पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४३

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अंडे उड़ान हुना+असभव कार्य करना । उ०-अव तो वह उडती चिडियाँ उडाका दल- सुज्ञा पुं० [हिं० उड़ाका+स० देल 1 पुलिस का वह विशेष पकडती है ।—सर कु०, पृ० २६ । उड़ खाना =(१) उड़ उड़ दल जो दुर्घटना की सूचना मिलते ही तुरत दुर्घटना स्थल की के काटना । घर खाना । (२) अप्रिय लगना । न सुहाना। शोर रवाना हो जाता है । उ०—तो ऊपर लिखि योग पठावत खाह नीव तजि दाख। उड़ाकू वि० [हिं० उड़+ाकू (प्रत्य॰)] १ उडनेवाला । उक्। सूरदास ऊबो की वतियाँ उडि उड़ि बैठी खात -सूर (शब्द॰) । २ जो उड़ सकता हौ। जिसमें उडने की योग्यता हो । उड़प-सज्ञा पुं॰ [ हिः उड़ता ] नृत्य का एक भेद ।। उडान'-सज्ञा स्त्री॰ [स० उड्डयन] १. उडने की क्रिया । उ०-पखि न उड़प--संज्ञा पुं० [ स० उडुप ] दे॰ 'उडुप'। उ०—जव ही दनदनमन कोई होय सुजानू । जाने भूगति कि जान उड़ानू ।—जायसी भयौ, तव ही उड़प उदय है लयौ ।—नद० ग्र०, १० २१६ ।। ग्र०, पृ० २१ । । उडपति सुज्ञा [ स० उडुपति ] दे॰ 'उडुपति' ।। यौ०-उडानघाई, उडनफल' = दे० 'उडनघाई', उइनफल । वै उड़ान उडपाल-सज्ञा पु० [ सं० उडुपाल ] दे॰ 'उडुपाल' । फर सुनिये खाए। जव भा पखि पाँख तन आए ।—जायसी उडराज-सज्ञा पुं॰ [ स० उडुराज ] दे॰ 'उडुराज' । ग्र ०, पृ० २६ । उडान पर्दा । उड़रो—सज्ञा स्त्री० [हिं० उडद+ई (प्रत्य॰)] एक प्रकार का उरद जो २. छलाँग । कुदान । जैसे—(क) हिरन ने कुत्तो को देखते ही छोटा होता है। उडान भारी । (ख) चार उडान मे घोडा २० मील गया। उड़व—सज्ञा पुं॰ [ सु० ओडव ] १. रागो की एक जाति जिसमे केवल क्रि० प्र०----‘मरना । मारना । पाँच स्वर लगे और कोई दो स्वर लगे । जैसे,—मधुमसि ३ उतनी दूरी जितनी एक दौड मै तै कर सकें। जैसे उ०-- सारग, वृदावनी सारग, इन दोनों में गाघार और धैवत नहीं काशी से सारनाथ दो उडान है।४ कल्पना । उक्ति । विचार । लगते, मूपाली जिसमे मध्यम और निपाद नही है तया माल- मुहा०--उडान भरना = कल्पना करना । विचार करना । विचारना । कोश ग्रौर हिंडोल जिनने ऋपन और पचम नही लगते । २. उ०----किंतु वहाँ से यो ही उडान भरना नहीं होता--चिता मृदग के बारह प्रवधों में से एक । मणि, भा॰ २, पृ० २ । उड़ान मारना=बहाना करना । बातो उडवना--क्रि० स० [ हि० I दे० 'उडान' । उ०-उडवत घूरि घरे में टालना । जैसे—तुम इतनी उहार क्यों मारते हो, साफ साफ काँकरी । संवनि के दृगनि परी सकरी ।-नद० ग्र०, पृ० २०२।। कह क्यो नही डालते ? उडु उड, होना=(१) दुर दुर होना। उडवाना –क्रि० स० [हिं० उड़ाना की प्रे० रूप ] उडाने में। (२) चारो ओर से बुरा होना । कलकित होना । बदनाम | प्रवृत्त करना होना । नक्कू बनना। उडसना-क्रि० अ० [स० वि +ध्वसन> विढसन) उडूसना अथवा स० उडान --सुज्ञा पुं० [देश०] १ कलाई । गट्टा । उ०—गोरे उडान उद्+Vवस् ] भग होना! नष्ट होना। उ०—उडसा नाच नच रही खुभिके चुभिके चित माँ वडो चटकीली ।-गुमान नियां मारा । रहसे तुरुक बजाइ के तार जायसी (शबद०)। उडाक–वि० [हिं० उड+ क (प्रत्य०), उड़+ का (प्रत्य॰)] १ ( शब्द०)। ३. मालखभ की एक कसरत जिसमें एक हाथ उडनेवाला । उडाक । २. जिसमे उइने की योग्यता हो । जो में वेत दवाकर उसे हाय से लपेटकर पकड़ते हैं और दूसरे हाथ उडे सकता हो । उ०-- छपन छ। के रवि इव 'भा के दड से ऊपर का ‘भाग पकडकर पार्वं पृथ्वी से उठा लेते हैं और एक तग उडाँके । विविधि कता के, बँधे पताके, छत्र जे रवि रथ वार अजिमाकर वेत पर उसी प्रकार चढ़ जाते हैं जैसे गड़े हुए चाकै ।—रघुराज ( शव्द०)। मातख में पर। उडाकू-वि० [हिं० उड़े +अाकू (प्रत्य॰) दे० 'उहाक' । । उडानुघाई-सज्ञा स्त्री० [हिं० उडान +घाई = उँगलियों के बीच की उडा-सज्ञा पुं० [हिं० ओटना ] रेशम खोलने का एक औजार 1. यह सधि ] धोखा । जुल । चालाकी । एक प्रकार का परेता है जिसमे चार परे गौर छह वीखियाँ विशेय--यह शब्द जुमारियों का है। प्रारी जुम्रा खेलते समय होती हैं। तीखियाँ मथानी के प्रकार की होती है। तीखियो उगुलियों की घाई या गवा में छोटी कौड़ियाँ छिपाए रखते हैं। के बीच में छेद होता है जिसमें गज डाला जाता है । जिसमे फेंकते समय यथेष्ट कौडि याँ पड़े। उडाइक- वि०, सज्ञा पुं॰ [ स० उड्डायक] वह जो (गुड्डी अदि) उडानपर्दा--सज्ञा पुं० [हिं० उडान +फा० पर्दह ] बैलगाड़ी का उडाता हो । उडानेवाला । उ हायक । उ०— कहा भयौ, जौ पद । वह पदी जी वलाह पर डाला जाता है । विछ्रे, मो मुनु तो मन साथ। उडी जाउ किनह', तऊ गुढी उडानफर–७, ऊडीनफल -सज्ञा पुं० [हिं०] दे॰ 'उडन्फल' । उडाइक हाथ 1-विहारी र०, दो० ५७ ।। उ०—'वै उहानफ़र तहिये खाए । जव म पखि पख तन उडाई-ज्ञा जी० [ उड + आई (प्रत्य॰)] १ उडने की क्रिया माए ।-जायसी ग्र०, पृ० २६ ।। या भाव । | उडाना'-क्रि० स० [हिं० उड़ना का संक० रूप] १. किसी उड़नेवाली उड़ाऊ-वि० [हिं० उड़+ाऊ (प्रत्य०)] १. उड़नेवाला । उडकू । वस्तु को उड़ने में प्रवृत्त करना । जैसे,—वह कबूतर उडाता है। ३ खर्च करनेवाला। खरची । अमितव्ययी । फजुलखर्च । ३ हवा मे फैलाना। हवा में इधर उधर छितराना । जैसे,— जैसे,—वह बड़ा उडाऊ है। इसी से उसे अँटता नहीं । सुगध उडाना ! धूल उडानर । अवीर उड़ाना । उ०—(क) जेहि उड़ाका-सज्ञा पुं॰ [ हिं० उड़+का (प्रत्य॰)] १ वह जो मारुत गिरि मेरु उडाहीं । कहहु तूल केहि लेखे माही -मानस, उड सकता हो । २. वह जो वायुयान आदि पर उड़ता हो । १1१२ । (ख) जानि के सुजान कहीं ले दिखाप्रो लाल प्यारेलाल हवाई जहाज पर उड़नेवाला । ३: विमानचालक । नैसुक उघारे पर सुगध उड़ा ईए 1-प्रिया० (शब्द०) ३. उड़ने-