पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४४५

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अक कुक-समी पुं० [सं० कुजक ] डेवटी पर का वह चोबदरि जो ५२ लघु, १०२ वर्ष पौर १५२ माशाएँ या ५० गुरु, १६ ल ग्रत पुर में माता जाता हो । कचुकी । ख्वाज'म । उरदा- ६८ वर्ग र १८८ मात्राएँ होती हैं । है पनि मात्रा के दौ बेग । ३०-क जक वलीव विविध परिचारक । जे निवास के प्रस्तार में पहला प्रम्तार । १०. हुस्त नत्र । ११, पीपल । खबर परचारक ।----रघुराज (शब्द॰) । १२. अाठ की सुइया । १३. शिर (मे०) । १? एक भूरण | कु अकुदौर - सा वी० [सं० कुजफुटीर] लतागृह 1 कुजगृह । लामो (को॰) । से घिरा हुया घेर । उ० --चनहि किन मानिनि कुजकुटीर। कुजर-वि० श्रेष्ठ । उत्तम । जैसे, पुकु जर, अविनर । तो विनु कु घर कोटि वनिताजुत विलत विपिन अधीर। विशेप-~-इम अर्थ में यह शब्द सुमन्त पद हैं यत में आता है। हित हरिवंश (शब्द॰) । अमर कोण फार ने इस प्रयाग में व्याने, पु गव, झपन, उर,। कुजगनी-सा श्री० [हिं० फव+गली] १. बगीचो में लता से वाया सिद्ध शार्दुल र नाग आदि शब्दों को भी श्रेष्ठ अर्थ में प्रयोग दुमा पब ।२ पसली तग गली ! सूचित किया हैं। कु जड-सया पुं० [अ० के दर] पिस्ते को गोद जो दवा के काम आता है। कू जरकरण सधा यौ० सं०करकरण]गजपिप्पली । गजल। अौर देखने में मी मस्तगीसे मिलता जुलता होता है । क दुर। कू जरग्रह- सी पुं० [सं० फुजरप्रह] वह व्यक्ति जो हाथी पकाने कु बड–स पुं० [हिं० $ जा [ी• जडी] दे॰ 'कु जडा'। | की व्यवसाय केरना हो (ले० ।। ३०-उस कु जड ने ठाकुर के शीश पर मुकु' रख दिया । -कवीर सै०, पृ० ३३५ । कूजरच्छाय-सद्या स्त्री॰ [म० कुञ्जरच्छय ज्योतिष के अनुसार कु जर–सच्चा पुं० [सं० कुञ्जर] [स्त्री० कु जर कु जरी] १ हाथी । एक योग । मुहा०- कु जरो व (नरो कुज,नरो )= हायी या मनुष्य । बिशेप-जव कृष्ण त्रयोदशी मघा नक्षत्र में युक्त होती है भया। श्वेत या कृष्ण । यह या वह । अनिश्चित या दुविधे की बात । सूर्य और चंद्र मघा नक्षत्र के होते हैं तब यह योग होता है। उ०—सोही सृमिरत नाम मुधारस पेवत परसि धरी । स्वरय मनु के अनुसार जप हुप्प में प्रयोदशी स्नौर चतुर्दगो र हूँ परमारथ हु की नहि कु जरो नरो ---तुलसी (शब्द॰) । योग हो और उमी दिन पूर्वाह्न में इन नत्र भी हो तर विशेष-द्रोणाचार्य जी के वरदान था कि उनका प्राण पुत्र- ‘कु जरचयि होता है । यह एप माना गया है और शास्त्र शोक में निकलेगा। महाभारत के युद्ध मे जब द्रोणाचार्य जी में इस दिन पितरो के श्राद्ध का वडा फल लिया है। के वाणो मे पाव दल को बड़ी क्षति पहुची तव कृष्णचंद्र ने यह गप उड़ाने की सलाह दी कि 'अश्वमा मारा गया, और कु जरदरी - सुधा नी० [4० करदरा एरु प्रदेश का नाम। इराकी सत्यता के लिये अश्वत्यामा नाम के एक हाथी को अनुमनथे। मरवा छाला। द्रोणाचार्य जी से बेहतो ने अश्वत्थामा के मारे कु जरविप्पली--सा यौ॰ [सं० फुजरपिप्पली] गजप्पिी । जाने की ममाचार कहा, पर उन्हें विश्वास नहीं आया, यह कू जरमनि —मा सी० [भ० कुञ्जरमणि] नजमुम्ता 1 ३०- तक कि स्वयं श्रीकृष्ण के कहने पर भी उन्होने सत्य नहीं । | मनि का करित उर तुलनिक माल [-नान १। २८३ । माना और कहा कि जबतक धर्मराज युधिष्ठिर न कहेगे मैं इसे कू जुर—सा त्री० [सं० कुञ्जरा] १. हयिनी । २ घातको । पर। राश्य नहीं मानूगा । इसपर कृष्णचंद्र ने युधिष्ठिर को इतना कु जरानीक-सा पुं० [सं० १ रानी] न्य। हाथियों को कहने के लिये राज्ञी किया कि 'श्वत्थामा मारा गया, न जाने नैना (०) । ६षी या मनुष्य' । अश्वत्थामा हुतो, नरो वा कुंजरो वा' । के जाति--सा पुं० [सं० कु राति हानी का नत्र, मिइ । कृष्ण जी ने ऐमा प्रवध किया कि यो हो युधिदिर के मुंह से 3 | २ शरम । एक अष्टापद ननु (०) । ‘अवरयामा हृदो' वाक्य निकला, शपध्वनि होने लगी और द्रणाचाय जी शय कु जरो वा नरो वा' जो धीरे से कहा गया के जरि -- सच्चा ५० [सं० फुरारि] हायी छ। पैरी हो । घा, न मुन म । वे प्राणपान द्वारा सब बात को जान कर उ०प्रपत्र उरि 12 दिड वीर पाए जधान हुनुमान प्राण त्यागना चाहते थे कि द्रुपद के पुर्य दद्युन्ने द्वारा, जो निए रिहै । मा ३ ज । गरि यो गर भेट जह 'पदो को नई चा, उनका सिर काट निया गया । युधिदिर तुइ पटके १ फेरि फेरिकेत (३०। के इन दिग्ध वा भ्य को कर यह मुद्दा दुविधे की जानी चुजरारोह-मा [२० फन्नो ] हापौयान । माय । ६ मधं में प्रयुक्त होता है ।। | पनवान । F न न--संप पुं० [ अन्न | भार६ ।

  • एक नाग का नाम ३ बाल कैश । ४ एक देने का नाम ।

१ ।।। सय ८५ [३० करी क ज २ ] f५नी । 3 हिन।। २. । ५ रामायण के अनुनारि एक पत झा नुम् । यह मयानिदि नाश (2) 5 f p वला का नाम था । ६. अजनों के पिता और हनुमान के नाना का नाम । ७. पदमपुराण के अनुसार एक कु जत'-- ५० [सं० -५] कवि। 5 जन५ ३ शुरु प फ नाम जिसने मरि पान को उपदेन दिया । [H० इनर) पर । । । । उ---- था। ८ रपये के २१ वे भेद का नाम जिसमे ५० गुर, । (*) * बोन पर दो । उ बिन्ह दि २ar - ३१ (१०)1 (1) 17 दिन