पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४२९

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fr ४ किरकी किमाई --संज्ञा पुं० [अ० किमाश]१. तुजं । ठ । वजा । जैसे,-- किरका-सा पुं० [सं० कट =फा] छोटा टुकड़ा । के । | वढू न जाने किस किमाश का अदिमी है । ३. गंजीफे का एक किरकिरी । ३५-गर्व करत गोवर्धन गिरि को । पर्वत नाह रग, जिचे ताज मी कहते हैं। पाई वह किरको।--सूर (शब्द॰) । किमि--क्रि० वि० [सु० किम्] कैसे ? मिस प्रकार ? किस तरह ? किरकिटी--सा औ० [सं० फर्फ धूल या तिनके ग्रादि ! कण उ०—किमि सहि जानि अव तोहि पाहीं । प्रिया बेगि प्रगटसि ओ पाँव में पy कर पीडा उत्पन्न करता है। उ-मैं ही जान् केस नाहीं ।—तुलसी (शब्द॰) । लोयननि, जुर नि है जो ति । को ही जानत दीf5, फो दीfa किमियाकार(8)-सम्रा पुं० [हिं० कीमियागेर वा हिं० कीनिया+ रिकिटी होति ।-बिहारी (३०) ।। सं० कार (प्रत्य॰)] दे॰ 'कीमियागर' । उ०-देद बिपिन किरकिन-सा पुं० [३०] एक प्रकार का दानेदार चमडा जो बुटी बचन हरिजन क्रिमियाकार । वरी जरी किनके कने खोटी | धोडा या गधे का होता है । एक प्रकार का की मुदत । गहूव गॅदार ।--विश्राम (प्राब्द॰) । किरकिरा'–वि० [सं० फर्कट] कुकरीला । कक्ददार । जिसमें महीने किम्मत' -सा प्री० [अ० हिकमत] १. धतुराई । होशियारी ! और झडे रवे हो। उ०--हरिए न हिम्मत सुकीजै कोटि झिम्मत को प्रापति में पति महो०----किरकिरा हो जाना = रग में 'भग हो जाना । अानंद में राखि घीरज को घरिए—(शब्द॰) । २ दीरता। वहादुरी । विघ्न पड़ना। बात बिगड़ जाना। किम्मत'Glf-- संवा स्त्री० [अ० कीमत कीमत् । मूल्य |जिसके धिरकि -सभा पुं० [सं० फुकल] शरीर में स्थित पाँच वायु परदे चिक, किम्मत जर भारी के नट०, पृ० ११२ ।। में से एक, जो पाचन क्रिया में सहायिका होती है । उ०—ान यिकर--संज्ञा पुं० [सं० किड्र] किंकर। सेवक । उ०—नय ताप वायु किरकिग कूरम दाई जीत । नाग बनजय देवदत्त खेताय दुखाय दुखकर पाप कियकर तार लगा --म० धर्म, दशवाई रणजीत -कवीर वा०, पृ० २२० । १० ३०२। | किरकिरा-सा पुं० [सं० फर्कट] लोहारों का एक औजार जिससे कियत--वि० [सं० कियत] कितना । उ०—मि से प्रीतम की प्रीति बड़े और मोटे लोहे में छेद किया जाता है। रहित जीउ जाय जियत । जेहि सुख सुख मानि लेते सुख सो व ता किरकिराना--क्रि० अ० [हि० फिर फिर से नानिक घातु] १. नि ममुझ कियत !--तुलसी (शब्द॰) । किरकिरी पढ़ने की सी पीडा रना । जैतै,- अाज अखि किरथ –वि०स० कृतार्य] कृतार्थे । उ०--श्री हरि नाम | किरकिराती है । २ दे० 'किटकिटाना' । संभारि, काम अभिरम कियाग्य । अयं घर में अपवण, किरकिराहट-सज्ञा सी० [हिं० किरकिरा+हट (प्रत्य॰)] १. दिया जगच्यार पदारय ।–० ६०, पृ॰ ३ । किरकिराने की सी पीडा। अखि में किरकिरी पर्दै जाने को सी कियारी-सपा झी० [सं० केदार) १ खेतों या बगीचो में थोड़े थोडे पीड़ा । २ दाँत के नीचे के ली वस्तु के पड़ने का शब्द । अतर पर दो पक्षने मेडों के बीच की भूमि, जिसमे वीज बोए ३ किटकिटापन । ककरोरापन । जैसे,—कये को गौर छानो, या पौधे लगाए जाते हैं । वयारी । २. खेत का एक विमाग । अभी इसमें किरकिराहट है। ३.खेतों के वे दिमागे जा सिंचाई के लिये वरहो या नालियों के किरकिरी- सका औ० [सं० के कर] १ धून या तिनले अादि का कण - वे'च की भूमि मे फावड़े से पतले मेड डालकर बनाए जाते हैं। जो अखि में पड़कर पीड़ा उत्पन्न करता है । जैसे,—अखि में ४ एक वडा वडाह, जिसमें समुद्र के। खारा पानी नमक नीचे किरकिरी १३ गई है ।२ अपमान । है । जै3,अाज तो वैटने के लिये भरते हैं । ५.‘सुनारों की बोली मे) चारपाई। उनकी वडी किरकिरी हुई । उ०--अगर अापो का जिई कियावर'--वि० [सं० क्रियापर, प्रा० कियावर कर्मकुशल । छेडा पौर वह बिगड़ गए तो दही किरकिरी होगी - । कर्मपरायण ) फिसाना, भा० ३, पृ० १६। कियावर--सज्ञा पुं० [सं० कियावली] कर्म । कृत्यसमूह । उ०-- किरकिर्ल-सज्ञा पुं० [र्मफलास] गिरदान । गिरगिट । तार कियावर डरे कोई । ऋतु सम विक्रम भोजन कोई ।- किरकिल --संज्ञा स्त्री० [सं० [फर या कल] शरीरस्य दव २० ९०, पृ० १५ । वायुमों में से बह वायु जिससे छीक आती है। उ०--किरकिन किगह-सा पुं० [सं०] लाल रन का घोड़ा । ठीक लगावे भाई --विराम (गब्द॰) । टा--संज्ञा पुं० [अ० क्रिश्चियन छोटे दरजे का क्रिस्तान ! | किरकिला--सज्ञा पुं० [सं० फर] एक पदा? जो अाश से मछलियों केरानी। (एक तुच्छताव्यजक शब्द) ।। पर टूटता है । दे० 'किलङ्कि' । • '५'-अय० [सं० किलो मानो। उ०—ऊँचा डूगर विखम घलु, लगा फिर तारे हि ।–ढोला०, दू० ६४८ ।। किरकिला-सा पुं० [सं० कृकेलास] १ नोव । गिरगिट । २. किर "र' चुज्ञा पुं॰ [सं०] सुअर | वाराह [को॰] । शरीय वायुविशेष । उ०--कुन वैसे विरति धन जय पटिसच्चा पुं० [सं० ककलन] गिरगिट । छिपकली की जाति का | देवदत्त कहे देवा ।—कबीर ०, न० २, पृ० ६६ । एक जैतु । उ०---कबहुक भरिया सुमुद सा, कवेहूक नाही किरकी--सी बी० [सै० किङ्कणी] एक प्रकार का गहना । छ । जुन छरिया इतउत रता, ते कहिए फिर फट ।–चत । किरकी--सया जी० [ हिं०] १ निको। जरा । कण । २. वाणी ०, १॥१॥३२ । तिन छ । तिनके का हुन् । ३०-~~ रन की हिर की नहीं