पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४४९

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के तेल फुदा' ग्रीष्म ऋतु का दोपहर है । ६ सूत्रधार (अने०) । १० वेप पयो०-मध्य । मकरंद । श्वेतपुरप । महामोद । सुदापूरप । बदलनेवाला पुरुष । वहुरुपिया (अने०) । ११ राम की सेना बरट । मुरी पुष्प । वनहोस । भू रावई । अट्टहास । का एक बंदर ! १ कनेर का पेड़। ३ कमल | ४ कदर नाम का गोद । ५. कू तुल–तज्ञा पुं० [अ० क्विन्टल एक तौल । कु टल । एक पर्वत का नाम । ६ कवेर की नौ निधियों में से एक है कू तलवद्धन–चा पुं० [ स० कुन्तलवद्धन 1 भूगरज । अँगा। ७ नौ की सध्या । दिए । ६. खराद । उ०—ढ़ि गढ़ मॅगया । छोलि छोलि कुद की सी माई वाते जैसी मुव कहौ तेसो उर क निका-सच्ची श्री० [सं० कुन्तलिका] १. एक पौधा । २. छुरिका- जब अनि हौं ।—तुलसी (शब्द०) । विशेप 1 दव 1 कलछा (को०) । | क दरे---वि० [फा०] १ के ठित । गुठला । ३. स्तव्य । मद । कु तल सा सी० [सं० कुन्न भाला] पक छोटी मुक्खी जिसके यौ०-कु दजेहन= कु ठित बुद्धि का । मदबुद्धि । | कु दर--सच्चा पुं० [सं० केन्दकर, टर्नर ] खराद का काम करने छत से डामर नामक मोम निकलती है। इन मक्खियों को टंक नहीं होता। अलमोड़ा, बेलगाँव, छिदवाड़ा, खानदेश वाला व्यक्ति [को०] ।। के दन..-सज्ञा पु० [ मुं० कुन्द = श्वेतपुष्प या देस०] १ बहुत अच्छे अादि में ये मक्विय बहुत होती हैं । और साफ सोने का पतला पत्तरे, fसे लगाक। जडिए नगीने पर्या–कुन्ती । भिनकवर । नसरी । बैंकृ । जड़ते हैं। कु ता -अज्ञी ची• [ १० कुन्ती ] दे॰ कु ती क्रि० प्र–जगाना । कु तिमोज---सम्रा पु० [सं०] एक राजा का नाम, जिसने कुती (पृथा) २. स्वच्छ सुवर्ण । बढ़िया सोना । खलिस सोना । उ०—-पीतर को गोद लिया था। | पटतर विगत, निपफ ( निकप ) ज्या कु देन रेखा ---भक्तमाल कुती–सच्चा स्त्री॰ [ सु० कृन्ती ] युधिष्ठिर, अर्जुन और भीम की (प्रिया०), पृ० ५५३। माता ? पृथा ।। विशेप--दमकती हुई स्वच्छ निर्मल वस्तु को उपमा प्राय कु दन विशेप-यह शूरसेन यादव की कन्या और वसुदेव की बहन यो। से देते हैं, जैसे-कूदन सा शरीर। इसे इसके चचा भोज देश के राजा के विभोज ने गोद लिया मुहा०—कुन्दन सा दमफना= स्वच्छ सोने की भांति चमकन। या। यह दुर्वासा ऋपि की वहुत सेवा करतो यी, इससे उन्होने कदन हो जाना = खुद स्वच्छ और निर्मल हो जाना । निखर इसे पाँच मत्र ऐसे बतलाए कि वह पाँच देवताग्रो में से किसी अना। को आह्वान कर पुग्न उत्पन्न करा सकती थी। उसने कुमारी कु दन'–वि० १ कु देने के समान चोखी। खालिस । स्वछ । अवस्था में ही सूर्य से कर्ण को उत्पन्न कराया। इसके उपरांत वढ़िया । जैसे—यह कूदने माल हैं । २ स्वस्थ और सु दर । इसका विवाह पांडु में हुआ । नीरोग । जैसे–चार दिन औषध खाम्रो तुम्हारा शरीर के दन तो-सच्चा स्त्री॰ [ १० कुन्त ] १ बरछी । भाला । ३. एक छोटी हो जायगा । | मक्खी । ३० कुतली ।। कुदनपुर-सया पुं० [सं०] ६० ‘कु छिनपुर' । कृती-सेवा बी० [ देश० ] कर्ज की जाति का एक पेड़ । के देनसाज-सा पुं० [हिं० कु दन +फा० साज] १ फु दन का पतर विशेष—यह मध्य बंगाल, बरमा, आसाम आदि स्थानों में होता | वनानेवाला । २. कु दन देकर नगीना वैठनेवाला । जड़िया । है। इसकी फलियाँ रेंगने और चमड़ा सिंझाने के काम आती कुदम--संज्ञा पुं० [सं० कुन्दम] विल्ली। माजर [को०)। हैं और वीज से जो खेल निकालता है वह जलाने के काम में कु दर-सा पुं० [सं० फुन्दर] १ निघट्ट में कथित एक घास जो भाता है। इसके फलो को टेटी कहते हैं । कलिंग देश में होती है और जिसकी जड़ अपघ के काम पर्या-केटी । अमजकच्ची । अती है।

  • यु सच्चा पुं० [ सृ० कुन्यु ] १. जैन शास्त्रानुसार छठा चक्रवर्ती पयfc---केर । मिटी । दीघपत्र । वरच्छद । रसाते । सुतृण ।

२ जैनियो के मत से वर्तमान अवसर्पिणी ( काल ) का मृगवल्लभे । सुत्रहवी अर्हत । उ०—फिरि लाए हुस्थिनापुर जहाँ । साति २. विष्णु । कुयु अरपूजे उहाँ ।--अर्ध०, १० ५३ ।। कु दलसुद्धा पुं० [सं० कण्डुर } दे० 'द' ।। -सा पुं० [स० कुन्द] १. जूही की तरह फा एक पौधा, जिसमे के देलत-सधा पुं० [सं० केन्दलता] १. छब्बीस अक्षरों की एक सफेद फूल लगते हैं। इन फूलो में वडी मीठी सुगध होती है। वर्णवृत्ति जिस सुख' भी कहते हैं। दे० 'भुई। ५ माधव विद्येप- यह पौधा क्वार से लेकर फागुन चैत तक फूलता रहा है। लता । वैद्यके में यह शीतल, मघर, कसैला, कुछ रेचक, पाचक तथा मृदा वक तथा कु दा--सुद्धा पु० [ फु०, तुल० त० स्कन्ध ] १, सङ्की का बहुत पितरोग और रुधिर विकार में उपकारी माना जाता है। प्रायः वडा, मोटा और विना चीरा मा टुकड़ा जो प्राय जलान । कवि लोग दांतो की उपमा कुदे की कलियों में देते हैं । काम में साता है। लक्कड़े । २. लकड़ी का वई टुकडा जिसपर जैसे-वर देत को पंति के दली, अधरधिर पलवलन रखकर बड़ई कडे गढ़ते, कु दंगर कृउँ पर कूद कर और ई -तुलसी (शब्द॰) । किसान घास काटते है । तिहा। निष्ठा । ३. वइक में वह