पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४३२

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किरच ९४६ छिरमाला | है - कथनी कथं अपार । यो बानी यो पाइए साहिब को किरन- सा पुं० [सं० किरण १ किरण । रोशनी की लकीर । दीदार राम० धर्म०, पृ० २७६. ।। मुहा०---किरन फवना र सुदिय होना । २ फलावत, चानले किर च सच्चा स्त्री० [अ० किलिच] १ एक प्रकार की सीधी तलवार | की बनी हुई एक प्रकार की झालर जो बच्वी या स्त्रियों के जो नोक के बल सीधी मोकी जाती है । २ नुकीला टुकड़ा कपड़ो में लगाई जाती है । (जैसे फीच मादि का)। नुकीला रवा । छोटा नुकीला किरनकेतु - सी पुं० [सं० किरणकेतु] स्यं । ३०-जयति जय सद्, टुकड। उ०—(क) कोच किरच बदले पाठ लेही । कर ते फटि केसरी सयुहुने स तम तुहिन हर किरन केत् ।–तुलमी ४ारि परस मणि देही ।—तुलसी (शब्द०)। (ख) लग्गे सु टोप उड्ड्यि किरच | - पृ० ० ७ । १५७ ।। | फिरना-क्रि० अ० [सं०५/१ = किर् विपना 1 इधर उरे किरचा--सूझा जो० [हिं० कि च] दे० 'किरच' । ३०--गिरिघर होना । विमुप होना । उ०--अप तो एसिये जि प प्राई प्रीतम धीरता के किरिचा करते हैं ।---घनानंद, ५० ११० । के पन ते क्यो किरिही ।-नान, पृ० ४३४ । फिरचिया--सया पुं॰ [देश॰] एक पक्षी । किरना—क्रि० स० पिसेरना। फैनन । इधर उधर करना। विशेप-यह बंगले से छोटा होता है । इसके पजे की झिल्ली सुनहले किरमाकर—सा, पुं० [सं० किरण +कर किरण माली । म्यै । रग की होती है । । उ०—मफर प्रादि समन किरन बाढ़ किराकर । यो सोने से किरची--संज्ञा पुं॰ [देश०] १ एक प्रकार का मुलायम रेशम, जो फे प्रार जति छिन छिन अति अगर ।----]० ० ५।३ । वगलि में होता है। १ रेशम का लच्छा। किरनि –सा ही० [सं० किरण] १० किरण' । उ०—कुसुम किरण-संज्ञा पुं० [सं०] १ ज्योति की अति सूक्ष्म रेखाएँ जो प्रयाह के धूरि घुघरि मधि चाँदनि चंद किरनि री छाई -—तद, ग्र०, रूप मे सूर्य, चद्र, दीपक अादि प्रज्जवलित पदार्थों से निकलकर । पृ० ३६३ । । फैलती हुई दिखाई पड़ती हैं । रोशनी की लकीर । प्रकाश की किरनीला--वि० [हिं० किरन +ईला (प्रत्य॰)] किरणवाला । रेखा या धारा । २ अनेक प्रकार की दृश्य अदृश्य सुरगो की प्रकाशमान । उ०—-चमकीले किरनीने शास्त्र काट रहे तुम धाराएँ जो अंतरिक्ष से प्रती या पत्रों की सहायता से उत्पन्न श्यामल तिलमिल ऊपा का मरघट साजोगे ? यही लिख सो की जाती हैं, जैसे एक्स रे, अल्फा रे, अल्ट्रावायलेट रे, प्रादि । चार पहर में ? चलो छिया छो हो । अतर में ---हिम कि० पर्या -अशुकर 1 दीधिति । मयुख । मरीचि । रश्मि । यौ?--किरणपति । किरणभाली । १० १२ । । २ सूर्य (को०)। भिकण । रज कण (को०)। किरनीलापन-सा पुं० [हिं० किरनीती + पन (प्रत्य॰)] उज्वे नता। प्रकाशित होने का भाव। ३०-अप्रकार हैं तो 'किर- किरणकेतु-सज्ञा पुं० [सं०] सूयं ।। नीलेपन' की अगवानी से भय है, अंधकार है तो कीमत फा तेरे किरणपति- सच्चा पुं० [सं०] सूर्यं । रश्मिमाली । उज्वन विमल विभव है ।-हिम कि० १० १३१ । किरणमाली--सपा पुं० [सं० किरणमालिन्] सूर्य । | किरपन –वि० [सच्ची कृपण] ऊजूस । मक्ख चुस । अपील । उ० किरणासन्न' मी० [सं०] एक प्राचीन नदी का नाम जिसका उल्लेख क्या किरपन में जो की भाप नाव न हाव न पू से । - सुदर | स्कद पुराण के काशी खई में हुआ है कि० । १ ०, मा० १ १ ० २३ । किरतंत-सबा पुं० [सं० कृतान्त कृतान्त ! यमराज । उ०—मत्त फिरपा—िसा सी० [सं० कृपा ३० 'कृपा' । उ०किरपा - मत को दिष्पयत, रजु मय छे दीसत । तामण के पिष्पे प्रवन, करि कसै लान मेरे को टीको ।—नद प्र ०, १० १४ । क्रोध फल किरतुत --१० ० ६ । ५२ । किरतम-वि० [सं० फुत्रिम ] घनावडी । दिखाऊँ । उ०—ताका किरपान सज्ञा की० [सं० कृपाण] ३०'कृपाण' । पर में भक्त नहि जान । किरतम वक्त से मन माना । -कवीर किरपाल –वि० [सं० कृपालु ] ३० कृपाल । किर पिन--पुं० [सं० कृपण } दे० 'कृता' । उ०—निका स० ४८२ । किरतब- सज्ञा पुं॰ [ से कर्तव्य ] काम । कर्म । कृतित्य । विसारै नहि कनक उप किरपिन पाई --T०, भा १, उ०—बस वा डेरा बज दिना वहेरा होय । सेपायत सिवसिंघ १० ४२ । सो, फिरतब वो न होय -शिखर०, ५० ५२ । रिम--सधा पुं० [सं० फुनि ३ दे० 'किरिमदाना' । २ कोट । किरतसिसा पुं० [फरतास ] कागज । उ०—फलम यक कीडा । हात और यक हात किरतास बैठा हैरत जदा 'परदे के है किरमई–सा सी० [सं० फूभि] एक प्रकार की लाख । लाख का पास ।-दक्खिनी॰, पृ० २५० । एक भेद । किरतिम-वि० [सं० कृत्रिम] कृत्रिम । माया नामें चाँद रिमाल’-----सुज्ञा पुं॰ [सं० करवाल ननवार। म्यङ्ग । सूर दिन राती । नामै किरतिम की उतपाती ।--'भीखा श०,

  • किरमाल

पृ० २३।। -सबा पुं० [सं० किरण तिन्, किरणेमाल ] सूय । किरती--- सच्चा स्त्री० [सं० कित] व्यास की माता का नाम । सत्यवती। उ०—नामे नियों थी मानव सरके कलुप विमान । मह जैसे उ०—किरती सुम्व व्यास बखानिए जी ।—कबीर रे०, मेटे तिमिर, रसम रस किरमाने --Pघु० रू०, १० ३४। पृ० ४४ । किरमाला सच्चा पु० [सं० कृतमाल] अमिलता । किरवार।