पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४५५

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कुकर्भ ९७३ कुबाडी कुइया--सा सौ० [हिं० कु] छोटा ग्रीं । | महा0-- ग्रां खोदन]= (१) दूसरे की बुराई का सामान करना । यो०--कवकुइया ।। दुसरे का नाश करने या उसे हानि पहुंचाने का प्रयत्न करना । जैसे-जो दूसरे के लिये के खोदता है, वह अपि गिरता कुइला--सधा पु० [सं० कोझिल, देश० कोइली (देशो० २५४८), हि० कोयला] कोयला । उ०—-ढाढी एक से देसउ, प्रीतम है। (३) जीविक के लिये परिश्रम करना । जैसे -उन्हें तो कहिया जाई । सा घण वलि कुइला भई भत्तम वैलिसि र के खोदना और खाना है । कुछ चना या जोतना= कुएँ में बेत सीचने के लिये पानी निकालना । कुन पी कुएँ याई 1–ढोला०, दू० ११२ ।। सकिना = यत्न में इधर उधर दौडना । खोज में चारो ओर कुई+--सा स्त्री० [हिं०] दे॰ कुई' । मारे मारे फिरना। कोशिश में हैरान धूमना । जैसे,—इसके कुई–ता स्त्री॰ [देश॰] एक जंगली मनुप्य जाति । ३०-महाराष्ट्र, लिये हमें कितने कुए” झाकने पड़े। कुछ या कुएँ कार, उड़ीसा मौर चेदि, कोशल के सीमांत जुगलों में रहनेवाले गोरु में काना= खोज में हैरान करना । यत्न में इधर उधर तयाँ कुई लोगों की बोलियो के साथ सीधा और स्पष्ट नाता घुमाना । जैसे,—इस वस्तु ने हमें कितने कुए झंकवाए । है ।—भारत० नि०, पृ० २३९ । (लोगों का विश्वास है कि कुते के काटने का विष सात कुएं कुकटी--सा स्त्री० [स० कुक्कुटी - सेमल] कपास की एक जाति कने से उतर जाता है। इसी बीत से यह मूहविरा लिया। जिनकी ई न्नलाई लिए सफेद रंग की होती है। यह गोरखपुर, गया है।) कुए में गिरना- अापत्ति में फेंमना । विपत्ति में वस्ती ग्रादि जिलों में कोई जाती है । पड़ना । जैसे,—जो उन इझ कर कुए में गिरता है, उसे कोई | कुकठ--वि० [सै० कु काष्ठ, प्राः कृ+कठ्ठ= शुष्क, अथवा मॅ० कुकथ्य कहो तुक वचाएन । कुए की मिट्टी कुएँ में लगना =जहां 30 शुष्कहृदय । अरसिक । जो ( प्राणी ) कहने योग्य न हो। की मामदनी हो वही खर्च होना । कुएं में उलि देना= जन्म उ०—उनिगए। गुण वरणत । कुकठ कुमाणसी पिए हुई नष्ट करना । सत्यानाश करना । जैसे,—ऐसी जगह संवध करके रास ।-वी० रासी, पृ० २।। तुमने लड़की कुए में डाल दी । फुए में बात उलना = बहुत । कुकड़ना--क्रि० अ० [हिं० सिकुड़ना] सिकुडकर रह जाना । तलाश करना । वहुत दूना । वह छानवीन करना । जैसे,- चुकूचित हो जाना । उ०—-कोहि नि सी कुकरे और कुजनि तुम्हारे लिये कुम्नों में बॉस डाले गए, इतनी देर कहीं थे । केशव श्वेत सर्वं तन तातो ।—केशव (शब्द०)। कुएं में बाँस पना=बहुत दोज होना । कुएं में भाग कुकडवेल-सच्चा स्त्री॰ [स० कु+फटुवल्ली] वडाल । पड़ना= महली की मंडली का उन्मत होना | सबकी बुद्धि मारी जाना । जैसे,—यहीं तो कुए में भाँग पड़ी है, कोई कुछ कुकडी-सच्चा सौ° [सं० कुक्कुटी] १ कृच्चे सूत का लपेटा हुआ लच्छा, जो कातकर तकले पर से उतारा जाता है । मुड्डा । सुनता ही नहीं है कुए में बोलना या कुएं में से बोलना= अटी । २ मदार का डोडा या फल । ३. दे० 'खुड़' ।४ ईतने धीरे से बोलना कि सुनाई न पड़े। कु।' पर से प्यासे मुरगी। उ०—-कुकडी मारे वकरी मारे, हक हुक कर वोले । प्रना= ऐसे स्थान पर पहुचकर भी निराश लौटना जहाँ सवै जीव साई के प्यारे, उबरगे किस बोले ।-कवीर 7०,१० कार्य सिद्धि की पूरी प्रथा हो । १०६ । यां०-म घी कु = वह अंधेरा कुम जिसमें पानी में हो और जो घासपात से ढका हो । कूकन्स च्चा पु० [यू०] एक पक्षी, जिसके बारे में यह प्रसिद्ध है। कि वह अकेला नर ही पैदा होता है। उ०८-ककनू पंख जइसे कुप्राडा-सज्ञा स्त्री० [सं० कु + हिं० घड़ी, सेत में वह ल्य जिसमें सुर साजा । तस सर साजि जरै चहू राजा ।—जायसी | वरावर द इयो (ग्राही) दोनों में पाई जायें । कुबार-सज्ञा पुं० [स० कुमार, प्रा० फुवार] [वि० फुअारा] (शब्द॰) । हिंदुस्तानी सातवी महीना जं। भादो के बाद और फाति के विशेष—यह गाने में बहुत निपुण समझा जाता है । कहते हैं, पहल होता है। आसिन । आश्विन ! असोज । इसकी चोच में बहुत से छिद्र होते हैं, जिनमें से तरह तरह के विशेष--शरद ऋतु का प्रारंभ इसी महीने से माना जाता है। स्वर निकलते हैं । इसका गान ऐसा विलक्षण होता है कि उसमें इस महीने के कृष्णपसे को पितृपक्ष शोर शुक्लपक्ष को देवपक्ष ३ अाग निकलती है। जब यह पूर्ण युवा होता है, तब वक्त कहते हैं। सूय इन महीने में कन्या राशि का होता है और अत में लकड़ियां सग्रह कर उसपर बैठ कर गाता है। इसके कन्या झी चक्राति प्राय' इसी महीने में पड़ती है । जाने से झाग निकलता है और यह जुलकर भस्म हो जाती कुरा-- वि० [हिं० कुमार} {वि० डी० कुमारी] कुमार का । है । जब बरसात अती है, तब पानी पहने से इसकी रक्ष में जो कुप्ररि में हुई । उ०—माघ पूस की वादरी, अरि कुरा में अड़ा निकल आता है जिससे कुछ दिनों में एक दसरा घाम । ई डीनो परिज के, कर पाया काम 1-(शब्द॰) । पक्षी निकलता है। इसे फारसी में 'विजन' कहत हैं । कुरो'-वि० [देश०] क्वार मास में होनेवाला । जैसे,—कुमारी कवि-सया पुं० [सं० के + कवि | बुरा कदि । कृ में प्रतिभावाल। | फवन, कुरी धान । कवि । उ०—सत्र गुन रहित कुकवि कृत यानी । राम नाम प्रार'--सा पु० क्वार में होनेव, ला मोटे किस्म का एक छान । जस अकित जानी - मानस, १ । १० । कृइदरसा पुं० [हिं० + वर= जगह] वह गड्ढा जो कुए के दब या दैव्र बने से उस स्थान पर पह जा है । कुकभ-सी पुं० [सं०] एक ११ र कृा मद्य [को॰] ।