पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४१६

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काली कालोवेल (फो०)। १० सत्यवधी या व्यास की माता (को०)। ११ रात्रि मूति प्रतिष्ठापित हो । कालीमदिर। उ०--कालीयान की (को०)। १२ कलक । निदा (को०) १३. यम की वहन (को॰) । ग्रौर म ह फक मी काँती को प्रणाम कि या-मेल:०, पृ०२। १४ एक छोटा पौधा जो रेचक होता है (को०) । १५ एक कालदह---सज्ञा पुं० [सं० फालिका + हि०वह] वृदावन में जमुना का कीटविशेप (को॰) । • एक दह या कुई, जिसमें काली नाम नाग रहा करता था। का -वि० सी० १ काले रंग की । २ बाबली । उ०--(क) गयो इवि कालीदह माहीं । अाल देखि परयो काली -सच्चा पुं० [सं० फालिय] कालिय नाग । पुनि नाही ।-रघुराज (शब्द०) । ख) पहुंचे जव कालीदछ कालीअछी----सज्ञा स्त्री॰ [देश०] एक बड़ी झाडौ जिसकी टहनियो । तीरा । पियत नए ग बालक नीर विश्राम (शब्द०)। में सीधे सीधे कोटे होते हैं। कालीधार-सा बौ० [सं० फाली+घार १ भयकर नदी की धारा । । विशेष—- इसके पत्ते १२-१३ अगुल लबे और किनारों पर ददाने- ३ विप की धारा । दार होते हैं। इसमें गुजारी रग के फूल लगते हैं। फन महा०-झालीधार में डूबना = सर्वस्व नष्ट होना । उ०—-मावे लाल होते हैं, जो बहुत पकचे पर काले हो जाते हैं । काली हूब गितार, मानव कालीघरा मेझ बाँकी० ग्र॰, भा॰ २, अछी पजाव और गुजरात को छोड भारतवर्ष में सर्वग्न होती है। पृ० ११२ । और फूल के लिये लगाई जाती है। कालोन'- वि० [सं०] कालवधी । जैसे, समकालीन, प्राक्कालीन, कालीक- सज्ञा पुं० [सं०] कीच नामक पक्ष ने] । बहूकालीन । ३० देखत बालक वह कालौना --तुलसी कालीखोह - सच्चा श्री० [हिं० काली + खोह) मिर्जापुर के निकट (शब्द॰) । विंध्याचल की देवी (दुर्गा का स्थान । उ०—कानी खोह विशेप-- यह शब्द समस्त पद के अत में आता है, अकेला व्यवहार निवासिनी महाकाली के भय से ।- प्रेमघन॰, भा० २, पृ० | में नहीं आता। १३६ । कालीन-- सधा पुं० [अ० कालीन ऊन या सूत के मोटे तागो का कालीघटा--सच्चा श्री० [हिं० फाली+घटा] घने काले बादलो का बना हुआ। वि छावन, जो बहुत मोटा मौर भारी होता है पौर समूह जो क्षितिज को घेरे हुए दिखाई पड़े। सघन कृष्ण जिसमे रग विरगे वेलबुट वने रहते हैं। गलीचा ।। मेघमाला । विशेप–इनका ताना खडे बल रखा जाता है अर्थात वह छत क्रि० प्र०--उठा।-उमदी ।-घिरना ।-छानी ।। से जमीन की ग्रोर लरकुना हु होता है । रग विरगे ताग के कालीची-- सज्ञा स्त्री॰ [सं०] यम का न्यायालय । वह विशाल भवन ट्रक्खें लेकर बानो के साथ गोठते जाते हैं और उनके छोरों जिसमें वैठकर यमराज प्राणियों के शुभ शुभ कर्मों का निर्णय को काटते जाते हैं। इन्हीं निकले हुए छोरो के कारण कालीन करते हैं (को॰] । पर रोएँ जान पड़ते हैं । कालीन का व्यवसाय भारतवर्ष में कितना कालीजवान--सच्चा स्त्री० [हिं० झाली+फा० जवान] वह जनान पुराना है, इसका ठीक ठीक पता नहीं मिलती । संस्कृत ग्रयों | जिससे निकली हुई अशुभ बातें सत्य घटा करें। में दरी या कालीन के व्यवसाय का स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता। कालीजोरीन्सच्चा बी० [सं० फणजीर, हि० फाला + जौरा] वहुत से लोगों का मत हैं कि यह कला भिन्न देश से बाविलन एक औपछि । होती हुई और देशो में फैली । फारसे में इस कला के बहुत विशेष—इसका पेड़४-५ हाथ ऊ ची होता है और इसकी पत्तियाँ उन्नति हुई । उसमे मुसलमानों के आने पर देश में इस गहरी हरी, गोल, ५६ अगुल चौड़ी और नुकीली होती हैं, तथा कला का प्रचार वद्दत वढ़ गया और फारस भादि देशों से उनके किनारे देदानेदार होते हैं। पेड प्राय वरनात में उगता और करीगर बुलाए गए । प्राईने अफवरी में लिखी है कि है और क्वार कातिक में उसके सिर पर गोल गोल वड़ियो के अकवरे ने उत्तरीय भारत में इस कला का प्रचार किया, पर गुच्छे लगते हैं, जिनमें से छोटे छोटे, पतले पत १ वैगनी रंग के यह फ 11 अकबर के पहले त यहाँ प्रचलित थी । कालीनो की फूल या कुसुम निकलते है । फूलों के झड़ जाने पर वोडी बरे नक्काशी अधिकाश फारसी नमूने की होती है, इससे यह कला या कुसुम की बोड़ी की तरह बढ़ती जाती है और महीने भर फारसे से आई वतलाई जाती है। ईरान की कालने में सार में में पककर छितरा जाती है। उसके फटने से भूरे रंग की सवत श्रेष्ठ मानी जाती है। कालोना–सच्चा पु० [सं० फालियनाग दे० 'कालिय' । उ०—झाली रोई दिखाई पड़ती है जिसमें वही झाल होती है। यह रोई वोडी के भीतर के वीज के सिरे पर लगी रहती है और जल्दी नाग जू ना थियो, तुम सो और न कोइ ।—नद० ग्रं, पृ० १६६ । अलग हो जाती है। काली जीरी खाने में कड़वी और चरपरी । होती है । वैद्य क में इसे व्रण नाशक तथा घाव, फोडे आदि के कालीपति-सय पुं० [सं०] पिव | महादेव । ३०---चितामणि लिये उपकारी मानी है। व्वाई हुई चोरी के मालो में भी ।। शिव सेइयो, दिस वर्ष प्रमान । ह्व प्रसन्न कालीपतिय, सीस - यह दी जाती हैं। | जोर धरि ठान --प, रसो, पृ॰ ३४ । पय--वनजीर । अरप्यजीरक । वृहन्यालो । फण । कालो फुलिया--सम्रा सी० [हिं० फाली+फूल] एक प्रकार को 'कालोतनय--सज्ञा पुं॰ [सं०] महिप । भैसा (को०} । कालीयान-सञ्चय पुं० [स० कालीस्थान] वह स्थान जहाँ काली की कालोबेल- सच्चा स्त्री० [हिं० काली+वेल] एक बडी लता । शिव न ० [हिं० ।' बुरावुन