पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४३७

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६५५ वालक । किमत किशोर किशोर-संज्ञा पुं० [सं०] १ ११ से १५ वर्ष तक की अवस्था का किप्कु'–मुज्ञा पुं०[स०]१ २४ या ४२ अंगुन का परिमाण । २ वित्ता। वालिश्त । विलाद । ३ लाई नापने का एक पैमाना (को०] । यौ०-युगलकिशोर । किकु'- वि० १ घण् । गर्हणीप । २ वुरा (को॰) । २ एव । वैशा। जैसे-- कशोर । ६ –घोडे का बछेडा। ४. किष्कुपव-समा पु० [ मुं० किकुपव॑न् ] १ ईख । मुन्ना। २. सिंह प्रादि का बच्चा जो जवान न हो । जैसे, केसरीकिशोर, । नरकट । ३ वम [को॰] । मिकिशोर । ५ सय [को०] । किष्ण-सज्ञा पुं० [सं० कृष्ण ] दे० 'कृष्ण' । उ०—किष्ण विरह किचौरक-सुच्चा पु० [सं०] १ छोटा बालक । २ तिमी जीव का। गोपिका मई व्याकुल सु विकलु मन ।—पृ० रा०, २३४६ । बच्चा । उ०—शशिहि चकोर किशोरक जैसे -तुलला किस--सर्व० [सं० कस्य] 'कौन' का व रूप जो उसै विभक्ति लगने के शब्द०)। पहले प्राप्त होता है । ऊँ मे --किसने, किसको, किसमे इत्यादि । किशोरी - सच्चा नी० [सं०] किसी जानवर की मादा स तान । जैसे, । | किस-- वि० 'कौन का वह रूप जो उसे उस समय प्राप्त होता है जब बड़ी । २. युदती ! तरुणी । ३ पुत्र । जैसे, जनककिशोरी उसके विशेष्य में विभक्ति नगाई जाती है। जैसे, किस व्यक्ति व भानुकिशोरी ।। को, किस वस्तु में । किश्त–स बी० [फा०] १ शतरंज के खेल में बादशाह का किसी विशेष—इस शब्द के अंत में जब निश्चयार्थ के 'ही' लगता है. | मोहरे की घात में पहना। इसे 'शह' भी कहते हैं। तव उसक' रूप 'किमी' हो जाना है। क्रि० प्र०--देना ।—लगना क्रिसत- सच्चा झी० [अ० फिल्त] दे० 'किस्त' । उ०—च्यार क्रिसत २ खेती ! कृप । फीवी चल ढिक्खण हुदै राह । -रा० ल०, पृ० ३५० | यो०----किश्तकार= किसान । काश्तकार । किश्तकारी= खेती । किसती--संज्ञा स्त्री॰ [फा० किश्ती ] दे॰ 'किश्ती' । का काम । किसानी। किंतजार= वह भू भाग जहाँ चारो । किसन) - सज्ञा पुं० [सं० कृष्ण] दे॰ 'कृष्ण' । उ०—राम किमान गौर हरे भरे खेत हो । कित्ती सुरस कने लगे दहु वार । कुछ अव कवि चंद की किश्वार- सय पुं० [फा० किश्ते = खेत +दार (प्रत्य॰)] पटवारियों सिर चहृवाना भार ।—पृ० रा०, २३५८५१ का एक कागज पिसमें खेती को नवर, रकबा अादि दर्ज रहता है। यी०- किसन वीपीयन = कृष्ण द्वैपायन अर्थात व्यास' । उ०—- किश्तिया'- सवा चौ० [फा० f६३ती] दे॰ 'किश्ती' । उ०—हे। वालिमक रिषराज किन दीपायन घागि ।-० रा०, दरिया गुन घेवो किश्तिया होय पार - सं० दरिया, २१५८६ । किसुनाई - सच्चा स्त्री० [हिं० किसान +ई] (प्रत्य०) किसान का काम् । किश्त्यिा --वि० [फा० किती+हि० इया (प्रत्य०) ] किश्ती के । किसानी। खेती । अ'कार । जैसे fuश्तिया टोपी। किसनषु १–सद्या स्त्री० [सं० कृष्ण ] कृष्णा नाम की दक्षिण की एक किश्ती-- सुज्ञा स्त्री॰ [फा०] १ भाव । नदी । उ०—ीमा धुनी पयःपनी गोदावरी 7हीर । ॐनत मद्रा यौः—हितीनुमा=नाव के आकार का । पूरण किसन निरमल नीर ।-वॉ की ग्र ०,भा० ३, पृ०७३ २ एक प्रकार 1 थिइल थीं या न वी तश्तरी जिसमें रखकर कि नावि० स्त्री० [सं० कृष्णः कासी । अँधे । ३.... किनी को कुछ भगत देने हैं । ३ शत्रज का एक मोह नभ जिते न ऊग में, औं सोप अदीत नर तिसना किसना निसा, जिने हा जी भी कहते हैं । भिटे इन नँह मत ! - बाँकी में ०, मा० ३, पृ० ५४ किनुमा-वि॰ [का०] नाद के प्रकार का । जिपके दोनों किनारे किस - सच्चा पुं० [मे० कृष्ण] कृपया । वासुदेव ।। टेढे व ध वाकार होकर दोनों छोरो पर कोना ४ते हुए। किसव --सज्ञा पुं० [अ० करुच १ रोजगार । व्यवसाय । २ मिले । जैसे- किश्तीनुमा दो। कारीगर । कला कौशल । उ०---चाकरी ने मायरी न खेती न किकध----सज्ञा पुं॰ [ सं० किष्किन्ध ] १. मैसूर के मामुपास के देश वनिज भीख जानत न कूर कछु किस करारू है !-तुलसी का प्राचीन नाम । विशेप-राम के समय में यह देश विलकुल जंगल था अौर ( शब्द॰) । यहीं का राजा था। किसवन-संज्ञा स्त्री० [अ० फिमवत] १ एक थैली जिसमे नाई और जर हि अपने उस्तरे, कैची अादि ग्रौजार रखते हैं । २. पोशाक। | २ एक पर्वत जो किल्कि देश में हैं। उ०—रूपा और सोना तू एक बार देखत । अड़ता है क्यों कोकधा-सा बी० [ से० किष्किन्धा ] १, किष्किंध पर्वतश्रेणी । पडून जर तार किंमत --दक्खिनी॰, पृ॰ २५५ । २ मिकिध पर्वत की गुफा ! ३ रामायण का एक कार किम -सशी ब्री० [ अ० कसन ] दे० 'किनम' । जिसमे किष्किघा सवधी रम का चरित्र वणित है। किसम- संज्ञा स्त्री० [अ० किम्म ] दे॰ 'किस्म । फिकिग्र--सच्चा पुं० [सु० किष्किन्ध्य] ६० 'किष्किध' को । बाष्कघ्या-सा मी ( स० किष्किन्ध्या ] दे० 'किष्किघr' (को०)। यो:-फिसमें किसम का= 'भति भाँति का । अनेक प्रकार का । किस्मत--सा धौ• [ J० किस्मत ] दे॰ किस्मत । --