पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४२५

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कितौऊ १५ स्त्री० [वि० कितावी] १ पुम्वुक । अथ । किण्व–सच्चा पुं० [सं०] शराब में खमीर उठाने के लिये व्यवहृत एक किवाव--संज्ञा | प्रकार का वीज कि०] ।। २ रजिस्टर } वहीखाता । ३. कुरान । उ०-~-ज्ञानी मोर किवी संज्ञा पुं० [अ० ही ना पं० [सं० किण्विन घोडा (को०] ।। अपरबल ज्ञाना । वेद किताव भरम हम साना—कबीर सा०, कित -क्रि० वि० [सँ० कुत्र, प्रा० कुत्य] १ कहाँ । २ किस पृ० ८०७ । | ओर । किधर ।। यौ०-कितावखाना = पुस्तकालय । लाइनें री । किताबफश= क्तिक - क्रि० वि० त० किपरक किंतुन । किस कदर । पुम्हें वैवनेवाला । पुस्तक का दुकानदार 1 पुस्तकविक्रेता ! कितुकु -वि॰ [स० कति] कितनी ! उ०—कित होन हैं कट किताववाला=जो लिखी बातों को प्रमाण मानता है। अनुभव जैसे । चरनमध्य कसका हैं कैसे ।-नाद ग्र --पृ० २३३ ! को प्रमाण माननेवाला। उ०—किताववालों को इन्ही कितना-वि० [सं० क्ष्यित् से हि०] [जी० कितनी] १ किम परिमाणु दोनो में वाँध त्रिया---कवीर सा०, पृ० ६६४ । मात्र या सव्या का ? (प्रश्नवाचः) जैसे,—(क) तुम्हारे कितावत–संछा स्त्री० [ अं० ] लिखापढी । करना । प्रतिलिपि - पास कितने रुपए हैं ? (ख) यह घी तौल में कितना है ? | करना (को०)। यौ---कितना एक (परिमाण या मात्रा) = किठना । कि कितना वत-वि० [अ० किताब] १ किताव के आकार का । परिमाण या मात्रा का । जैसे-कितना एक तेल खर्च हुआ । | २. किताव सवधी ।। होगा ? कितने एक= किसे सत्या में । जैसे,—कितने एक यौ०-कित इवी इल्म = पुस्तकीय ज्ञान। किताबी कीड़ा = (१) आदमी तुम्हारे साथ होंगे। वह कीडा जो पुस्तकों को चाट जाता है । (२) वह व्यक्ति जो २.अधिक । बहुत ज्यादा । जैसे—यह कितना बेहया अादमी है । | सदा पुस्तक ही पढ़ना रहता है। कितावी चेहरा= वह चेहरा कितना–क्रि० वि० १.किस परिमाण या मात्रा में ? कहाँ तक ? जिसकी प्राकृति लवाई लिए हो । लुतरा चेहरा ।। जैसे--- तुम हमारे लिये कितना दौड़ोगे ? २ अधिक । बहूत निक- वि० [हिं० सिन] दे॰ 'किक 'कि उना' । ३०- ज्यादा । जैसे—किन्ना समझते हैं पर वह नहीं मानता। कितिक वरम द्वाररावृति बसे ।-नद० ग्र०, पृ० २१६ ।। कितनी–वि० [हिं० कितना' का स्त्री०] अनेक । उ०—–प है। क्रिते ५ - वि० [हिं० किना] कितना । अनिश्चित सखया । उ०—- कित नियों को इस दामिनी की एक चमक दमक ..1 प्रेमचन, अवले रे मनु मानुमन सो देव दैत्य अागे किते ।-- हम्मीर भा॰ २, पृ० १२२ । रा० १० १०६ । कितनीक–वि० [कितनी+एफ] कितनी एक । उ०—देव्य की | कितेक–वि० [सं० कियदेक] १ कितना । २ जिसकी संख्या । | तो कितनीक बात है।---दो सौ बावन, १० १, पृ० १५४।। निश्चित न हो । असख्य । वहुत । उ०—किरवान व सो कितनोक-वि० [हिं० कितना+एक, ब्रज कितनो+एक] ब०-~ विपक्ष करिबे को डर अनि के किने छ अाए सरन की गैन हैं । | चांपालाई सों पूछी जो करज कितनोक भयो है ।—दो सौ --भूपण ग्र० पू० ४६ । दावन, भा० १, पृ० १५३। कितेव--सूज्ञा स्त्री० [अ०किताव ] किताब । कुरान शरीफ । कितुमक---सज्ञा पुं० [फा०किसमत] कर्ता। भाग्य । विधि। उ०---वैद कितेच ते भेद या रहा, वह तो अाप हैं एक जोई उ०-पूरब जनम तणइ सराप, कितमक ली। सो भोगवी, | कवीर रे०, पृ० १२ । विण भोग्घा नहीं छूट सी पापे |--वी० सो पृ० ३१ कितेवा--सुच्चा बी० [हिं० कितेव दे० 'कितव' । उ०--- कितव--सा पुं० [सं०] १ जुझारी । २. धूतं । छली ! ३ उन्मत्त ।। ना खुदा कुरान कितेर्वा न खुदा नमाजे --सतवाणी०, भा०१ पागल ! ४ खन् । दुष्ट । ५. धतुरा । ६ गोरोचन । । पृ० १५२ ।। कित-सवं० [सं० कुत्रापि प्रयव हि० कित + ई (प्रत्य॰)] कही कितेवा--सज्ञा पुं० [अ० कि 3 वि] किताब या कुरान । उ०—- भी । उ०—चल्यो गौ तहे विप्र क्षिप्रगति कितई न अटक्यो । | किते। पढ़ेवा तुरुका अनता |--कीति०, पृ० ४० । - नद० ग्र २ पृ० २०४।। क्रिते -क्रि० वि० [सं० कुत्र, प्रा० ऋत्य कहाँ । किस जहि । किता'-सज्ञा पुं० [अ० कित्ता] १. सिलाई के लिये कपड़े की कार्ड उ० - किसी प्रभु को दै राजपुत्री कितै 1--केशव (शब्द॰) । छांट। व्योत ।। हितो' –वि० [सं० क्यितु] [स्त्री० किती कितना । उ०८ क्रि० प्र०—करना । —होना । किवी न गो कुन कुतबघू, काहि न केहि सिख दीन ?--विहारी २ काट छाँट । ढंग । चाले । जैसे—(क) टोपी अच्छे किर्ते (शब्द॰) । की है । (ख) यह तो अजीवी किवे का आदमी है। ३ सुव्या किनोgf क्रि० वि० ‘कितना' । अदद । जैसे—देव किता मकान, चार किती खेत । पाँच किंतु किती- वि० [हिं० कितना] दे॰ 'कितना' । ३२-एक अङ कौ दस्तावेन । ४ विस्तार का एक भाग । सतह का हिस्सा । भार सु कितौ । परवतु सेस धरे सिर तितो ।—नैद० ग्र०, ५ प्रदेश । प्रागण । भूभाग। | पृ० २८२ । Iकनी–वि० [३० कितना का संक्षिप्त रूप] दे॰ 'कितना' । उ०-- किनकिं-वि० [हिं० किती+उर (प्रत्य॰)] किनना हो । उ०—क फिता है। दिग्ग कवी सम्झणहर मशेप-रनु० रू०, श्री हरिदास पिनरा के जिनावर सो, तुरफटाई रह्यो उ1ि3 १० ११ । को कितोऊ करि --पोद्दार अभि०, प्र॰ ३६० । रा