पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४५२

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कुद पिछला लकड़ी का तिकोना भाग जिसमे घोडा और नली हाय ऊँचा होता है और अर7 के यमन ग्रादि पथरीले स्थानों आदि जडी रहती है और जो वदूक चलानेवाले की ओर में मिलता है । इसके फल और वीज वाईए होते हैं । जव मूर्य रहता है। कर्क राशि में होता है तब गोद इकटठा दिया जाता है। हकीम मुहा० .. कु वा चढ़ाना = वदूक की नली में पकड़ी जड़ना। लोग इसे पुष्ट, हृद्य और रक्तस्राव को रोकने वाला मानते हैं । ४ वह लकही जिसमें अपर्छ। के पैर के जाते हैं । काठ ५ २ एक प्रकार का सुगधित गोदे जो अलई के पेड़ से निकलता है। दस्ती । मूठ । वैट । ६. लफडी की वी मोगरी जिमसे कपडो वैद्यक में यह रुचिकारक, स्वेदनाशक त्वचा को हितकारी और ।। की कुदी की जाती है । ज़ को दूर करनेवाला माना जाता है । के दा–संज्ञा पुं० [सं० स्कन्ध, f६० कषा] १ चिजिया का पर। पर्या०--राराट्री । पालफी । तीक्ष्णगध । कु दारु । भीषण । डैना । । | सुगघ । दिउला । खपुर । नागदधूप्रिय । इाल्नको नियसि ।। महा०—कु दे बांध, जोड़ ५ तौलफर उतरना= पक्षी का अपने के बौ-सम्रा स्त्री० [सं० कुम्भा] १. काय फल । २.कु • जलकनी। दोनो पर समेटकर नीचे आना। कुभ नामफ पेड ५ एक प्रकार का बड़ा वृक्ष । अरजम । २ कुश्ती का एक पेव । ३० ‘कु ।' । ३ कुश्ती में एक प्रकार का विशेष—यह बहुत जल्दी बढ़ता और प्राय तारे भारत में पाया। माघात, जो प्रतिद्वद्वो को नीचे लाकर उसकी गरदन पर अपनी जाता है । इसकी छाल से चमडा सिझया जाता है और रेशों कलाई कोहनी के बीच की हड्डी से रगडते हुए किया से २२ से अदि बनते हैं। कहीं कही अकाल के दिनों में इसकी जाता है। रद्द।। धस्सा । छाल अाटे फी एरह पीसव र स्वाई भी जाती है। लकड़ी से क्रि० प्र०—देना ।—तगाना । सेती के अज़ार छाजन की वलियाँ गाड़ियों के घुरे और कुदा–सच्चा पुं० [सं० कर्ण, हि०कन्ना) १ पतग या गुड्डी के वे बफ के कदे बनाए जाते हैं । यह पानी में जल्दी सड़ता नहीं। दोनो कोने जिनके बीच में कमानी लगी रहती है २ पायजामे जगली सूअर इसकी छाल वहूत मजे में खाते हैं, इसलिए की वह तिकोनी कली जो दोनों पायचों के ऊपर मव्य में शिकारी लोग उनका शिकार करने के लिये प्राय इसको रहती है । कली। उपयोग करते हैं। क्रि०प्र०——लगाना। | भ-सा पुं० [सं० कुम्भ] १. मिट्टी का घड। घट। कश । कु दा.-सधा पुं० [सं० फुण्ड = कड़ाही मुना हुआ दूध । खोवा ।। उ०-गुरु कुम्हार सिप कुम्म है गढ़ गढ़ काढे छोट। अतर मावा । हाथ सहार दे, वाहर बाई चोट ।----बीर सा०, स०, पृ० ३ । मुहा०—- ॐ वा कराना या भुनना = दूध से खोवा तैयार करना। यौ॰—कु भज । के भंकप । कु भफार । कू दा’- वि० [फा०,कुव ६० 'कुन्द' । उ०—कुल श में दिसता । चदा है । हो पाया नैन सो कुदा है ।--विखनी॰, पृ० २ हायीके सिर के दोनों ओर ऊपर उड़े हुए भाग १०-- मत्त नाग तम कु म विदारी । ससि केसरी गगन वनचारी । ३२३ । तुलसी (शब्द०)। ३. एक राशि का नाम जो दसवीं मानी कूदा-सद्मा पुं० [हिं० कु ] दरवाजे की सकल या कोळी । जाती है। ३०–जरमन का प्रसिद्ध विद्वान् लेसिंग एक बार बहुत रात विशेप---यह धनिष्टा नक्षत्र के उत्तराई भौर शवपि या पूर्व गए अपने घर आया और कु दा खटखटाने लगा ।—थीनिवास भाद्रपद के तृतीय चरण तक उदय रहती है। इसका उदय- १०, पृ० १६३ । । काल ३दई ५८ पल हैं । यह राशि शीर्पोदय हे ।। कू दी--सच्चा बौ॰ [हिं० कु दा] १ घुले या रंगे हुए कपड़ो की वह ४ एक मन जो दो व्रण या ६५ सेर का होता है । इसे सूर्य भी करके उनकी सिकुड़न और रुखाई दूर करने तथा तह जमाने कहते हैं। किसी किसी के मत से वीस द्रौण का भी एक कुंभ के लिये उसे लकड़ी की मोदी से फूटने की क्रिया। होता है । उ०—दो द्रोणों का शूर्प और कुभ कहाँ है --- विशेष—इस देश में इस्वरी को प्रथा का प्रचार होने से पहले शाङ्ग• से०, पृ० ६।५ योगशास्त्र के अनुसार प्राणायाम के धोबी इसी का व्यवहार करते थे। माल भी कमखाब अदि तीन भागो में से एक । बु भक। ६ एक पर्य का नाम जो पर दी ही की जाती है। प्रति १२ वें वर्ष लगता है। इस अवसर पर हुरद्वार, प्रयाग ३. खूब मारना। ठोंकन पीटना। नासिक अदि में बड़ा मेला लगता है । यह पर्व इसलिए 1। क्रि० प्र०—करना । यो०-- कु दीगर । कुंभ कहलाता है कि जब सूर्य कुभराशि का होता है तभी यह पड़ता है । ७ मिट्टी आदि का वह पढ़ा जी देवालयों के के दीगर-सच्चा पुं० [हिं० कुवी+गर (प्रत्ये०) 1 कदी करनेवाला शिखर पर या घरो की मुरी पर शोभा के लिये लगाया व्यक्ति। जाता है। कलश ६,गुग्गुल ६ वह पुरुष जिसने वेश्या रख ली -सा पुं० [सं० कुन्दु) भूस । चूहा किो०] ।। हो । वेश्यापति ।।

  • क दुर--स। पुं० [सं०,०]१ एक प्रकार का सुगंधित पाला। यौ--भराधी।

गोद । १०. जैन मतानुसार वर्तमान प्रवरापिणी के १६ वे अर्धत का विशेष—यह पक प्रकार के फैटीले पौधे से निजता है जो दो नाम् । ११, वौद्धों के अनुसार बुद्धदेव के गव चौबीस बम