पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४४२

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की कुना कीभृग कीकना--क्रि० अ० [ अनु० ] की वी करके चिनाना । हुर्ष, क्रोध अरगज़। यसा, कुमथुम कुमति बिसार । घर घर धूर कृर सम यो भयसूचक शन्द करना । चीत्कार करना । ६ दिौ, करमन कोचर घोरी ।-घट०, पृ० २८० । कीकर-सच्ची पुं० [सं० किङ्करल] बबूल के पेड । उ०—छल कीकर कीट-संज्ञा पुं॰ [सं०] १ रेंगने या उडानेवा। शुद्र जतु । कोढ़ा । के काटि के चाँधो धीरज बार }---वरण वानी, पृ० ९ । | मोछ । कीकरी'- सम्रा सी० [हिं० कीकर ] एक प्रकार 1 कीकर बवूल विशेष-सुश्रुत ने कोटव ल्प में इनके जो नाम गिनाए हैं और जिसकी पत्तियाँ बहुत नहीन महीन होती हैं। उनके काटने ?ौर इक मारने आदि से जो प्रभाव मनुष्य के कोक –सच्चा श्री० [हिं० कॅगूरा] एक प्रकार की सिलाई जिसमें शरीर पर पड़ता है, उसके विचार से उनके चार भेद किए हैं। कपडे को कतरकर लहरदार या कँगूरे र बनाते हैं। वाप्रकृति, जिनके काटने प्रादि से मनुष्य के शरीर में वात | क्रि० प्र०काढना --काटना --{नाना। मा प्रकोप होता है । पित्तप्रकृति, जिनके काटने से पित्त का कोकश---सच्चा पुं० [सं०] चाईलि (को॰) । प्रकोप होता है । पलेष्मप्रकृति, जिनके काटने से कफ कुपित कोकस–सच्चा पुं० [सं०] १ हड्डो । २ एक कीड़ा । (को०) । होता है । त्रिदोपप्रकृति, जिनके काटने से ग्रिदोष होता है । कीकस-वि० [सं०] कठोर । दृढ़ (को०)। अगिया ( अग्निन [मा ), ग्वालिन ( प्रवर्तक ) आदि को की समुख–सुज्ञा पुं० [सं०] पक्षो । चिड़िया (को॰) । वातप्रकृति, निद भौरा, ब्रह्मनी (ब्रह्मणि Fr), पतविधिया। कीकसास्य-संज्ञा पुं॰ [सं०] दे० 'झी कसमुख' (को॰) । या हिउ की ( पत्रवृश्चिक), कनखजूर। (शतपादक) मकड़ी, का संज्ञा पुं० [सं० फीकट ] घोडा । गदहृन ( गर्द भी ) अादि को वित्तप्रकृति तथा काली गोह कीकान-सच्चा पुं० [सं० चैकाण ] १ का देश जो किसी समय अादि को श्लेष्म प्रकृति निखा है । अपर को नामावली से घोरों के लिये प्रसिद्ध था । २ इस देश का घोडा । ३ घोड़ा । स्पष्ट है कि कीट शब्द के अतर्गत कुछ रीवाले अतु भी आ गए हैं, पर अधिकतर विना रीढ़वाले जतु ही को कीट अश्व । उ०--हरि जान से कोकान इमि उमउ कान उन्नत कहते हैं । पाश्चात्य जीवततत्वविदों ने इन विनी रीढ़वाल करे --गोपाल ( शब्द॰) । जतुझो के बहुत से भेद किए हैं, जिनमें कुछ तो झारपरि- कीगिनी-- सच्चा क्षी० [ अनु० या देश० 1 पक्षियों की बो । उ०- वर्तन के विचार से किए गए हैं, कुछ पख के विचार से प्रथम बानि की गिनी जो होई । अड: बानि समानी सोई । शोर कुछ मुखाकृति के विचार से । हमारे यहाँ कोट शब्द वीर० स०, पृ० ८८० ।। कै अर्तगत जिन जीवो को लिया गया है, वे सर्व ऊष्मज और कीच -सया पुं० [सं० कच्छ ] कीचडे । कर्दम । पक । उ०--(क) अडज है। ऊष्मज तो सब कीट हैं, पर सुद ऋडज कीट नहीं गगन चढ़ रज पवन प्रसंगी । कीचहि मिले नोच जल संगा। हैं । जैसे, पक्षी मछलो अादि को कोट नहीं कह सकते । तुलसी (शब्द॰) । (ख) पायर गरे कोच मे, उछरि विगारे २ हीनता या तुच्छतापजक शब्द । जैसे, द्विपकट = तुच्छ हाय।। अगे ।--(शब्द॰) । पक्षिकटि ।। कीचक---संज्ञा पुं० [सं०] १ वाँस, जिसके छेद में घुसकर वायु हू हू कीट-वि० कड़ा । कठोर क्वेि०] । शब्द करती है। २. पोला वाँस (को०) । ३ राज। विराट का कीट-सक्षा पुं० [सं० किट्ट जमी हुई मैल । मले । साला और उसकी सेना का नायक । क्रि० प्र०—मना ।—लगाना । विशेषजब पालव लोग राजा विराट के मेह) अज्ञातवास करने कीटक-संज्ञा पुं॰ [सं०] १. कीड़ा । २ मागध जति घा चारण थे, उस समय कीचक ने द्रौपदी से छेड़छाड़ की थी। इसी पर [ ] । कीटक-वि० कड़ा ! कठोर ।। भीम ने उसे मार वाला था। कीटन-सज्ञा पुं० [सं०] गधना [को०] । यौ-फीचकजित् = 'मीम् । कीटघ्न-वि० कृमिनाशक । कीटाणुनाशक । कीचड़-सा पुं० [हिं० घोच+छु (प्रत्य॰)] १. गीली मिट्टी । कीटच-सच्चा पुं० [सं०] रेशम । रेशमी वस्त्र। पौशय (को०] । पानी मिली हुई धूल या मिट्टी। कर्दमपक । कीटज--वि० कीट से उत्पन्न (को०] ।। महा०—-कीचड़ में फँसना= असूमजस में पवृन। संकट में । कीटजा---सज्ञा औ० [सं०] लक्षिा । लाख की । पड़ना। कठिनाई में पड़ना । कीटनामा, कीटपादिका, कीटपादी-सच्चा स्त्री० [सं०] लाख [a] । २. अखि का सफेद मले जो भी कभी प्रख के कोने पर ग्रा फोटभ ग--सच्चा पुं० [सं० फीटभृङ्ग] एक न्याय, जिसका प्रयोग उस समय होता है जब दो या कई वस्तुए” बिलकुल एक रूप हो जाता है । जाती है । उ०-भइ गति कीटभु ग की नाई । जहूँ तहूँ मैं देखें क्रि० प्र०-माना ।—निकलता !--बहनो । रघुराई ।—तुलसी (शब्द०)। कीचम –वि० [हिं० कीच+प्रा० म (प्रत्य॰)] गदी । मलिने । विशेष-भू ग या गुजिनी ( जिसे विली गौर भेवरी भी कहते ३०- सु५२ सदगुरु ब्रह्म मय परि शिप कीचम दृष्टि। सूधी वोर हैं ) के विषय में यह प्रवाद प्रसिद्ध है कि वह दूसरे कीडो को न देखई देष दर्पन पृष्टि -सुदर में ०, भा० १, पृ॰ ६७२ । अपनी विष से पकल हो जाती है और उन्हें अपने रूम का कर कीचूर -सवा पुं० [हिं० फ़ीचर] दे० 'कीच उ०-चोया चित्र लेती हैं ।