पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४४४

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कीमते कीर्तन । कीमत--संज्ञा पुं० [अ० कोत] [वि॰ कीमती! वह धन जो किसी २ राधिका की माता 'कीति' ।। चीज के विकने पर उसके बदले में मिलता है। दाम । मूल्य । यौ॰—कीरतिकुमारी= राधा । ३०---पीतपट नद जसुमति क्रि० प्र०——देना ।—-पानी । नवनीत दियौ कीरति कुमारी सुखारी दई बाँसुरी - रत्नाकर, मुहा०-- कीमत चढ़ना या बढ़ना=१. चीज का मंहगी होना । भा॰ २, पृ० । कीरतिनदिनी = राधा । ३०-रसिक रासि को । २. महत्व होना । कीमत उतरना= १ चीज का सुलभ या रूप, तूही कीरति नदिनी । रसिया ब्रज को भूप, करि किन । सस्ता होना । २. महत्व घटना । कीमत ठहरना = मूल्य सुख चौ चदिनी ।-यज० ग्र०, प ० २ । निश्चित होना । द म त होना । कीरत-या--सच्चा पुं० [हिं० क्तिनिया] दे० 'कीर्तनिया' ।। कीमत ठहराना मूल्य निश्चित करना । दाम ते करना । कीरम -सच्चा पुं० [सं० कृमि, हि० किरम दे० 'कृमि' उ०--- कीमत चुकना=(१) दाम देना । (२) दे० कीमत ठहराना' । कर में किए कोरम हुअा नैन विहून सोय |–सं० दरिया, १० फीनत लगाना = दाम अकना । (खरीदनेवाले का) दाम कहना।। कीमत---वि० [अ० कीमत + फा० ई (प्रत्य) ] अधिक दामो का । कीरशुदा--सच्चा स्त्री० [सं०] चतुर्दश ताल का एक भेद जिसमें तीन | वहुमूल्य ।। मघात, एक खाली और फिर तीन अघित होते हैं। कोमा--सज्ञा पुं० [अ० फीमह] बहुत छोटे छोटे टुकडो में कटा हुमा । कीरा -सज्ञा पुं० [हिं० कोड़ा दे० 'की' । उ०—वर मागत ।। गोश्त (वाने के लिये) । क्रि० प्र०-—करना ।--नाना । | मन भइ नहि पीरा । गरि ने जीहू मुंह परेउ न कीरा 1-- महा०- कीमा करना = किसी चीज के बहुत छोटे छोटे टुकड़े मानस, २ । १६२ । करना । उ०-चाह तो अग्नि मे दहन फर ६ चाह तो दीवार कीरात--- सच्चा पुं० [अ० कीरात] चार जौ की तौल । किरात । में चुन दू-चहू तो टुकड़े टुकड” काटकर कीमा फरू-और यदि कोरि–सझा पुं० [स०] १ स्व ति । प्रशंसा । २. स्तोत्र [क्ये] । चाहे तो बटुए में चुरा डाले।--कवीर म०, पृ० ११६ । यौ॰—कोरिचोदन= प्रशसा की प्रेरणा करना । प्रशंसक को । कीमियT -सक्षा स्त्री० [अ० फीनियह ] १. रासायनिक क्रिया । बढ़ावा देना । रसायन । २, सोना चदि बनाने की विद्या । ३. वह रसायन कीरिभार--सज्ञा स्त्री० [सं०] जू [को०] । राना मी० [सं०] ज’ (ो । जो अक्सीर या अमोघ हो । ४ कार्य सिद्ध करनेवाली युक्ति ।। कीरी- माझा ची० [सं० फीट अथवा कोटि का] १ महीन कीडेछोटे कीडी यौ---कोभियोगर । जो गेहू', जौ यो चने की दाल के भीतर जाकर उसका दूध खी कीमियागर- वि० [अ० कोमियह + फा० गर (प्रत्य॰)] १. रसायन जाते हैं। २ चीटी । कोडी । उ-साई के सव जंव है कोरी। | बनानेवाला । रासायनिक परिवर्तन में प्रवीण । २. सोना कु जर दोय !-कवीर (शब्द०)! ३ बहुत छोटे कीड़ ! ४ । चाँदी बनानेवाला । ३. कार्यकुशल । व्याघ या बहेलिया की स्त्री । की मयागरी--सच्चा स्त्री० [हिं० कीमियागर+ई (प्रत्य०) ! १, १, कीर्त -सच्चा स्त्री० [सं० कीर्ति ] दे० 'कीरति' । उ०—कीतं बघाऊ। रसायन बनाने की विद्या । २ सोनी चाँदी बनाने की विद्या ।। तो नाम न मेरा काहे झुट । पछताऊ घेरा ।- दक्खिनी, कीमियाज-वि० [अ० फीमियह, +फा० साज़] दे॰ 'कीमियागर'। १.० १०५ । । कीमत-सुज्ञा पुं० [अ० कोमुख्त] गधे यो घोड का चमडा जो हरे र कीर्ण--वि० [सं०] १. फैन हुआ । विखरा हुआ । ३०-वधु, विदा | रग को और दानेदार होता है । इसके जूते बरसात में पहने दो उस भाव से तुम हमे वन काँटे बने कीर्ण कु कुम जाते हैं । हमे ।-साकेत, प.० १४४ । २. ढका हुआ (को०) । ३ धारण कीमख्ती--वि० [अ० कोमुख्त+फा० ई (प्रत्य०) ] की मुख्नु की । किया हुआ (को०)। ४. स्थिति (को०)। ५ अाही । चोट | वना हुअा ।। कीर-सज्ञा पुं॰ [सं०] १ शुक । सुग्गा । तोता। २. व्याघ। बहेलिया । खाया हुअा (को०) । ३. कश्मीर देश ४ कश्मीर देशवासी । ५ मास (को०)। कोणि-सच्चा स्त्री॰ [सं०] १ विखेरने या फैलानेवाली स्त्री। २ माच्छा कीर(03-सच्चा पुं० [हिं० फेवट] कछुवा। केवट । उ०—कडिया दन या गोपन करनेवाली स्त्री । ३ अाघात करनेवाली स्त्री खुटकी जाने की अाइ पहूची कीर ।-कवीर सा०सं०, पृ०७५ [को॰] । काति-वि० [सं० कीर्ण] अकित । उत्कीर्ण । उ०—जहाँ तुम्हारे करकु---सा पुं० [सं०] १ उपलब्धि । प्राप्ति । २. एक वुद्ध। ३. एक चरण-कमल, चकर कीणित कर जाते हैं । -कुकुम, १.० ४६ ! | वृक्ष का नाम कि॰] । कीरणा--सच्चा स्त्री० [सं०] एक नदी का नाम [को०)। कीर्तन-सा पुं० [सं०] १ कथन । यशवर्णन | गुणकयन । २ राम कीरत - सच्चा स्त्री० [सं० कोत] दे० 'झीरति' । उ०—-बलभद । सबंधी या कृष्णलीला सवधी भजन और कथा आदि। कीरत की लीक सुकुमार हैं।--श्याम०, १० २६ । यौ॰—हरिशीतन । नगरकौतन । कीरतुन-सया पुं॰ [सं० कोतन] दे० 'कोन' । । ३. कथन । वर्णन | जैसे, गुण कीर्तन । ४, मदिः । भवन (को०)। कीरति —सबा पौ• [सं० को त] १ दे० 'फीति' । २.। उ०-- कीर्तनकार--सा q० [सं० फीत फार तन करने जा भरत । कुवरि मनोहरि विजय वनि, कीरति पति कमनीय । पावनहाए कीर्तन -सज्ञा स्त्री॰ [सं०] १. कथन । वणन । २ प्रसिद्ध । क्याति विरबि इन, चेज़ न धन दमदीय नमसी ( ०) । [सं० ।