पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४४६

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

कीलाल ६६३ ३ मधु ? शरद । ४ खून ! रक्त । ५ देने का एक मधुर पेय हुया लाख को पोला गोला जिसके भीतर गुलाल भरकर होती पर्य । ६ चौपाया । पशु । के दिनो ने मारते हैं । लाख को लोहे की नली में भरकर यौ॰—कीलालज= ममि । कोलालधि = समुद्र। फीलालप = फू कते हैं जिससे उ.का फ् नकर गोला बन जाता है । २ ६० | (1) भौा । (२) राक्षस 1 प्रेठ ।। कुकुम-१। उ०--कोई गटे कु कु मा चोवा । दरसन प्राप्त कीलाल-विः दघन हटाने या दूर करनेवाला । ठाढि मुख जोवा ।—जायसी ग्र० (गुप्त), पृ० ३१७ । की लिी--सा पुं० [सं० फीलालिन् ] विसतुइया । छिपकली। कु कुमाद्रि - सच्चा पु० [सं० फुङमाद्रि] एक पर्वत का नाम जो फश्मिीर कीलिका—सञ्चा सिं०] १ मनुष्य के शरीर की वे हड्डियाँ जो पग मे है को ।। और नागिन को छोड़ दूसरे स्नायु में वही होती हैं । २ एक कु कुह –सल्ला पुं० [पि०] दे० 'कु कुम' । उ०—-पेट पत्र चंदन जनु प्रकार का वाण । ३ धुरी (को०) । | लावा । कु कुह केसरि बरन सोहावा ।-जयी प्र’० (गुप्त), कीवित--वि० [सं०] १ जिसमें कील जडी हो । २ मत्र से स्तभित । पृ० १९५। । कीला हु। कु चन-सच्ची पुं० [सं० कुञ्चन] १ सिकुडने या वटुरने की क्रिया । कीलिया–सच्चा पुं० [हिं० कोल] मोट के वे लो को होकनेवाला। सिमटना । २ ख का एक रोग, जिसमें अाँख की पल हैं। पुरवोल वः । पैरा ।। सिकुड़ जाती हैं। कीली- सज्ञो छ [सं० हल] १ किसी चक्र के ठीक मध्य के छेद में कु चिसच्चा पुं० [सं० फुञ्चि] माठ मुट्ठी का एक परिमाण । एडी हुई वह वील या ड४ा जिमपर वह चक्र घूमता है। कुचिका--सच्चा स्त्री० [सं० फुन्धिका] १ घुइची ! गुजा । २ बोस । जैसे—पृथ्वी पनी होली पर घूमती है, जिससे रात और की टहनी । ३ केजी । ताले । चा मी ! ४ एक प्रकार की । दिन होता है।३ दे० 'कल' और 'किनी' । मछली । ५ हुरहुर । ६ एक प्रकार को नरकट [को ।। कीव -व्य० [हि किमि कैसे । उ०—तुझ वाजू खरी वो कुचित-वि० [सं० कुञ्चित] १, घूमा ठूत्रा । टेढ़ा । वक्र । २ घू घर- | नामिनी कीवाँ दिन परच वी!--धनानंद०, पृ० ३८४। वाले । छल्नेदार (वाल) । उ०—कु चित अदक तिलक गोरो- कीश-मछा पुं० [सं०] १ बदर । बानर । लगूर। चन, ससि पर हरि के ऐन । केवहूक खेलत जान घटत्वनि यौ--- झीशध्वज । कोशकेतु = अजुन । उपजीवत सुख चैन ।--सुर० १०॥१०३ । (ख) चिक्कन ३ चिडिया} ३ सूर्य । । कच कु चि तगभुमारे । बहु प्रकार रचि मातु सँवारे।—तुलसी (व्दि०)। कोशपूर्ण-सच्चा पुं० [सं०] अपामार्ग नामक पौधा । चिडr [क] । कीपण = सच्ची स्त्री० [सं० कोशपणन] अपामार्ग नामक पौधा [को०] ! कु ची, कुची —सुझा ली० [सं० कुञ्चिका ] ताल । कू जी । चाभी । ३०---धर्मधीर कुलकानि कु ची कर तेहि तारी दे कीस--संज्ञा पुं० [सं० कोश] वर । वानर । उ० । धन्य कीम जो निज प्रभुकाज । जहूँ है नाचे परिहरि लाजा ।—मानसे, ६॥२॥ दूरि धरयो री । ग्लक कप ४ कठिन उर अर इतेह जतन कछवे न सरयो ।—सूर (शब्द॰) । कीस--संज्ञा पुं० [फा० फीसह) गर्भ की थैली । कीमउ- वि० [ मं० फीदृश] कीदृश। कैम: । उ०- राजा जसा पु° ! स० फुञ्ज, तुल, फा० कु ज] १ वह स्थान जिमके। रोि : घनी लता छाई हो। वह स्थान जो वृक्ष नेता था। पुली मत कीसउ म्ह तो अलग चार स्या ग्राज ---वी० से मंडप की तरह ढका हो ।-उ० (क) ज” वृदावन आदि रासो, १० ११ । अजर जहँ कु १ लना विस्तार । तहे विहरत प्रिय प्रीतम दोऊ, कीमा----सज्ञा पुं० [फा० फोहू, ] १ थैली। खीस !२ जेब । निगम भू गं गुजार ।--सूर (२०३०) । (ख) सघन कुज छाया खरी।। सृखद सीतल मद समीर । मन ह्व जात अजहू बहै का नदी के कोसोव--कि० वि० [सं० कीदृश+इव] कैसे । वयों। कीदृ । तीर |-विहारी (शब्द॰) । उa-.-हह समझाई, र पेलवी । राजा कीसीब तु मागि यौ०• कु ज कुटीर = जतागृह । कु ज की खोरी = दे० 'कु जग ।' चितोड।वी रासो, पृ० २४ । । (१) उ०--सूरदास प्रमु सकुचि निरखि मुख नजे कु ज की। कु'कन् - सज्ञा पुं॰ [ १० कोण ] दे० 'कोकण' । खोर 1 -- सूर० १०।२६७ । फु जती=(१) वाटिका में कु कुम-सखा पुं० [सं० फुफु न] १ केसर। जाफरनि । उ०- लता से छायापथ । भुतभुलैया । (:) तग गौर पतली गी। कु कुम र सुग्नग जित मुख चद सो चयन होड़ परी है --- फु जविहारी = दे॰ श्रीकृष्ण । उ० •-जन ते विछु कु ज तुलसी (ब्द०)। २ लले रग की बुकी, जिसे स्त्रियाँ माथे बिहारी । नींद न परे घटे नहिं रजनी बिया विरह जुर नारी। ---सूर०, १०३३२८७ ! म लगाती है । रोली । ३ कु कु मा ।। २ हाथी का दोत् । ३ नीचे का लवडा (को०) । ४ दाँत [ो०] । कु कुमज्वर--सा पुं० [सं० कुपवर एक प्रकार का उपरे । प्रवाह | ५ गुफा। कदरा झिो)। लेने में कप्ट, छाती में गीडा, पचा थोड़ी गरमी प्रदि इसके कू ज- सच्चा पुं० [फा० कु ज = फोन[ १ वे बुटे जो दुशाले के कोनो लक्षग है -माधवः पृ० ४३ । पर बनाए जाते हैं । ३ खपरेन या छप्पर को छाजन में वह के कुमपून-सज्ञा पुं॰ [देश॰] दुपहरिया का फल । लफडी जो बड़ेर से आ कर छाने पर निरछी गिरती है। कु कुमा-सबा पु० [स- सुन] १ झिल्ली की फुप या ऐसा बना कोनिया। कोनसि । ३ .णि । कोना ।