पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४३५

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किमी किलोवा किलमी- सज्ञा पुं॰ [देश॰] १. जहाज का पिछला खः । २ पिछले किलात- सा पुं० [सं०] बौना | खड के मस्तूल का बोदवान् । किलाना–क्रि० स० [हिं०] दै० किलवाना' । किलमोरा-सदा पुं० [देश॰] एक प्रकार की दाम्हल्दी, जिसकी किलावदी-- सच्चा बी० [अ० वि + फा० ववी] १ दुर्ग नि भए । झाडियाँ हिमालय पर कोसो फैन हुई मिलती हैं। दे० १ व्यूहरचना। सेना की श्रेणियों को विशेष नियमानुसार 'दीहल्दी' । | खड़ा करना । ३ शतरंज मे चादशाह को सुरक्षित घर में

  1. िलवक-~-सच्चा पुं० [देश॰] कावुन देश का एक प्रकार का

रखना ।। घोडा । उ०—काविल के फिलवक कच्छ दच्छी दरियाई । क्रि० प्र०-- झरना ।—होना । उम्मट के हवसान जगली जाति अलाई । सुदन (शब्द॰) । किया - सज्ञा पुं० [हिं०] हाथी की गरदन पर पर पड़ी हुई रस्मी, किलवा- सज्ञा पुं॰ [देश॰] बड़ा फावडा या बड़ी कुदाल । जिसपर महावत पवि खेता है। किलविा । उ०-फूजर | (व्हेलखंड) । किंलए अाह करि तन मकि तरवारन लिस्य ।“पद्माकर किलवाई सवा सौ० [देश॰] एक बड़ा पौवा या लकडो की फरुई ग्र०, पृ० १७७ । जिससे सूखी घास या पयाल इकट्ठा करते हैं। किलोव- सुद्धा पुं० [फा० फुलाबा] कोढ़ा या वघन । वि० दे० किलवाना---क्रि० स० [हिं० किले का प्र० रूप] १ प्हील ठोक 'कुलावा' । उ०- कंचन किलःव लगाय केले पट्टी बधिय चंद वाना। कील लगवाना या जड़वाना । २ तत्र या मंत्र द्वारा भट । तिहि बेर कन्ह चट्टान ३५ रूप प्रगटि अति पित्रि- किसी भूत प्रेत के विघ्नकारी कृत्य को रोकवा देना 1 जादू या वट ।- १० ० ५। ५७ ।। टोना कर देना। किलोवा–सझा पुं० [?] सोनारी का एक औजार । किलवारी--मुझ प्री० [सं० फर्ण] पतवार । कन्ना । वह हा किलावा- सझा पुं० [फा० कलाव। हाथी के गले में पड़ा हुआ। | जि ससे छोटी छोटी नावो में पतवार फा काम लेते हैं । २२ सा या बंधन जिसमें पैर फैलाकर महावत हाथी को चल्ने किलविष@f-सा पुं० [सं० फिल्विय] दे॰ 'किल्वप' । उ०— आदि का इशारा करते हैं। दुख विनाशन अघहरन किलविप कादण हरू ) सतोप सरोवर किलास- सूक्षा पुं० [सं०] कुष्ठ रोग । चर्म रोग [को०] । पर्वते वर्षे अन्त्रित धारा 1-प्राण ० पृ० २६८ ! किलास–वि० कुष्ठी 1 कुष्ठ रोग से ग्रस्त (को०) । किलविपी)-- संज्ञा स्त्री० [सं० फील्विष] एपी । अपराधी । उ० किलास-सज्ञा पुं० [अ० बलास] दे॰ बनास' । मन मलीन कलि किलविपी होन मुनत जासु कृत काज । सो किलासी-वि० [सं० किल।सिन्] कुष्ठ । किलन गवाला (को०)। तुलसी किया अपुन रघुवीर गरीब नवाज । तुलसी किलिच–सद्या पुं० [सं० किलिञ्च] १ हुरी लकडी या पतला तसता । (शब्द॰) । | २ चटाई (] । किलहुँटा---सच्चा पुं० [पा० गिलट या हि० फल है ? या अनु०] [जी० किलिज, किलिजुक- सच्चा पुं० [सं० किलिज, किलिजक] दे० किलहँटी] एक प्रकार की चिडिया जो आपस में बहुत लड़ती किलिच' । [को०] । | है। सिरोही। किलिक--सज्ञा स्त्री॰ [फा०] एक प्रकार का नरफट, जिप) कलम किलहटी-सहा फौ० [हिं० किलहँटा] दे० 'किलहँदा' । वनती है । किला–सझा पुं० [अ० किला] १ लढाई के समय बचाव का एक किलिन-संज्ञा पुं० [अ० कोल] जहाज के पीछे का वह स्थान जहाँ सुदृढ़ स्थान । दुर्ग । गढ़। बाहरी तख्ते मुड़क: मिलते हैं । उहाज के पंदे का वह छोर क्रि० प्र०-४टना --तोडना !-—घना —ले लेना ।। | जो पिछाडीं की ग्रोर होता है । केदास को मोड । यौ० किलेवार= दुर्गपति । गढ़पति । किलेदारी दुर्ग की किलिम--सज्ञा पुं० [सं०] देवदान वृक्ष (को॰] । अध्यक्षता । किलाबदी= किला वाँधने का काम । क्रिलेस ---सज्ञा पुं० [सं० क्लेश दे० 'क्ने' । उ०—मास छ सात महा०- किला फतेह करना= महा कठिन काम कर लेना । इदे उस देस । थोर सौदा वन्नत किलेस ।--अवं ०. ५० ५२ अत्यंत विकट कार्य करने में सफलता प्राप्त करना । फि । किलोमीटर-सधा पुं० [अ०] दूरी की एक अंतरष्ट्रिीय माप, जो टूटना = किसी बड़ी भारी कठिनता या अडचन का दुर होना। मीन के प्राय पच प्रष्टमाश के बराबर :ोतं, है ।। किसी दु साध्य कार्य को पूरा हो । किलोर-- सुझा पुं० [सं० कल्लोल] खेल । पानद । उछल कूद । २ विशाल और सुदढ़ पक्का मकान ३ घातरज के खेल में वह उ०-मैं गुण तीनि पाँच तत्व में ही में दण दिशि चहू और मै सुरक्षित स्थान जहाँ बादशाह शह से बचा रहता है। निरूप घरे नाना विधि निशि दिन करेत किलोर ।----कवीर मुहा०- किलो बाँधना= शतरंज के खेल में बादशाह को किसी सा०, १० ३८८ । घर में सुरक्षित रखना, जिससे प्रतिपक्षी जल्दी मात न किलोल-संज्ञा पुं० [५० कल्लोल] ३० कन्नत' 'कल'। | फर मकै । किलोवा-सा पु० [बरमी) एक प्रकार का लबा वास । किलोटि-सा पुं० [सं०] खटाई छालकर फाड़। हुमा दूध । छन । विशेष----यह वर मा में पैगू और मतवान के जलों में होता है । किलाटी-सड़ा पुं० [सं० फिलादिन] वाँस । कीचक [को॰] । इसकी लंबाई ६० से १२० फुट ३या घेरा ५ से ६ इंच तक