पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४४०

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किसमिस किस्मत किसमिस- संज्ञा पुं॰ [फा० किशमिश] दे० 'किशमिश'। किसोरि –सवी सी० [ मं० किशोरी ] दे० 'किशोरी' । उ०--- किसमिसी–वि० [फा० किशमिशी ] दे॰ 'क्रिशमिशी' । सुनि निकसी नव नाहिली श्री राधा राज किसरि ।--नद० किसमी- सच्चा पुं० [ अ० कसबी ] श्रमजीवी । कुली । मजदूर । ग्र०, पृ॰ ३०३ । उ०--कि समी, किसान, कुलवनिक, भिखारी, भाट, चाकर, किसोर--सच्चा स्त्री० [सं० किशोरी ] ६० 'किशोरी' । चपल, नट, चोर, चार चेटकी --तुलसी (शब्द॰) । किस्त--सूझा नी० अ० किस्त ] १ ऋण या देन चुकाने का वह ढग किसल-- सच्चा पुं० [सं०] दे० किसलय'। उ०-नव किसल धनुक | जिसमे सव ६पया एकवारी न दे दिया जाय, बल्कि उसके जनु कनक वेलि । तिरि चलिय जमुन जल कदम केलि । लटके कई भाग करके प्रत्येक मार्ग के चुकाने के लिये अलग अलग सुवान वैनिय सुरग । सोमै सु दुत्ति विच जन तरग ।--पृ० समय निश्चित किया जाये । जैसे—सव रुपए एक साथ न रा०, २॥३७४ । दे सको तो किस्त कर दो। किसलय—सा पुं० [सं०] दल । नवपल्लव । नया पत्ता । यौ--किम्तृवंदी। किसले -- मल्ला पुं० [सं० किगलय]३०'किसलय' । उ०—कचन गुच्छ क्रि० प्र०—करना ।—बाँधना । विचित्र सुच्छ जहें किसले लाल लखाही ।—यामा० पृ०,११८ | २ किसी ऋण | देन का वह भाग जो किसी निश्चित समय पर किस --वि० [सं० कीदृश (कीदृशः ), प्रा० किसउ दे० 'कैसा' । | दिया जाध है जैसे --उसके यहाँ एक किस्त लगान बाकी है। । उ०—दिन दिन जोवन तन विसइ, लाभ किसा कर्ज लेसि ।- यौ०--किस्तवार । ढोला ६० १७७ । क्रि० प्र० --अवा करना ।—चुकाना -देना । किसान-सञ्ज्ञा पुं० [सं० कृषाण प्रा० किसान] १ कृवि खेती ३ किसी ऋण या देन के किसी भाग के चकाने का निश्चित करनेवाला । खेतिहर । २ गाँव में नाई, वारी अादि जिनके समय । जैसे,—-दो किस्ते बन गईं अभी तक रुपया नहीं माया । घर कमाते हैं उन्हें किसान कहते हैं । | किस्तबदी--सच्चा स्त्री० [अ० किस्त+फा० वदी ] थोड़ा थोडा करके किसान -सज्ञा स्त्री० [सं० कृशानु] भाग । ज्वाला । उ०—भूति । सपा अदा करने का ढंग । के सुन के वचन, उर में उठी किसान । उठी सभा मृग सिंह किस्तवार–क्रि० वि० [फा० किंस्तवार ] १. किस्त के ढंग से । | ज्यो वुति व नहीं जुदान -प रासो०, १० ११९ ।। किस्त किंग्त करके 1 २. हर किस्तु पर । जैसे,—वह किस्तवार किसानी-- संज्ञा स्त्री॰ [ ६० किसान ] खेती । कृषि कर्म । किसी नजराना लेता है। का काम । किस्ती -सच्चा [ फा० किश्ती ] दे० 'किमती' । उ०----साहिब क्रि० प्र०—करना ।—होना । किती चही, पठाई मुनसी 'कसवी' --प्रेमघन, भा॰ २, पृ० किसा- ---वि० कृषि सवधी । खेती से सधंध रखनेवाला ।। ४१५। किसम- सुधा श्री० [अ० किस्म] दे० 'किस्म । किस्न--सा पुं० [सं० कृष्ण ] दे॰ 'कृष्ण' । ३०--किम्न के करा किसी–मर्व, वि० [हिं० किस+ही] हिदी के प्रश्नार्थक क' चढा ओहि माथे । तर सो छुटे अव छुट ने नाथे ।----जायसी शृखला का वह रूप जो उसे विभक्ति लगने से पहले प्राप्त होता ग्र ०, (गुप्त) १० १९६ । है। जैसे, किसी ने, किसी को, किसी पर आदि । किस्म--सच्चा पुं० [ अ० किस्म ] १ प्रकार । २. भेद । भति । किसी-वि० हिदी के प्रश्नार्थक 'क' श्रृंखला का वह रूप जो उसे उस तरह । ३, ढंग । तुज । चाल । जैसे,—वह तो एक अजीब समय प्राप्त होता है जब उसके विशेष्य में विभक्ति लगाई किस्म का अादमी हैं। जाती है । किस्मत–सझा स्त्री॰ [ अ० किस्मत ] १. प्रारब्ध 1 भाग्य । नसीव । मुहा०—किसी न किसी = कोई न कोई । कोई एक । एक न एक । करम । तकदीर । उ०—यह न थी हमारी किस्मत कि विसाले किसीस- संज्ञा पुं॰ [सं० कीशे] हनुमान । वानरेश । उ०—करा यार होता । अगर र जीते रहते यही इंतर होना -- जोड रूप कीस, साम पाय नाम सीस । बाध चाल महावीर, कविता कौ० } *T० ४, पृ० १६ ।। कुदियो किसीस ।--रघु० रू०, पृ० १६५ । मुहा०--किस्मत आजमाना = 'भाग्य को परीक्षा करना। किमी किसु –सर्व० [सं० फल्य प्रा० कीस, अप किसु] किसका । उ० के यं को हाथ में लेकर देखना, यि उसमें सफलता होती है या नारद कर उपदेश सुनि कहहुँ बसेउ किसे गेहूं ।—मानस, नही। उ०—हम कहाँ किस्मत आजमाने जायें । तू ही जव ११३८ । खजर प्रजमा न हुआ।--1लिव ० । किस्मत उलटना = किसुन - सझा पुं० [ सै० कृष्ण ] श्री कृष्ण । भाग्य खराव हो जाना । स्मित खुलना = भाग्य अच्छा होना । किसू - सर्व० [हिं० किसु ] दे॰ किसी’ । ०---अरे हमना किसू किस्मत चमकना = भाग्य प्रवल होना। किस्मत जगना या | के हैं अगर कोई ना हमारा है ।—संत तुरसी०, पृ॰ ३३ ।। जोर्गना = भाग्य का अनुकूल होना । किस्मत पलटना := भाग्य किसेन- सज्ञा पुं॰ [ सं० कृपाण हि० किसान ] दे॰ 'किसान' । उ०---- में परिवर्तन होना । प्रारब्ध का अच्छे से बुरा या बुरे से अच्छा घण माल ज्यु ही असुराण घड़ा। खित् अब त मेन किसेन होना । किम्मत फिरना = दे० किमत पलटना' । किस्मत उड़ा-रा० ९०, पृ० ३३ । फुटना = माग्य का बहुत मद हो जाना। किस्मत लड़ना =