पुं० [सं० कुरकुरद् दे० 'कुकरौंध' ।। बशीधारी, राधापति हरि दलवीरा 1 व्रजवासी संतन हितकारी, कुकरौंधा- सज्ञा पुं० [सं० कुकुरद् ] ओपधि में प्रयुक्त होनेवाला एक पूरा हुलधर रणधीरा । सु दर रामप्रताप मुरारी, जसुदा को प्रकार का छोटा पौधा । पीछो छोरा । चक्रपाणि कह सुनौ विहारी, चितवन से हर विशेष--इसकी पत्तियों पानी की पत्तियों से कुछ बड़ी होती मम पीरा ।। हैं। इससे एक प्रकार की कड़ी गघ निकती है । बरसात के ककभ-सबा जी० [सं०] एक राfirनी । वि० दे० 'xxxr अत मे ठढी जगहो पर या मोरियो के किनारे यह उगती है। कुकुर-सी पुं० [सं०] १ यदुवंशी घात्रियों की एक जाति । ये लोग पहले इसकी पत्तियाँ बड़ी होती हैं, पर हालियाँ निकलने पर अघक राजा के पुत्र कृकुर के वंशज माने जाते हैं। क्रमश छोटी होने लगती हैं। पतियो और इलियो पर पर्या०-यादव । दाशार्ह । सात्वत। कुक्कुर। छोटे छोटे घने रोए होते हैं जिनके कारण वे बहुत मुलायम २ एक प्रदेश जहाँ कुकुर जाति के क्षत्रिय रहते थे । यह् देश मालूम होती हैं । जव यह हाथ डेढ़ हाथ का हो जाता है, तब राजपूताने के अतर्गत है। ३ एक साँप का नाम । ४ कुत्ता। इसकी चोटी पर मजरी लगती है, जिसमें तुलसी की भाँति । ५ गैश्विन का पेड़ । बीज निकलते हैं, जो पानी में डालने पर इसबगोल की भाति कुकुरल-सी पुं० [हिं० फुकुर+भालु] एक बेल जो नेपाल, फूल जाते हैं। वैद्यक के अनुसार यह कुडवा, चरपरा और । भूटान, अासाम और छोटा नागपुर अादि जगलो में होती ज्वरनाशक है तथा रक्त और कफ के दोष को दूर करता है। है । इसके कंद या जुई को अकाल के दिनों में गरीब लोग यह अमरवत, सञहणी और रक्तातिसार में भी उपकारी खाते हैं । होता है । कुकुरखाँसी--सज्ञा स्त्री॰ [हिं० कुखकर+खांसी] वह सूखी खाँसी पर्या०-कुकू दर । कुक्फरनु । ताम्रचूड । फुकुरमुत्ता । कुकरौंदा । जिसमे कफ न गिरे। उसी । कुकर्म-सज्ञा पुं० [सं०] बुरा फाम । खोटा काम । कुकुरढाँसी-सा बी० [हिं० दे० 'कुकुरखाँसी' । कुकर्मी-वि० [हिं० कुकर्म +६ (प्रत्य॰) 1 बुरा काम करनेवाला। कुक्कुरदत-संक्षा पु० [हिं० कुकुर+देत] [वि॰ कुकुरदता वह दति पापी । खोटा। जो किसी किसी को साधारण दाता के अतिरिक्त और उनसे कुकसf---सुज्ञा पुं॰ [सं० फूकूल, प्रा० कुफुस, फुयफुस = तुष, भूसी] कुछ नीचे भाड़ा निकलता है या जिसके कारण होठ कुछ अभक्ष्य पदार्थ । साधारण भोज्य पदार्थ । निकृष्ट पदार्थ । उठ जाती है । उ०५रव देश को पूरव्यालोक, पानफूल तण तु लव कुकुरदता-वि० [हिं० फुकुरदत] जिसके मुंह में कुकरवत हो । भोग । कण सचई कुकस भखइ अति चतुराई राजा गढ़ कुकुरतिदिया-सद्मा बी० [हिं० कुकुर+निदिया] थोड़ी सी भाट ग्वालेर !-व० स०, पृ० ३५ ।। से भी दूड जानेवाली नींद । श्वननिद्रा । उ०—भीद नहीं कुकील-सज्ञा पुं० [सं०] पहाड़ 1 पर्वत (को॰] । | माई, कुकरनिदिया की वह दो एस झपकिय ली ।माले०, कुकु दर-सी पुं० [सं० हू कन्वर १ कुरौंधा । २ चूतड़ पर फा पृ० ३४ । गड्ढा ।। कुकुरभंगरा-- सय पुं० [हिं० फुकुर+भेंगरा] छाला भेंगर । भैग- कुकुज-सच्चा पुं० [वेश०] एक विशेष फूल या वृक्ष उ०---धेत कुकुज रेया । वि० दे० 'भैगर' । ककोल लो देवन सीस चढ़ाय --दीनु० १ ०, पृ० ६९। । कुकरमाछी-सच्चा स्त्री॰ [हिं० फुकुर+माछी] एक प्रकार की मक्खी कुकुत्सद-सज्ञा पुं० [फक सन्द] एक बुद्ध का नाम जो गौतम से जो घोड़े, वैल और कत आदि के शरीर पर लगती और पहले हुए थे । काटती है । यह बहुत दृढ़ होती है । इन मक्खियों का रंग कुकुद'--सच्चा पुं० [सं०] वह पिता जो अपनी कन्या को विधिवत् पूरी कुछ ललाई लिए हुए भूरा होता है । | साजसज्जा के साथ दान करती है (को०)। कुकुरमुत्ता--सा पुं० [हिं० कुक्कुर+मृत] एक प्रकार की खुमी कुकुद-सच्ची पुं० [सं० फकुव] १. चोटी । शिखर । २. सीग । ३, जिसमे से बुरी गंध चिलती हैं। वि० दे० 'मी' ।