पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४३६

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किलुकीना ६५३ किलम अनिद प्रकट करना कि मकान मारना । इर्पध्वनि करना । किनकिला---मा पु० [अनुव०] नमुत्र का वह भाग नहीं की। उ०-(क) तुलसी निहारि फपि भालु किलकत ललकत लखि ज्य लहरें भयकर शब्द करती । उ०—नुनि किलकिला कंगाल पातरी सुनाज की --तुलसी (शब्द॰) । (ख) गहि मई में ६ मा । गा धीरज देखने ३२ घाई ।--प्रायसी पलका की पाटी छोले । किलकि किलकि दसन नि दुनि खोजे। (३०) । लाल (शब्द०) । (ग) अ ते असू छलका कर भी खिली पखु किनकि ना-१० ५ घरबार । कति । ऊ०–बरसे। डि पकज किलके ।-हिम ते०, पृ० ३६ ।। बावीस को पानी, बेरा दन के बाइपा, सिर किलकिला के - किलकाना–क्रि० अ० [अ०फलक, हिं० किलक] व्याकुल होना।। वी० राम, पृ० ।। दुखी होना। उ०—विछरि परी सहचरिन संग ते डोलत वन किनकिलाना--कि० अ० [हिं० किलकिला] १.ग्रानंदनाच किलकाह रे ।-घनानंद, पृ॰ ५३७ ।। शब्द करना । कृपध्वनि करना। उ०-चली चम् च प्रोर शोक किलकार संघा स्त्री॰ [हिं० किलक] वह गंभीर पौर अस्पष्ट स्वर कछ बने न वरनत भर । किलकिलात कसममन कालाहल जिसे लोग शानद सौर उत्साह के समय मुह से निकालते हैं। होत नीति तीर। -तुलसी (शब्द०)। २. अस्पष्ट शब्दों में हुर्पध्वनि । उ०—कलरव करते किलकार रार ये मौन मूक चिल्लाना । हुल्तागुल्ला करना । ३ वादविवाद करना । तृण तरुदल पर । तकते अपलक निश्चल सोए उड़ उड़ प-वे- झगड़ा करना । दियो पर सदर ।—युग०, पृ० ६० ।। किलकिलाहट-सश जी० [हिं०कित किलाना] किलकिलाने का द६॥ किलकारना--क्रि० अ० [अनु॰] किलकार भरना । चिडियो का कलकिलित- सम्रा पुं० [म०] मानद,पं यादि का ये जन शब्द (०] । प्रसन्नतापूर्वक बोलना । चहचहाना । उ०-छग कुल फिलकार किल के कर किल को-सया भौ• [फा०किलक= नरकट या कलम बाइयो का रहे थे, कलह से कर रहे कलरव कामायनी, पृ० २६५ ।। एक औजार, जिससे वे नाप के अनुसार काठ पर निशान किलकारी-सच्चा स्त्री० [हिं०किलकना] वह गंभीर मौर अस्पष्ट | करते हैं । स्वर जिसे लोग अनद के समय मुह से निकालते हैं। किलकैया'--स्वर पुं० [देश०] नए के ढग का एक प्रकार हुर्पध्वनि । का रोग, जिसमें चौ।यो के पुरी में कीड़े पड़ जाते हैं । क्रि० प्र०—वैना ।—मारना । उ०—चले हनुमान मारि कि - किलकया--सद्मा पुं० [छि ० कितना] किलकनेवाला ।। कारी -तुलसी (शब्द॰) । किलक्क—-सा थो० [हिं० किलक] ६० 'किक' । उ०—-धडके किलकिचित-सज्ञा पुं० [सं० किलकिञ्चत् ] सुयोग शृगार के ११ उर कातर सोर घुउँ । मन हक्क किनक्क अनेक मुवै ।- दावों में से एक, जिसमे नायिका एक ही साय कई एक मावो रा० रु०, पृ॰ ३४ ।। को प्रगट करती है। जैसे,—(क) सी रति ओठन वसी- किलचियो-सच्चा ५० [देश॰] एक प्रकार का बहुत छोटा बगना जो करति अखिन रिसोही सी हँसी करति हनि हैं सी करति। सारे भारत में पाया जाता है। -देव (शब्द॰) । (ख) कहुति, नेटति, खिझति, किनटा-मया पु॰ [देश] बंतु का टोकरा । मिलति, खिलति: लजि जात । भरे मौन मे करत हैं नैनन ही विशेष—यह इस युक्ति से बना रहता है कि इसमें रखी हुई वस्तु सो बात -विहारी (शब्द०) । को भार ढोनेवाले के कबो ही पर पड़ता है। इसे पहाडी लोग किलकिल-सञ्ज्ञा स्त्री० [अनु॰] झगडा । लडाई । वादविवाद । लेकर उँचाई पर चढ़ते हैं । किटकिट । जैसे,—रोज की किलकिल अच्छी नहीं । | foलना'--क्रि० स० [सं० कीलन] कोलन होना । कोला जाना है। यौ॰---दाँता किलकिल ।। ३ वश में किया जाना । गति से अवरोध होना । जैसे,—श की किलकिल—सपा पुं० [सं०] १ मानद या हर्ष सूत्रक ध्वनि । किल- जी न किल गई ।। कोरी । २ शिव (को०)। झिलना-मुवा पुं० [हिं० किलनी फा पुं०] १ बडी किलनी । २ किलकिला-संज्ञा स्त्री० [सं०] हर्पध्वनि । अनिदसूचक शब्द ।। नर किलनी । किलकारी । उ०-लौघि सिंधु एहि पाहि अावा । शब्द किलो -सा श्री० [सं० कोट, हि० फो+नी (प्रत्य॰)]एक प्रकार का किलकिला कपिने सुनावा । —तुलसी (शब्द०)। छोटा कीड़ा जो गाय, बैल, कुते, बिल्ली अादि पशु प्रो के शरीर किलकिला--सच्चा ली० [स० फूकल] मछली खाने वाली एक छोटो में चिपटा रहता है और उनका रक्त पीता है। किल्ली । चिडिय। । उ०—मेरे कान सुजान तुव नैन' किलकिला अई।। किलविलाना–क्रि० अ० [अनुध्व० भयवा हि फुलबुलाना] १० हृदय सिंघु ते मौन मन, तुरत पकरि ले जाइ |--रसनिधि 'कुलबुलेना'। (शब्द०)। किलविप -सज्ञा पुं० [सं० किल्विष ३० 'किल्विप' । उ०—- विशेष—जिस पानी में मछलियाँ होती हैं, उस पानी के ऊपर काया यह तो अहे खाक की, किलविप अहे समोई । उ०—जग वानी० पू० ३१ ।। नग १० हाथ का ऊवाई पर उड़ा रहता है। मछला किलम--सा पुं० [३०] यवन । उ०-~-6ि में गयद चढियों फो देख कर अचानक उसपर टूटती है और उसे पकड़कर उड़ हिलफार । अठी जगञ्च ५४ घर उचारे -[० रू. जाती है। ११ २२६ ।