पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४५०

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कुडली कृतल काग सब भए अपावन । कहू गिरिधर कविराय सुनी है। ठाकुर के डिल(9)—संज्ञा पुं० [सं० फ द्धल] दे० 'कु इल' । उ०—कनक्क मन के । बिनु गुण लहै न छोइ सहसे गुण गाहक नर के । काम कु डिल हलत तेज उम्भरे ।--१० रा०, २५। ३१२ । कू डली-सक्ष। पी० [सं० झण्डली] १ जलेबी । २ कु डनिनी । कू डी'—सषा श्री० [सं० फण्ड] पत्थर या मिट्टी का कटोरे के मकार ३ गुडवि । गिलोय | ४ कचनार । ५ केवब । ६ जन्मकाल का बरतन जिसमे लोग दही, चटनी अादि रखते हैं। प्रत्यर की के ग्रहों को बतलानेवालः एक घ% जिसमे वार घरह होते हैं। कु डी मे माँग भी घोटी जाती है । ७ रॉडी । ईंहुत।। ६ सीप के बैठने की मुद्रा। फेटी । है. यौ०-- कु जी सोंटा= भाँग घोटने का सामान ।। बँझरी । डफ 1 । । १ लोहे की टोपी या शिरस्त्राण । कूड । उ० --घरे टोप कुडी कु डली. चघा पुं० [सं० क ण्डलिन्] १ सप । २ बरुण । ३ मयूर । मोर । ४ चित्तल हरिण । ५. विष्णु, । ६ शिव (को०)। फसे कॉच अग -हम्मीर०, पृ० २४ ।। के डी-संज्ञा स्त्री॰ [हिं० कुण्डा] १ बजौर की कड़ी। कही। २. कु डली-वि० १ जो कु डल पहने हो । कुडलधारी । २ घुमावदार। किवा में नगर हुई सरल जो कियाड को वई रखने के लिये पेटा हुआ । ३ कु डली की प्रकृति का ।। कु डी में फंसाई या डाली जाती है । कू हलीकरण-सया पुं० [सं० क_पडलीकरण] धनुष को खीचकर क्रि० प्र०—खोलनी -वद करना । इतना मोड़ना कि वह कु डल के प्रकार का हो जाय को] । मुहा०----कु डी खटखटाना = द्वार खुलवाने के लिये सकल को कू डलीकृत—वि० [सं० फण्डलीकृत] कु डली के समान गोल प्राकृति जोर जोर से हिलाना । फु डी देना, मारना लगाना = कुंजी का बनाया हुआ (कौ] । वद करना । कुडा'-सम्रा पुं० [सं० $ एउक] मिट्टी का बना हुआ चौड़े मुह को । ३ लगर का वड़ा छल्ला, जो उसके सिरे पर लगा रहा है। एक गहरा बरतन, जिसमे पानी, अनाज अादि रखा जाता है। कु डोसच्चा यौ॰ [सं० कुण्डल] मुर्रा भैंस जिसकी सींग घुमी हुई बडा मटका। कछरा । होती हैं । दे॰ 'मुर' ।। कुडा-सझा पुं० [सं० कण्डल] १. दरवाजे की चौखट मे लगा कु डू-सज्ञा पुं॰ [देश॰] काले रग की एक चिडिया जिसका कठ हुमा फोढा, जिसमे सकल फेसाई जाती है और ताला लगाया 3 और मुंह सफेद और पूछ पीली होती है। लवाई में यह ग्यारह जाता है । २ कुश्ती का एक पॅच । विशेष-इसमें नीचे अाए हुए विपक्षी की दाहिनी मीर खड़े होकर इच की होती है । यह कश्मीर से अासाम तक मिलती है । अपनी दाहिनी टोग उसकी गरदन में बाई तरफ से डालकर | इसे करतूर भी कहते हैं । उसकी दाहिनी बगल से बाहर निकाल लेते हैं और अपने वाए कु होनी—समा स्त्री० [सं० कपडोघ्नी] १ वई गाय जिसके थन व पैर के घुटने के अदर अपने दाहिने मौजे को दबाकर उसके हो । वर्षे थनवाली गाय । ३ वह स्त्री जिसके स्वन बह हो । सिर पर बैठकर बाएं हाथ से उसका जाँघिया पकडकर उसे भरी छातीवाली औरत (को०] । चित्त फुर लेते हैं । | कु डोदर--सुश पुं० [सं० कुण्डोदर] महानेव जी का एक गण । कू डा—सा पुं० [ला०] जहाज के अगले मरतन का चौथा ३०विरूपाक्ष कु डोदर नामा । रहिहै तुव समीप सर्व खड । निरकट । तावर डोल । यामा --रघुराज (शब्द॰) । कू डा.-सबा बी० [सं० फण्डा] दुर्गा का एक नाम (को० । कू त-सज्ञा पुं० [सं० कुन्त] १ गवेधक । कोहिल्ला । केसई । २. कु डाशी-संज्ञा पुं० [सं० क ण्डाशिन्] १ कुंड नामक जारज पुरुप भालः । बरछी । उ०—कुवलय विपिन कु त वन सरिसा । | का अन्न खानेवाला । २ धृतराष्ट्र के एक पुत्र का नाम । वारिद तपत तेल जनु बरिसा ।—तुलसी (वब्द०)। ३ कू डिक-सज्ञा पुं० [सं० फण्डिक] धृतराष्ट्र से एक पुत्र का नाम । जू । ४ चड मावे । क्रूर 'भाव । अनख । ५ जन । ६ कुश कू डिका--सच्चा स्त्री॰ [सं० कण्डिका] १ कमेडलु । २ । हो । ७ अग्नि। ६ आकाश । ९ काल । १० कमल। ११ अथरी । पथरी। ३ तावे का कु है जिसमे हवन किया जाता खड्ग । उ०-ॐ त सलिल अौ कु त कुस, कु त भन नभ, हैं। ४ अथर्ववेद का एक उपनिषद् ।५ छोटा कु छ । उ०— काल । फु त कनत कवि कमल सो फु त ऊ खंग कराल - ता रस की कु डिका नाभि असे सोमिते गहरी । त्रिवली ता अनेकार्थ० पृ० १२३ । । महूँ ललित भाँति मनु उपजति लहरी !-नद० प्र०, पृ० ४।। कु तक–समा पुं० [सं० कुन्तक ] सस्कृत साहित्य में वक्रोक्ति संप्रदाय कु डिन--सच्चा पु० [सं० कण्डिन] एक प्राचीन नगर, जो विदर्भ देश । | के प्रवर्तका अचार्य। वक्रोक्तिजीवित इनका ग्रंथ है। की राजधानी था । कु तल–सा पुं० [सं० फुन्तल] १ सिर के बाल ! केश। उ०—- विशेप वहाँ का राजा भीष्मक था जिसकी कन्या रुक्मिणी प्रवण मणि ताटंक मजुले कुटिल कु तल छोर । —सूर को श्रीकृष्ण हर ले गए थे । विदर्भ का आधुनिक नाम वीदय (शब्द॰) । २ प्याला । चुवक । ३ जौ । ४. सुगघवाला । है, जो हैदराबाद राज्य में है। बीदर से कुछ दूर पर कु डिल ५ हल । ६. सगीत में एक प्रकार का ध_पद, जिसके प्रति पाद वती नाम की एक पुरानी नगरी अजे तक है। सिमे पूर्व मै १६ अक्षर होते हैं । ७ एक देश का नाम जो कोकण ग्रौर समृद्धि के चिह्न पाए जाते हैं । यही स्थान प्राचीन कु डिन या बरार के बीच में था । ६ सपूर्ण जाति का एक राग जो कू डिन पुर हो सकता है । दीपक का चौथा पुत्र माना जाता है। इसके गाने का समय