पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४३१

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किरमिर ६५६ किराना किरमिच-सा पुं० [अ० के नवास, हिं० किरमिज] एक प्रकार का जिसपर अनाज, भूसा मादि लादा जाता है। २. मात्र गाडी मोटा विलायती कपडा । । उक्त्रा । । विशेष—यह महीन टाट की तरह होता है और इससे परदे,जूते, किराठ---सज्ञा पुं० [सं०] व्यापारी । वनिया कि॰] । बैग आदि बनते हैं । | किराड-सज्ञा पुं० [सं० किट] वकि । व्यापार । उ०- गोली किरभिज-सरा पुं० [सं० कृमि+ज] [वि० किरमिजी] १. एक सो गणका जसी, सम सो चोर झिरी ।-वकी• ग्र ०, मा० प्रकार का रग । किरिमदाने का चूर्ण । बुकनी किया है। | 3, पृ० ६० । । किरिमदाना । हिरमजी । दे० 'किरिमदाना' । २ किरमिजी किड-सज्ञा प० प्रा०] किनारा । तर । | किराड- सच्चा पु० [प्रा०] किनारा । तट । उ०—बाट किराडू रग का घोडा । वह घोड़ा, जिसका रग हिरमिजी के समान | पारकर लोद्रा लौ जालेर, पु गल गढ़ अबू सहित मंडोवर लाल हो । अजमेर।-१० रा०, १२।४२ । किरमिजी–वि० [सं० कृमि ३] किरमिज के रग का । किरिमदाने किरात'–सुच्चा पुं० [सं०] [स्त्री० किरानी, किरातिन, फिरातो] के रग का लाल । मटमैलापन लिए हुए करोदिया रंग का । १ एक प्राचीन जगली जाति । उ०-मिलहि किरात, कोल ३० किरिमदाना' । वनवासी । वेषानस, बटु, गेही उदासी ।—तुलसी (शब्द॰) । किरयातसुद्धा पुं० [सं० किरात चिरायता । एक देश का प्राचीन नाम ।-वृहत्सहिता, पृ० ८५। किराना ७}--क्रि० अ० [हिं० कलिना या अनु] तड़पना । विशेष—यह हिमालय के पूर्वीय मगि तथा उसके प्रेमास में छटपटाना 1 उ०-मन मृत्तक सो जाणिये घायल ज्यू’ किर- माना जाता या । वर्तमान भूटान, सिक्किम, मनीपुर ग्राद इसी राय । रामदास रहै हरि सुमित दिन जाय !-राम० धर्म, देश के अंतर्गत माने जाते थे। पृ० १६४ । ३ चिरायता। ४. साईस । ५. वामन । यौना (को०) । ६. किराना--क्रि० अ० [अ० १ दाँत पीसना । ३. क्रोध से दाँत | शिव (को॰) । | पीवना। ३. कि किरं शदद करना । किरात-संज्ञा स्त्री० [अ० किरात] १ जवाहरात की एक तौन जो किराना--क्रि० अ० [हिं० कुररना= कुलेल करना या बोलना लगभग चार जौ के बराबर होनी है। २ एक ग्राउँ का या अनु०] वौलना । ३०-पनवारो चंपति को प्रानो । देखि चौवीसवाँ भाग! ३ एक बहुत छोटा सिक्का या धातुवर सुग्री सागे किररानो ।—लान (शब्द॰) । जिसका मूल्य पाई से भी कम होता था । किरवनि -सा पुं० [सं० कृपाण ३० किवीण] तलवार । कृपाएँ । किरातक---सच्चा पुं० [स०] १ चिरायता। २. किरात जाति का उ०—किरवान चलाय समीर हुरघौ ।-हु° रासो, पृ° व्यक्ति को । १४६ । किरातपति-सज्ञा पुं॰ [सं०] शिव । किरवान--सज्ञा पुं० [सं० कृपाण, प्रा० किवाण] • ‘कृपाण' । किराताजनीय–स पुं० [सं०] भारविकृत १८ सगों का एक उ०-(क) खड़े हनौ किरवान जब, परेउ भूमि चहुबान - | महाकाव्य ।। प० रासो०, पृ० ६४१ (ख) सत्ता को सुपूत राव, सगर को विहे किराताशी–सच्चा पुं० [सं०] गरुड । सोहै जैतवार जगत करेरी किरवाने की !-मति० ग्र०, पृ० किराति–मुद्दा सी० [सं०] १. गगा । २ दुर्गा । पार्वती (को॰) । ३७९१ । किरातिक–सा पुं० [सं०] १ चिरायता । २ किरात जाति का किरवार'५-सुज्ञा पुं० [सं० फरवल तृलवार । बङ्ग । उ०—रने व्यक्ति (को०] । समुद्र वोहति को छियो । करिया सो किरवारो लियो । किरातिनि-सा ली० [हिं० किरन का बी०] दे॰ 'किराति नी । केगव (शब्द॰) । । उ०-मेह सुनि मन गुनि सूपये वडि हिसि उठो मतिमंद । भूपन वारसा पुं० [सं० कृतमील) अमलताश ! उ०-कमल मूल | सजति विलोकि मृग मनहु सिरातिनि फद ।—मानस २ । ६६ । | किरदार कमैत् । भाच नृन कर मल कसेरू -मुंदन (शब्द०)। रातिनो-सश स्नी० [H०] १. किरात जाति की स्त्री । २. "रवीरा-सा पुं० [सं० कृतमाल] अमलताश । जटामासी । तानस ० [सं० अ० क्रिश्चियन, हि० किस्तान दे० 'झिम्तान' । उ-अब तक सारा देश मुसलमान किरसताने ही किराती-- धी० [सं०] कि रवि जाति की स्त्री । ३ दीं। गया होता।- गभमि, मा० २, पृ० ४६५ । | ३ स्वर्ग की गगा । ४ कुट्टिनो । ५, चर डाननेवानी । रन- सा पु० [स० कृपण दे० 'क्रूण' । उ०-मस्त अफ} चमर,रिणी । | की किरमन सरका मुरली बजाना हमना साजे ।-दविखनी॰, किरान –क्रि० वि० [अ० किरान] पास । निकट । न उदः । । पृ० ३८७ । । ३०-ततयन सुनि महेश मन नाना । भोट किन ६ विनय सुन५- सय पुं० [सं० [स] दे० 'कृष्ण' । उ०—उहै धनुक राजा ।--जायसी (शब्द॰) । करने पह अहाँ । उ है धनुक राधो कर गई। जायसी fना -सज्ञा पुं० [सं० श्यय] पारी की दुकान पर बिकने ती चास जी [अ० के रोव] १ दो पा चार पहियों की नाड़ी च'ने । जस मिर्च मसानी, नमक प्रादि । नो माल भरुनाव होने के काम में माती है । वह बैलगाड़ी किराना--क्रि० स० [सं० की ] दे० 'केना' । (शब्द॰) ।