पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४३४

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किरान किरोदित किरानी-सच्चा पु० हिं० किराना+ई (प्रत्य॰)] १ अग्र जी दफ्तर सुदिवस्टि औ किरिना हिछा पूजं मौरि ।-जायनों में • (गुप्त) | का वेलके या लिपिक । २. यूरेशियन । | पृ० २३२ । किराया—सा पुं० [अ० किरा, फा० किरायह,] वह दाम जो दूसरे किरिम --सज्ञा पुं० [सं० कृमि] दे॰ 'मि' । की कोई वस्तु काम में लाने के बदले उस वस्तु के मालिक को यौ----किरिमकु ३ ।। दिया जाय । भाड। किरिमदाना सवा पुं० [सं० कृमि + हिं० दान] किरमिज नामको क्रि० प्र०-- उतरना। उतारना ।—करना ।- चढ़ना ।-चुकाना । की। किरमिजी ।। | --देना ।—लेना । विशेप-ये एक प्रकार के छोटे छोटे कीड़े होते हैं जो यहड़ के यौ०—फिरायादार = किराये पर लेने वाले व्यक्ति । पेठ पर फैनते हैं। ये इतने बड़े होते हैं कि लगभग ७० हजार मुहा०—किया उतरना = किराया वसूल होना । किराया फीड तौल में ग्राध सर होते हैं। मा को को इकट्ठा कर उतारना = 'भाडा वसूल करना । किराए फरन= मोड पर सुपा लेते हैं और उन्हें पारा कर रेंगने के काम में लाते हैं । लेना । जैसे—एक गाड़ी किराए कर लो। किराए पर वेना = इसी बुकनी को किरमिजी या हिरमिजी कहते है । इमझा रंग अपनी वस्तु को दूसरे के व्यवहार के लिये कुछ धन के बदले हलका और मैटमैन । लाल होता है । में देना । किराए पर लेना = दूसरे की वस्तु का कुछ दाम देकर्य किरियापु–सस बी० [सं० क्रिया ]। शप य । नौगघ । कसमें । व्यवहार करना । १०–माभी । काली किंरिया, किगी ॐ कहना मत ।-मैना०, किरायेदार-सज्ञा पुं॰ [फा० किरायदार] वह जो किसी की कोई | १० ६६ ।। बस्तु भाडे पर ले । कुछ दाम देकर किसी दूसरे की वस्तु कुछ क्रि० प्र०-पाना ।—देना ।—दिलाना ।—पना --- काल के काम में लानेवाला । | रसना । किरार'- सझा पुं॰ [देश॰] एक नीच जाति 1 यौ०—किरिया फसम= पापिय । नौगंध । किरार—सज्ञा पुं० [अ० ]ि किनारा ! तट । करार । २ कर्तव्य । काम । ३. मृद्ध व्यक्ति के हेतु बादादि कर्म । किराव—सज्ञा पुं० [हिं० केराव] दे० 'केराव' । मृतकम् । किरावल–सच्चा पुं० [तु० फरावल] १ वह सेना जो लड़ाई फा यो०-फिरिपाकरम = (१) क्रिया में । मृतककर्म । (२) दुर्दशा । मैदान ठीक करने के लिये पागे जाय ! २, बफ से शिकार किरिना--क्रि० अ० [हिं० या अनुष्य] दे० 'किचकिचाना' । करनेवाला अादमी । किरिरा- सा भी० [हिं० डा] दे० 'कोड़ा' । उ०—-झिरिरा काम किरासन-सा पुं० [अ० केरोसिन 1 करोसिन तेल । मिट्टी केलि मनुहारी । किरिरा जेहि नहि सो न सुनारी (-जायसी का वेल ।। ग्र० पू० ३३४ । किरि—सच्चा पुं० [सं०] १ सुन्नर । बाराह । ३ वादेल (कौ] । किरिसना--क्रि० प्र० [सं० कृश से नामिक धातु ] कृश या दुबला किरिका--सच्चा स्त्री० [सं०] स्याही या मसि रखने फा पाश् । मसि- होना । पात्र । दावत (को॰) । किरिसित--वि० कृशि] कुश या दुर्वल । किरिच-सच्चा श्री० [सं० कृति अथवा प्रा० किलिच = छकड़ी को किरिस्तान--सा पुं० [अ० क्रिश्चियन १ ईसाई । २ विघम । छोटा टुकडा ! कही वस्तु का छोटा नुकीना टुकड़ा। ३० उ०—माघे पुराने पुरानहि माने, माघे भये किरिस्तान ही दुइ- 'किरच' । उ०—-चूरत महागिरि शिखर परि विद्युत फिरिच | रगी -भारतेंदु ग्र , भा० २, ५० ५०० ।। रचक अली ।—प्रेमघन॰, भा॰ १, पृ० ११९ । किरिसी —सा ली० [सं० कृषि] । दे० 'कृषि' । उ॰—वैदे होम जग्य यौ---फिरिच फी गोला= एक प्रकार का बाजी गोवा जिसके एह भाखे और फि किरिसी धर वारा-स० दरिया, पृ०१२४ भीतर लोहे के टुकरे, पीले या छरे भरे रहते हैं । यह गोजी किट-सा पुं० [स०] १ एक प्रकार का शिरोभूषण । मुकुट । यत्रु के जहाज का पान फा। डालने या रस्सियौ और मस्तूल विशेष--यह माये में वाँधा जाता था और इसका व्यवहार प्राचीन को काट कर गिरा देने की इच्छा से फे का जाता है । राजा पगड़ी के स्थान पर करते थे। इसके ऊपर मुकुट भी किरिट- सच्चा पुं० [सं०] दलदली खजूर का फल [] । , ह भी कभी पहनते थे । किरिन -सम्रा ग्री॰ [सं० किरण, हि० झिरन] ५• 'किरण' । यो०-सिरोधारी= राजा । किरोडमाली = अजुन । उ०--जनह सुरूज किरिन हृति काढ़ी । सूरज करा घादि वह ३ एक वर्णवस वा सवैया जिसमें ८ भगण होते है । जैसे,—-भा वाढ़ी ।—जायसी ॥ ० (गुप्त), १० १५३ । वसुधा तल पाप महा नव घाय धरा देह देव सभा जहूँ । भारत किरिनि -सझा मी० [स० किरण, हि० किरन, किरिन] नाद पुकार करी सुनि वाणि मई नभ धीर धो उहे । लै नर दे० 'किरण' । उ०—सुरुज किरिनि जस गगन विसेखी । देह हतौं खेल पुजन थापडू गो नय पाय मी भएँ । यो काहि जमुना माझे सुरसुती देखी ।—जायसी प्र ० (गुप्त), चारि भुजा हरि गाथ किरीट धरे जनमें प्रहमी महे । पू० १८६ । । किरी ठित--वि० [सं०] किरीट नामक शिरोभूप से सज्जित । उ०- किरिपा -सा बी० [सं० कृपा] दे॰ 'कृपा' । उ०--कृरू जन्मभूमि, प्रिय मातृभूमि की शीर्ष ददन, शत स्वागत । हिम