पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४३९

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कितवर कोकट (१)भाग्य की परीक्षा होना । जैसे,—इस समय कई अदमियों ते देखी तिण पूछिय उ, कुण ए राजकुमारि । किहू पीहर कि की किस्मत लड़ रही है. देखें किसे मिलता है। (२) भाग्य सासरउ, विगन-इ कहुई विचार -ढोला०, ६०८६ । इतना = प्रारब्ध अच्छा होना । जैसे,—उनको किस्मत लेडगई किहकल---सा पुं० [देश॰] एक चिडिया। दे इतने उँचे पद पर पहंच गए ! किस्मत का लिवा पूरा किहाँ+--क्रि० वि० [ हि० ] के यो । उ० - वेदै तीरथ वरत होना= भाग्य का फुल मि बना! करावे अन बोले कि हा घाव । चलते चलने पर गिरानी रोवती यौ० - किस्मतवाला = भाग्यवान् । बडे भाग्यवाला । किस्मत घर के आवे |--० दरिया, पृ० १२४ । का घनी=सका भाग्य प्रदेउ हो । 'मापवान् । किम्मत का f: (-वं० [हिं०] दे॰ 'किस' । किसे । उ०-क न्ह के वन मोनों की रेठा= जिसका भाग्य मद हो । अभागा । वदकिस्मत । किस्मत छाती 1 हरिहै कहा,गोप किहि दात ।-नद•ग्र, पृ० १९१ । का फेर= भाग्य की प्रतिकूलना। किस्मत का विश्वा=वहे । । किंहिG-सर्वं वि० [सं० कम् + हि०] किसको किसे। उ०—काढू न जो भाग्य में लिखा है। करमरेख । २. किसी प्रदेश कावड़ भाग जिसमे कई जिले हैं और जो एक कर अवल प्रवल, किहि जग काल न खाय । ० रानो, कमिश्नर के अधीन हो । कमिश्नरी ।। पृ० २८ । किस्मतवर= वि० [अ० किस्मत +फा० वर] मरवान् । उ०—-इस किहि-सवें० [हिं०]६० 'किस' । 'उ०---तुच्छ, अल्प, लव, सूक्ष्म, तनु, दु-िया में आज कौन मुझसे बढ़कर है किस्मतवर 1-ठडा०, निपट किशोदर तोर कहि वलि एत मान तचि, गयो है। पृ० २५ । किहि र ।---नंद० ग्र०, १० ६७ । किस्सा-सा पु० [अ० किम्सह ] १ कहानी । कया। प्रायन । हिनी-सच्चा सौ० [हिं०] ६० कुहनी' । क्रि० प्र०—कहना |-सुनना ।—-सुनाना, इत्यादि । कींगरी -सुझा स्त्री० [हिं० किगिरी ] दे० 'किगिरी' । ३०-यात ५०- किसी कहानी झूठी कल्पित कथा । २ वृत्तात् । समी- ।। किमरी निरव ना, सुनि सुनि चित भइ बावरी, रीझे मन | चारे । हाल । जैसे, उनका किस्सा वडा भारी है। मुल्तान ।- कबीर श०, भा० ३, पृ० १६ । १ि० प्र०—कहना १-सुनना ।। कीच-सा पुं० [ हि० कोच ] दे० 'कीच' । उ०—कुमति कोच चैन। मुहा०—किस्सा कोताह या मुक्तसर = (झि० वि०) थोई में संक्षेप। भरा गुरू जान बल होय । जनम जनम का रचा, पन में हार मे । सरिशि । किस्सा नाघना= अपनी बीती सुनाना । अपने धोय |--कवीर सा० स०, मा० १, प० १०। कप्ट को वृत्तति अरंभ करना । जैसे—अव चलो, वे अपना को" - प्रत्य० [हिं० का } हि० विभक्ति 'क' का स्त्री० | जैवै,-- किस्सा नाघेगे तो रा हो जायेगा । किस्सी बढ़ाना = किसी उस की गये । । वृत्तात का विस्तार से कह्ना । का?--क्रि० स० [ सं० कृत, प्रा० किय ] हिं० 'करन। ॐ भूउकालिक ३. कार! झगडा । तुकार। रूप “किया' का स्त्री० । जैसे,—उसने बढी चढायत की। मुहा०—किस्सा खडा करना= काड खड़ा करना । झगडा खड की –व्य० [हिं० 'कि' का विकृत रूप ] १ कप । उ०—अपयश करना । किस्सा स्वतम करना, चकना, तमान करना या पाक योग की जानकी, मणि चारो को कान्हि ।—तुलसी (शब्द०) करना=(१) झगड़ा मिटान । झझर दूर करना । (२) ३ या । या तो । उ० –को मुख पट दीन्ह हैं, की यथार्थ किसी वस्तु या विपय को समूल नष्ट करना । फिस्सा खतम भाखत ---तुलसी (शब्द॰) । होना, चुकना, तमाम या पक होना=(१) झाड़ा मिटना । (२) किसी वस्तु या विषय का समूल नप्ट होना । किस्सा मोल की'-- संझा स्त्री० [अ० १. वह पुस्तक जिसमें किसी प्रथ या पतको सेना= झगा बड़ा कारना। किस्सा नविना = झगड़ा खड़ा के कनि शब्दो के अर्थ या उनकी व्यक्ष्यिा की गई हो । कु जी करना ।। ३. चावी । ताली । किस्साकहानी-संज्ञा पुं० [हिं० किस्सा + कहानी) कल्पित वात् । कोक-सा १० [अनु॰] चीत्कार। चं'छ । चिल्लाहट । शोरगुल । झूठी या मनगढ़त वात् । निरयक चीज । क्रि०प्र०—देना ।—मारना । उ॰—वहं काक दिपु गाने गीध बलाक प्रापि भवत हैं । योनि जमाति र कार्य किस्सागो-- सच्चा पुं० [फा० किसाग)] १. कहानी कहनेवाला । । ३.कहानीकरि । रुघाकारे । उ०- 9 मचद पैदायश। किस्सा- देत पल अभिवत हैं।-रघुराजे ( शब्द०)। ने थे 1 - प्रम० और गोक, पृ० २१७ । किट-सी पुं० [सं०] [स्त्री० फीठो ] १ मग इन 5 कित्सगाई-सका श्री० [फा हिस्सागोई कहानी कहना । उ-- वैदिक नाम । उनकी वर्णनात्मक प्रवृत्ति में कथक को स्वभाव में किस्सागोई विशेष--तंत्र के अनुगार चर।दि । चुनार } 8 नकर किट में परिवर्तन आता या है -- म० र गोक, १० १६: (गिद्धौर तक काकट देश है । मगध उसी के अंतर्गत है। झि६७-६० [सं० कः] कोइ । किसी । उ०- दुज पनि बेस सुद्र २. [० कोटी] पोड़ा । ३. प्राचीन काल झी एक अनार्य जाति वरन उर्ज न कि तुक्कत नयन । बसने नारद रद्द भये पनि। जो कोकट दे में बसती थी। लई ने कह निस दिन ।-५० चयन १०, ११४१३ । कीकूट-व० [ Gि३ औ डों ] १ निधं न । शरीर । ३सी । -अभ्यः [पा रुकु,०, रु ३० का। -- कृपय । । ।