पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४५३

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कुभोलूक के दना ९७१ कर्जादिन] एक जाति जो तरकारी बोती और वैचती हैं। रघुवंश के अनुसार इसी ने सिंह बनकर वशिष्ठ की गौ इस जाति के लोग प्राय सबै मुसलमान हो गए हैं। नदिनी पर अाक्रमण किया था । कुभोलूक-सा पु० [सं० कुम्भीलूक] एक प्रकार का उल्लू जो बहुत महा०—के जड़े कसाई = नीच जाति के लोग । नीची श्रेणी के मुसलमान । कुजडे का गल्ला=(१) बह गन्ना, रानि या | बरा होता है । वस्तु जिसके लेनदेन का लेखा न त्रिखा जाता हो । (२) वे कुप्रर--सहा पुं० [स० कुमार) [ ली० अरि] १. लड़का । पुत्र। सिर पैर का लेखा। गडय हिसाद । (३) गोलमाल । | बालक । यौ०--राजकुमर। गड़बई। कुजचे की दुकान= वह स्थान जहाँ सब छोटे बड़े २ राजपुत्र । राजकुमार। उ०—देखने बाग कुअर दोउ अाए । जा सकें या जहाँ भीड़भाड़ मीर शोरगुन हो । जैसेक्या वय किशोर सब मनि सुहाए ।—तुलसी (शब्द॰) । तुम ौगो ने कचहरी कौ कुजड़े की दुकान समझ लिया है ? कुअरपुरिया—सा पुं० [हिं० कमरपुर एक प्रकार की हलदी जो कू जई, केजड़ाई -वि० [हिं०कु जा+ई (प्रत्य॰)] कु जड़ापन कटक के पास कुअरपुर राज्य में पैदा होती है। उ०—गुरू शब्द का वैगन करि ले तब वनिहै कुजडाई ।– विशेष—यह प्रति पाँचवें वर्ष खेत से खोदी जाती है। इसकी जड कवीर शु०, भा० ३, पृ० ४८।। या पत्ती लंबी होती है । इसके खेत में मैस के गोवर कूड-सुशी पुं० [सं० कुण्ड ] १. खेत में वह गहरी रेखा जो हुल को खाद दी जाती है। | जोतने से पड़ जाती है। दे० 'क' । कु अप्पन-सुवा पुं० [हिं०] कुमारपन् । कौमारावस्या । कौमार्य । कडपजी-सच्चा बी० [हिं० फुण्ड+पुजना= भरना] किसानो की उ०-अरप्शन प्रयिराज तप तेजह मु महावर । सुकल वीजु एक उत्सव जो उस दिन किया जाता है जिस विन रवीं की दिन इ कला दिन चढ़त कलाकर --पृ० रा ०.५।२। वोग्राई समाप्त होती है। कुडमुदनी। कु अरविरास--सज्ञा पु० [हिं० के अर+विलास] कुअर विनास । कूडवजी--सा श्री० [हिं० कुण्ड+पानी न भरन] कुडपुजी । एक प्रकार को धान या चावल । उ०—घी खाडी कुअर- कुडमुदनी । । विग्नू । रामदास ग्रावे अति वा ।—जायसी (शब्द०)। कुडमुदनी - संज्ञा स्त्री० [हिं० कुण्ड + मू देना] कुडपुजी ।। कुरि, कुअरी-सच्चा सी० [सं० कुमारी, प्रा० कुरी] १ कूडर--सा पु० [स० कुण्इल] [स्त्री॰ अल्पा० कुडी] १ मई नकार खींची हुई रेखा (क) जिसके भीतर खड़े होकर लो। शपथ कुमारी। फन्या २ राजकुमारी । उ०- (क) कु अरि। करते थे। (ख) जिसके 'गीतर किसी वस्तु को रख कर उसे कुरि रही का क़रऊ -तुलसी (शब्द॰) । (ब) कुअरी मंत्र ग्रादि से रक्षित करते थे, अौर (ग) जितके भीतर भोजन पिगन्न यिनी, मावणी तसे नाम । ढोल०, दु० ९० । रखकर उसे छत से बचाते हैं । २ कई फेरे देकर मंडलाकार कु अरेटा -सुज्ञा पुं० [हिं० कर+एटा (प्रत्य॰) [भौ° लपेटी हुई रस्सी या कपड़ा जिसे सिर के ऊपर रखकर बोझ

  • अरेटी] लड़का । बालक । उ०—-लालुन मान्न जरी पट

लाल सखी सँग वान वध क अरेटी -देव (शब्द०)। या घडा आदि उठाते हैं । इडुवा ! गेंड्री । के प्रल सच्चा पुं० [स० कुवलय, प्रा० कूल] दे॰ 'कमल' । केडरा-संज्ञा पुं० [सं० कुण्ड+ हिं० ० (प्रत्य०) कु डा मटका । । उ०-जब सुपले करिअल, झीणी लव प्रत्र । ढोना एही के डरा--संज्ञा पुं० [सं०कुण्डल] इंदुरी । गैइरी।। मारुइ जणि क कणयर कब-ढोना०, ६० }७३ ।। कुंडाला-सच्चा पुं० [सं० कुण्ड+ हिं० ला (प्रत्य॰)] मिट्टी की कूडी के ग्रा-सा पुं० [सुं० कूप, प्रा० कुव, कुय] [स्त्री० अल्पा० कुइयां या पदरी जिसमें कालवित बनानेवाले टिकुरियो पर इलायत्त, लपेटकर रखे रहते हैं। के श्रीरा-- वि० [सं० कुमारक] [स्त्री॰ कूआरी] जिसका व्याह न हुग्री कडिया--संज्ञा स्त्री० [स० कुण्ड +हि० इया (प्रत्य॰)] १.एक चौखूटा हो । विन न्याहा । उ०—सुकृत जाइ जो पन परिहर। गड्ढा जो शोरे के कारखानों में होता है । कोठी । विशेष—यह गड्ढा दो हाय चौडा, पाँच हाथ लंबा प्रौर हाय के अनि भारि रहीं का करॐ --तुलसी (शब्द॰) । | भर गहरा होता है। शोरी जनाने के लिये इसमें नोनी मिट्टी सदा स्त्री० [सं० कुपिका, प्र० कूविया हि० कु] छोटा कृत्रीर पानी में मिलाकर डानी जाती है। कृ उ–गगन मंडन विच उर्ध मूख कुइयाँ श०, पृ० ५७ । २ मिट्टी का वरतन जिसमे दादले की पिटाई, करने वाले पीटने । के लिये बादला रखते हैं। कूडी । या -कठकुइय= वह छोटा का जो कोठ ते दधा हुअा हो ।

  • ई-सा भी० [सं० कुमुदिनी, प्रा० उई मुदा

कुढ़वा-सा पुं० [सं० कुतु+हि० वा (प्रत्य)] मिट्टी का कुजा । कुल्हिया। पुरवा । कानों में गुबहल खोस धवल, या कुई, कनेर, लो, पाटले [- ग्राम्या पृ० १६।। कुण-सुदै [सं० क ] कोन । उ०—सरे कुण तेज परमाणे काया।

      • -संज्ञा पुं॰ [हि० कमकम दे० 'कु कुम उ०--मोती की असा । | -रघु० ९०, पृ० २९ ।।

किया के बदन तिलक सिदर ।-बी० असो, पृ० २० । कुदना-सा पुं० [हिं० कु बन= सोना1 बाजरे का एक रोग जिससे उठल नाल हो जाते है, वान में काली काली धूल जम जाती जडा--संज्ञा पुं० [सं० कुज+डा (प्रत्य॰) या देश॰] [नी० कु जडी, है मौर दाने नहीं पढ़ते । ३-५६ की । कूप ।।