पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४२३

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काहू काटा | काहि कह यह कुततान - - कास्ट्रा--सुज्ञा स्त्री० [सं० काष्] ३० 'काष्ठा' । उ०—ग्रासी कास्टा कोहली--संज्ञा स्त्री० [पुं०] युवती । तरुणी ोि०] । | ककुन दिन गो हुरीत इहि गेर 1-अनेकार्थ०, पृ० ३६ काहा -सर्व० [हिं० कहा= क्या क्या । उ०—जाइ उतरु अव काट वोट–अञ्च यु० [अ०] किनी सना वा परिषद के अध्यक्ष बा देहीं कहा। उर उपजा अति दारुन दाहा!-—मानस १५४ ! सुभाषति का वोट । निर्णायक बोट । जैसे,—-प्रमुग्न प्रस्ताव के काहार-झा पुं० [म०] एक जाति जिनुका प्रधा लोगो को पालको पक्ष में २० और विपक्ष में भी २० ही बोट प्राए । सभापति ने में होना है। कहार कि०] । पक्ष में अपना कास्टिग वोट देकर प्रस्ताव पास कर दिया। काहानी —सी ची० [सं० फयानक, कथानिका, हि० कहानी] विशेष--इसका उपयोग किती विपर्य या प्रश्न का निर्णय करने कहानी । कया । उ०—युरिस काहानी है जो (कमो) जमु के लिये उस समय किया जाता है जब सभासद दो समान माग पत्यावे पुई।--कीर्ति, पृ० ८ । में बँट जाते हैं, अर्थात् जद झाचे सदस्य पक्ष में और प्राधे | काहीपण सा पुं० [स० कार्षापण] ३० 'कार्पोपण' । उ० ---प्रौर विपक्ष में होने हैं, तत्र सुभापति किसी पक्ष में अपना 'कास्टिंग । इमने वाराहिपुत्र अश्विभूति ब्राह्मण के हाथ में चार हजार वोट देता है । इव प्रकारे एक अधिक वोट से उस पक्ष की काहार्पणों के मूल्य से बुरीदा बेत दिया कि इससे मेरे लें। बात मान ली जानी है। यदि म भापनि उसे सभा या संस्था में रहनेवाने चतुर्दश भिक्षुसंघ को भोजन मिनता रहेगी।-- का सदस्य हो तो वह कास्टिग वोट दे सकता है । सदस्य रूप भा० इ० रू०, पृ० ७६० ।। से वह सदस्यों के साथ पहले ही वोट दे चुका है। काहिG- सर्व० [हिं०] १. किसको । किसे । २ किससे । उ० कास्टिक—वि० [२] व क्षार ज वम पर पड़कर उसै जना दै काहि कहीं यह जान न कोऊ |--तुलसी (श०)। । यो अावले डाल दें। जारक। काहिा -वि० [अ०] जो फुर्तीना न हो । अलसी । सुस्ती । उ० काहँt - प्रत्य॰ [हिं॰ कह दे० 'क' । मिल जाय हिद खाका में हुम काहिली को क्या ।---भारतेंदु ग्र०, काह -क्रि० वि० [हिं०] क्या ? कौन वन्तु ? उ०-फा सुनाय । मा० १ पृ० ४८० । विधि का सुनावा । का दिखाइ वह काह दिखावा -- काहिकी--सूझा बी० [अ०] सुस्ती 1 आलस । तुलसी (शब्द॰) । काही –प्रत्य० [हिं० फहैं) को 1 के लिये।

  • ह-संज्ञा स्त्री॰ [फा०] तृण । घाई । उ०—दो मुह से चरता है

काही?--वि० [फा० काहू, वा हिं० काईं] वास के रंग का । कालापन दान ३ ॐ है। वे लेकिन नहीं लींद करने को राह -- दक्विी , पृ॰ ३०३। । | लिए हुए हरा । काहन सच्चा पुं० [फा०] [स्त्री० काहिना [ १ भविष्यवक । २. काही- संज्ञा पु० एक रग जो कालापन लिए हुए हरा होता है तो उपदेशक । ३ मुल्जा। मौनवी । उ०—कुम और कबूतर नील, हल्दी और फिटकरी के योग से बनता है । के बच्चों में से वन लावे और फाहृन उसको बलिस्यान में काहीदा--वि० [फा०] छटा हुआ । कटा हुया । कृश । ३०--काहींदा ऐसा मैं भी ढंडा करे न पाएगी, 1 मेरी खातिर पौत भी मेरी नाकर उपुका गना मड डाले ।--कवीर म०, पृ० २८७ । वरसो सर टेकराएगी !--भारतेंदु ग्रं॰, भा॰ २, पृ० ८५६ । काहर--अज्ञा पुं० [सं० कहिारका ३० कहार' । उ०—काहर कधन कितुक किंतुक स्वानने मुष टुट्टत । विछी विपंग मत्रवादी काह --सर्व० [हिं० काहू] दे० 'काह' । उ०--(क) काहु का पल मिल नुट्टत |—पृ० fd०, पृ० २४ । काहू घोल, काहु सवल देन योन l- ०, ६॥१०५ । केहिरङ–सा पुं० [सं० क्वाथ, प्रा०काढ] काद।। क्य । उ०- (ख) मोठिप वर इन काहूव हावा । रेदुर चढइ न मोरेह काहऊ पवी न ऊपद खाई।—बीसल० रास, पृ० ६४ ।। माथा ---इंद्रा०, पृ० ३९ । काहल- सच्चा पु० [सं०] १. वड़ा ढोन । २.[ी० काहनी] विल्ली । काह--सर्व० [हिं०] कोई। किसी ने । उ०—-पेर सुरा सोई पै ३ [बी० कोहली मुर्गा । ४ अव्यक्त शब्द । (को०) । है कार ५. पिया। लखें न कोई कि काहू दिया --जायची ग्र०, कौप्रह। काक (को०)। ६ शब्द ध्वनि (को०)। ७. एक पृ॰ ३३६ ।। वरना (को॰) । | काहसर्व० [हि का+ह (प्रत्य॰)] कि । उ० -(क) जो काहन—वि० [सं०] १ कठोर। उ०—म्तन्छ कठिन, फर्कस, पेरुप, काहू की देखहि विपती ।—तुलसी (शब्द०)। (ख) घार अ. कठोर। दृढ काहुन पुनि करागु जो होरि ति। तजि लगे तरवार लगे पर काहू कीकाहू सो मौखि लगे ना सील - नद० प्र ०, पृ० ११२ । शुष्क । सूखा। मुरझाया श्री (को०) । ३ दुइट। धृतं (०)! ४ अधिक 1 विस्तृत । विशेष--ब्रजभाषा के 'को' शब्द का वि भक्ति लगने के पहने विज्ञान (०){ हानिकारक (को॰) । 'का' रूप हो जाता है। इसी का' निश्यायंक ‘हू' विभक्ति काहल-@-वि० [दिश०] गंदा । पक भरा । के पहले लग जाता है, जैसे, काहू ने, काहू को, काहू सो यादि। काहला- सच्चा स्त्री० [सं०] १ वरुण की स्त्री । २ एक अप्सरा का काह-संछा पुं० [फा० गोभी की तरह का एक पौधा जिसकी पत्तियों नाम । ३ सेना सुवघी एक वडा ढोल (को॰) । लंबी, दलदार और मुलायम होती हैं। कालि- सच्चा पु० [सं०] शिव ०] । ३-५३ - (शब्द॰) ।