पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४५

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

इंतकै उड से उड स-संज्ञा पुं॰ [ देशज | खटमले । उढ–सज्ञा पुं० वोल० हि० ऊढ़] वह घास फूम या चिथड़े का पुतला उड़ेचसी गुं० [ हि० उड+पेंच ] १. कुटिलता। कपट । २. जो फसल को चिड़िया से बचाने के लिये खेत में गाड़ दिया | वैर! अदावत । दुश्मनी । जावा है । पुतना । बिजूखा । क्रि० प्र०—रखना ।—निकालना । उढ़कन--संज्ञा पुं० [हिं० उढ़कना] १. ठोकर । रोक । २ सहारा। उड़ेद--सी पुं० [हिं० उड़ना+दड ] एक प्रकार का दर (सूरत) | वह वस्तु जिस पर कोई दूसरी वस्तु अड़ी रहे । | जिसमे सपाट खीचते हुए दोनों पैरों को ऊपर फेकते हैं । उढकना--क्रि० अ० [हिं० अढ़कना] १. अड़ना । ठोकर खाना । जैसे, उडेरना —क्रि० स० [हिं॰] दे॰ 'उड लना' । -देवो उढ़ककर गिरना मत । २. रुकना । ठहरना ३. उड़ेलन[----क्रि० स० [ से० उद्धरण = निकालना प्रयत्न, उदीरण = सहारा लेना । टेक लगाना । जैसे,—वह दीवार से उढ़ककर फेंकना ] १ किसी तरत पदार्थ को एक पात्र से दूसरे पात्र में वैठा है । डालना। ढालना । जैसे,---दूध इस गिनात में उड़ेल दो । उढकाना-क्रि० स० [हिं० उढ़कना] किसी के सहारे खड़ा करना । २ किसी द्रव पदार्थ को गिराना या फेकना । जैसे,—पानी को जैसे,—हुल को दीवार से उठकाकर रख दी । उ०—प्रसमसान जमीन पर उड़ेल दो । की भूमि ते गुरु को घर ले आय । गिरदा में उड़काय के देत क्रि० प्र०----देनी। लेना। नये वैठाय --रघुराज (शब्द॰) । उई नी —सुब्बा ली० [हिं० उड़ना ] जुगनू । खद्योत । उ०—(क) उढरना--क्रि० अ० [सं० अढ़ा= विवाहिता +हरण] विवाहिता स्त्री कोवत रहि जस भादों रेनी । श्याम रैन जनु चले उनी । का किसी अन्य पुरुष के साथ निकल जाना । उ०—मुए चाम जायसी (शब्द॰) । (ख) चमक दोस जस भार्दो रैनी । से चाम केटावे भुईं सँकरी मे सोवें। घाघ कहें ये तीनो भकु प्रा जगत दिष्टि भरि रही उड्नी । जायसी ( शब्द० ) ।। उंढरि जाय औ रोएँ । ( शब्द०)। उडौहाँr--वि० [हिं० उड़ना+हाँ (प्रत्य॰)] उडनेवाला । उ०— उढरी---सच्चा स्त्री० [हिं० उतृरना] १ वह स्त्री जो विवाहिता न हो । करे चाकू सौं चुटकि कै खरै उडौहैं मैन । ताज नवाएँ तृरफरत रखई । मुरे तिन । २ वह स्त्री जिसे कोई निकाल ले गया हो । करत खुद सी नैन -विहारी र०, दो० ५४२ । उ--जनम लेत उड़री अवला के ले छीर पियाई । कबीर उड्डयन--सच्चा पुं० [सं०] उड़ना । उड़ान । श०, भा० १, पृ० ५३ । उडामरे---वि० [सं०] १ समान्य । श्रेष्ठ । आदरणीय । २ प्रचंड। उढ़ाना-क्रि० स० [हिं० ओढ़ाना] दे॰ 'प्रोढाना' उ०-कहे जो उढावो शक्तिशाली । अत्युय । दुर्धर्ष [को०] । यहाँ वैठि मोही । हम्मीर रा०, पृ० ३८।। । यौ०--उडामर तत्र= एक तंत्र का नाम । उद्धारना---- क्रि० स० [हिं० उढ़रना किसी अन्य की स्त्री को निकाल उड्डामरी–वि० [सं० उडामरिन् ] तीव्र कोलाहल या घोष लाना ! दूसरे की स्त्री को ले भागना । | करनेवाला (को०) ।। उढ़ावनि-, उढावनी --सधा स्त्री० [हिं० उढाना] चद्दर । उडोयान--सुज्ञा पुं० [ स० ] हाय की उँगलियों की एक प्रकार की । अदनी । उ०---उन्होने आते ही रुक्मिणी को ' राता | मुद्रा ]ि । चोला उढावनि वनाय विठाषा - लल्लू ( शब्द०)। उडीन-वि० [सं०] उड़ा हुआ। 1 उडान करता हुआ । उडता प्रा[को०] उडोन–स० पु० [सं०] १ उहान । उडना । २ पक्षियों की विशेष उढकन--सच्चा पु० [हिं०] दे० 'उदकन" ।। | प्रकार की उड़ान [को०] । उढ़कना-क्रि० अ० [हिं॰] दे॰ “उढकना”। उडीयन–सच्चा पुं० [स०] १. हठयोग का एक बघ या किया जिसके । उढकाना--क्रि० स० [हिं०] दे० "उदै काना' । द्वारा योगी उड़ते हैं। कहते हैं इसमे नुपुम्ना नाडो में प्राण । उढौनी--संज्ञा स्व० [हिं० उड़ान ] ३० ‘झोढ़नी' । को ठहराकर पेट को पीठ में सटाते हैं और पक्षियों की तरह उढ्ढ-वि० [सं० उ:वं, प्र० उड] उध्वं । ऊपर। ऊँवा । उ०—ऊन उहते हैं । १. उड़ना । उडान । उ०-स्वनित उड्डीयन-ध्वनित चिधार झुमझार । उडुढे वढ्ढा उच्छारे ।---पृ० ० गति जनित अनहद नाद से यह--दिग्दिगताकाश वक्षस्थल, रहा है गूज अहर 1---क्वासि, पृ० १०१ ।। उणती -संवा बी० [ से० उन्नति ] ६० "उन्नति” । उ०---जन उड्डीयमान-वि० [सं० उडीयमत्] [नी उड्डीयमती ] उडनेवाला। रज्जब उणती उठे, दुःख दाखि सु दूरि ।---रज्जव०, पृ० ५। उडत हुआ। उहारि--वि० [सं० अनुहार, प्रा० अणुहार, रजि० उगिहार ] दे० क्रि० प्र०—होना । उडना । उनहार' । उ०—-पुरुप विदेमि कामणि किया, उमही के उहौश-संवा पुं० [१०] १ शिव । २. एक प्रकार की तत्रग्रय (को०] उहारि । काज को सीझे नही, दादू माथै मारि ।---दादू० उड्यान-सुब्बा पुं० [स० उड्यन] योग का एक असन, जिसमें दोनों वानी, पृ० २४७ । जानु को मोड़कर पैरों के तलवों को परस्पर मिलाकर बैठा उतंक'---सा पुं० [ से ० उतङ्क ] १. एक झप जो वेद ऋषि के जाता है। उ०—उड्यान बघ सु मूल बंघहि बघ जालंधर | शिंप्य थे । २ एक ऋषि, जो गौतम के शिप्य थे। करी --सुंदर • भा० १, १० ५० ।। उतक -वि० [ १० उत्तङ्ग } ऊँचा । उ॰—देव पायर भर पुरट