पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४२७

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किनारे fकुप्पट कुरा सिर और कुठ कैद हौदा है। यह मई अौर सितवर के (२) अलग होचर जान्। किनारे न लगना = पान ने वीच अड देती हैं। फटकना । निकट न जान; । दूर रहना । जैमे--कभी वोमार | किनारf—ा पुं० [हिं० फिनारा] ३० 'किनारा' । पड़ोगे तो कोई किनारे न लगे। कनारे वैठना=अलग होगा। शिवारदार-वि: [फा० किनारा +दार (प्रत्य॰)] (पङ r)जिसमे किना। दना हो। जैसे---किनारवर धोती । छोडकर दूर हट्टना । जैसे-हुम अपना काम कर देंगे, तुम किनारपेच-म पु० [हिं० किनार+पेंच डोरियों जो दरी के ताने किनारे बैठौं । किनारे रहना=दूर रहना। वचना। जैसे-नुम ऐसी बातों से किनारे रहूते हैं। किनारे लगना=(१) (ना | के दोनो ओर दगी रहते हैं। विशेय--ये डोरियाँ दरी के ताने जाने से कुछ अधिक मोटी होतो को) किनारे पर पहुंचाना (२) (किसी कार्य का) तमाप्ति पर पहचाना। समाप्त होना । किनारे लगाना=(१) (नाव को) हैं और ताने के रक्षार्थ लगाई जाती हैं । किनारे पर पहुंचना मी दिइन । (२) । किसी कार्य को किनारा-सा पुं० [फा० किनारह] किसी अधिक नवाई और कम समाप्ति पर पहुचाना । पूरा करना । निर्वाह करना । जैसे- चौडाईबाली वस्तु के वे दोनों भाग या प्रात जहाँ से चोदाई जरा इस काम को हाथ में ले निया है, तब किनारे समाप्त होती हो । जंवाई के बने की कोर । जैसे—(क) बान लगाो । किनारे होना=अलग होना । दूर हटना । सवध वा कृTई का किनारा । (ख) बान किनारे पर कटा है । २ नदी या इलागय की है । तीर । छोडना । छुट्टी पाना । मतच न रखना । जैसे-तुम त ने देकर किनारे हो गए हमारा चाहे जो हो । मुहा०—किनारा दिनाना= छोर या मिरा दिखाना 1 उ –उह। । विशेष—इस शब्द का प्र विसEि का लोप करके प्राय f61 रहे हैं विपत्र हुन् । हुन अव दया का दिखा किनारा दें। चुभत० १०४।। जाता है। जैसे—(क) नदी के किनारे चलो। (ब) वह ३. समान या कम अनान लवाई चौडाईवाली वन्तु के चारो किनारे किनारे जा रहा है। यौं०-फिनारी वाफ= किनारी यी गौडा बन नेवाला ।। ग्रोर हा वंदू भाग जहां से उनके विस्तार का में तहोता हो । किनिg)--सवं० [हिं० किन] मु० 'किन। उ –जितहि रघौ ही प्रति : भाग । जैसे—वैन का किनारा चौकी का किरा ।। | तितहि न पा । जसुम जिय fनि विरमा ।—नंद ४. [ सौ० किनारी ] कपड़े आदि में किनारे पर का वह भग ग्र०, पृ० २८२ । । जो fन्न रग या बुनाट का होता है। होसिया । नोटा । किन -क्रि० वि० दे० 'किन उ०-नुम । सव रो री । ही उत्तर वार्डर। देहों चने किनि जाउँ ढाटा वइ बावरी गाँऊ -पोद्दार f/० --किनारादार या किनारेदार। प्र०, पृ० १६० । ५ किसी ऐसी वस्तु का Hि या छोर जिसमें चौडाई ने किन्नर- अज्ञा पुं० सि किन्नर किन्नर] [जी० किन्नरी) एक हो । जैसे, तार्गे का किनारा १ पाश्र्व । बगल । प्ररि के देवता । मुहा०--किनार करना= अलग होना 1 दूर होना । परित्याग विशेष—इनका मुख घोड़े के समान होता है और वे संगीन में करना । छोड देना। उ०—जिनके हिउ परलोक विगार ते अत्यत कुशल होते हैं । ये लो पुनस्य ऋवि के वन मने सय जिप्रत किहिन किनारा !-वित्राम (शब्द॰) । किनारा जाते हैं। काटना=(१) अलग करना । (२) अलग होना । किनारी पर्या० - तुरगमुत्र !-fकपुप ।-तिमदो। चना=किनारे होना । अलग होना । दूर होना। हृटना। किन्नर--सच्ची पुं० [देश॰] कु गर । विवाद । दलीन । किनारी- सच्चा म्भी० [फा० फिनारा] सुनहला या ६ हल पतला किन्नर.- सच्चा पुं० [सं० फन्दर] 5 का । खहि ।कंदरः। उ--- नोटा जो कपडो के किनारे पर लगाया जाता है। | कपि कुन विपन रीछ नि किन्नर, सुर चुर मग त मावे - किनारीवारो-वि० स्त्री० [हिं० किनारी +वारी जिसमे किनारे । रघु० रु०, पृ० १९१ । लगो हो (लाड) । उ०—कुदन के अग माँग मोतिन सँवारी किन्नरि--सा स्त्री० [सं० fbमरी एक वाजा। इ०-गोमत जारी सोहत किनारीवारी केसरि के रंग की ।- भति० ग्र०, किन्नर, झाँझ, वीच चि मधर उगा नट हैं, पृ० ४१६। १० ३८२। कनारे-क्रि० वि० [४० किनार १ किनारे पर । तुट पर । २ किन्नरी'--सा जी० [सं०] १ किन्नर की भी। २.किन्ता । अलग 1 दूर। की स्त्री ।। महा9 --किनारे करना = दूर करना। अलग करना । हुना। किनरारीचा " [५५६-वा] १ एक प्रकार : किनारे न जाना = दूर रहना । अलग रहना । बचना । जैसे- तंबूरा , २ किगरी। मारनी । हम ऐसे काम के किनारे नहीं जाते ] किनारे कर लेना=अलग किन्ना-पुसी स्त्री० [सं० न्या] फन् । पुत्री (इि०)।-, । कर लेना । उ०-यदि अपने भावो को समेटकर मनुष्य अपने ब्याहे कोडनो, जू किन्यावर लेवे । -६० २, पृ॰ २२२ । हृदय को शैप सरिट के किनारे कर में या स्वार्थ की पवति किप्पाट -सज्ञा पुं० [सं० झपाट] कपाट । दरब, जा । उ०-फहम् में ही प्ति २६ तो उसकी मनुष्यता कह रहेगी ।—रना, घाम रिम राहू न्याम नि धाम पिपति। पन्ध चत्न दि। १० ८। किनारे किनारे जाना = (१) तीर तीर होकर जाना । टोन फट्टि प्पिाई थट्र भजि -० ० ५।२६।