पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४५७

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तड़ो कुकुरी कूरो---सुज्ञा स्त्री० [सं० कृकुर] १. कुकुडी । २ कुतिया । कुक्कुटव्रत----सज्ञा पुं० [सं०] एक व्रत जो भादो की शुक्ला सप्तमी को होता है । इस दिन स्त्रियाँ सुतनि के लिये शिव और दुर्गा की पूजा करती हैं । कुकुरौंधी-सा सी० [हिं० कुकुर+माछो] एक प्रकार की मक्खी । दे० 'कुकुरमाडौं । कूवकूटशिख–सचा पु० [सं०] कुसुम (कुसु भ) का पेड़ या फूल । कुकुही'Gf- संज्ञा स्त्री० [सं० कुक्कुभ, प्रा० कुतूह] बन मुर्गी । उ० कुक्कुटा है--संज्ञा पुं॰ [स० कुक्कुटाण्ड ] दे॰ 'कुक्कुटाङक' (को०] । मानुस ते वड पापिया, अक्षर गुरुहि न मान । बार यार वन कुक्कुटा डक-सज्ञा पुं० [सं० कुक्कुटाक] सुश्रुत के अनुसार एक धान कुही गर्ने घरे चौवान !-कीर (द॰) । जो खाने में कमैला और मीठा होता है । दुद्धी । कुकुही-चचा स्त्री॰ [देश॰] बाजरे की फसल का एक रोग जिसमें कुक्कुटाभ-सज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का साँप (को॰) । | बाल पर काली बुकी सी जम जाती है और दाने नहीं कुक्कुटासन–सची पुं० [सं०] मोगसाधना में एक असूनविशेष (को॰] । पडते । कुक्कुटहि-सज्ञा पुं० [सं०] एक प्रचार का सर्प । कुक्कुटि–सुशा बी० [सं०] दे॰ 'कुक्कुटी' । कुकुण-सा पुं० [सं० कुकरयुक] अखिों का एक रोग जो प्राय बच्च। को होता हैं । कुयुः । रोहा।। कुक्कुटो–सा खौ॰ [सं०] १ मुग । १. दभचप । पाखड । ३. । सेमल का पेड़। ४. एक प्रकार का कीड। छिपकली या विशेप-इस रोग में अखिों की पलकों में खुजलाहट होती है। वह्मनी । । और पलक खोलने और मृदने में कष्ट होता है । इस रोग में लटके प्रयि अखि मलते हैं, तथा नाक और माया रगडा कुक्कूभ-सज्ञा पुं० [सं०] १. मुर्गा । २ जनमुर्गा । ३ वानिश [कये। करते हैं। कुक्कूर--सच्चा पुं० [सं०] [सी० कुक्कुरी] १. कुत्ता । श्वान । २. कुकुणुक-सी पुं० [सं०] दे॰ 'कुकूण' । अन्न वश का पुत्र यदुवंशी राजा । ३ यदुवंशियो की एक कुकूद सा पुं० [स०] दे॰ 'कुकुद" । शाखा । कुकुर । एक मुनि का नाम । ५. एक वनस्पति । फुकुल-सा पुं० [सं०] १ 'मूसी । ३. भूसी की अगि। ३ वह गढ्ढा ग्र विपर्णी । गांडर (को॰) । जिसमें लकड़ियों भरी ह । ४ कवच (को॰] । कुक्कुर–वि० गुठदार। गुँठीला । कुकुलग्नि-संवा बी० [सं० कु कुल + अग्नि] भूसी की अगि। तुषाग्नेि । कुक्ष—सधा पु० [सं० पट । उदर। तुपानल चै] । । कुक्षि–सा अ० [सं०] १. पेट । कुक्कर-सा पुं० [सं० कुकुर] दे० 'कुकुर' उ०—-निपिच्च मास । यौ॰—कुञ्जिभरि =(१) पेट् । (२) स्वायीं । विना हमारा भोचन ही नहीं बनता, कुक्कुर हुमा जलपान २. काख । है।-भारतेंदु ग्र०, ना० ३, पृ० ८५६ । मो०--कुक्षिगत गम या कोख मे प्रगत । गर्भस्य । कुसिज= कुक्कुट-सा पुं० [सं०] १. मुर्गा । पुग्न । कुक्षय= कतिगत । यौ॰—कुक्कुटध्वनि । कुक्कुट मस्तक । कुक्कुटशिछ । फुकुटाडक ३. किसी चीज के बीच की भाग । ४. गुहा । ५. सतति । ६. कुक्कुटभृत्य ! गत । गढ्डा (को०) । ७ घाटी (को०)। ६. खाड़ी (को॰) । ३. चिनगारी। ३ लुक । ४, जटाधारी। मुर्गक । कक्षि–सच्चा पुं० [सं०] १ महाभारत के अनुसार एक दानव का कुक्कुटक–सा पुं० [सं०] १. वन मुर्गी । कुकुही। २. निषादी माता 3 नाम ९. घोल नामक दानव राजा का नाम । ३ रामायण मौर शूद्र पिता से उत्पन्न एक दणकूद जाति । के अनुसार इक्ष्वाकु का पुत्र जो विकुक्षि का पिता था ।४. पटकनाडा - श्री० [सं० एम टेढ़ी नली या यत्र जिससे भरे बलि का दूसरा नाम । ५. प्रियव्रत का दूसरा नाम । ६ एक वरतून या स्थान से खाली वरतुन या स्थान में पानी अादि प्राचीन देश । पहुंचाया जाता हैं। - कुक्षिभेद-वृद्धा पुं० [सं०] १. वृहत्संहिता के अनुसार ग्रहण के सात कूटकेपासा पुं० [२] गया है उसे एक पर्वत का प्राचीन प्रकार से मोक्ष के भेदो मे से एक ।। नाम जिसे अव कुझिहार कहत हैं । विशेप-इसके दो भेद होते हैं । 'दक्षिण कुक्षिभेद' और 'वाम विप-यह पर्वत गया से अाठ को उत्तरपूर्व की ओर है । कुक्षि भेद' । जव मोक्ष दाहिनी ओर से होता है, तब उसे दक्षिण चीनी यात्रियों के याविवरण से मालूम होता है कि यह कुक्षिभेद मर जव वाई र से होता है, तब उसे वाम कक्षिभेद यह उस समय बौद्ध सा प्रधान तीर्थस्यान पा) अब भी इस हते हैं । सपास कई टूटे फुटे स्तुप और मतिय पाई जाती हैं । कुशिल सा पुं० [सं०] पेट की पीड़ा । उदरशूल (०] । कुटम इप-सी पुं० स० फुकुटमण्डप जैन धर्म के अनुसार वह् । स्थान नहीं कोई निर्वाण प्राप्त करता है ये] । कवडॉt---सबी जी० [सं० फुकुटो कञ्चे सूत का लपेटी है। झक्कुटमस्तक-सा पु० [सं० चव्य । चाव । पजपिप्पली । छ । शुटी । कुकडी । उ०-पिउनी पाँच पचीस रग की, कुक्कुटय-सबा पु० [सं० कुपवाटयव] ८० 'कुकूटना' । कुखको नाम भजन ।।–झवीचे थे, १०७६ ।