पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४१५

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मालिक ९३१ झाली' कालिक सूज्ञा ली० [हिं० कालिख] दे० 'कालिब' । उ॰—पहिले कालिख-संज्ञा स्त्री० [सं० कालिका वह काली महीन बुकनी जो गहि मूड मुडावा। पीछे मुख कालिक लावा -सुदर ग्र०, प्राग या दीपक के धुए के जमने से वस्तुओं में लग जाती है ! . मा० १, पृ० १३९ । कलौंछ । स्याही । कालिका–सुझा स्त्री० [सं०]१. देवी की एक मूति । चढिका । काली । क्रि० प्र०—लगना ।—जमना । विशेप---शु भ और निशु भ के अत्याचारो से पीडित इंद्रादिक मुहा०—मुह में फालिख लगना= बदनामी और कलक के देवता की प्रार्थना पर एक माती प्रकट हुई, जिसके शरीर के कारण मुह दिखलाने लायक न रहना । कलंक लगना । मुंह से इन देवी को आविर्भाव हुआ । पहले इनका वर्ण काला था, में फालिख लगना=(१) कलंक लगने का कारण होना । इसी से इनका नाम कालिका पडा । यह उग्र भयों से रक्षा बदनामी का कारण होना । जैसे,—उसने ऐसा करके हमारे करती हैं, इस कारण इनका एक नाम उग्रतारा भी है। इनके मुह भी कालिख लगाई। (२) कलक लगाना । दोषी सिर पर एक जटा है, इसी से ये एकजटा भी कहलाती हैं। हराना । इनका ध्यान इस प्रकार हैं--कृष्णवण, चतुर्भुजा, दाहिने कालिज-सज्ञा पुं० [अ० को लिज] वह विद्यालय जहाँ ऊचे दर्जे दोनो हाथो में से ऊपर के हाथ में खङ्गों और नीचे के हाथ में पद्म, वाएं दोनो हायों में से ऊपर के हाथों में फैटारी और क्वालिज-सज्ञा पुं॰ [देश०] एक प्रकार का चकोर जो जो शिमले में नीचे के हाथ मे खप्पर, वडी ऊँची एक जटा, गले मे मुडमाला मिलती है। और सॉप, लाल नेत्र, काले वस्त्र, कमर में वाघंबर, वाय पर कालित--वि० [सं०] मृत [को०] । शव की छाती पर और दाहिना सिंह की पीठ पर, भयंकर कालिदास--सझा पुं० [सं०] संस्कृत के एक श्रेष्ठ कवि का नाम, अट्टहास करती हुई। इनके साथ अाठ योगिनियाँ भी हैं, जिनके जिन्होंने अभिज्ञान शाकुतल, विक्रमोर्वशीय, और मालविकाग्ति- नाम ये हैं महाकाली, रुद्राणी,उग्रा, भीमा, घोरा भ्रामरी, मिश्र नाटक तया रघुवंश, कुमारनं मव, मेघदूत और ऋतुमहार महारात्रि और मैरवी । नामक काव्यों की रचना की थी। २. कालापन । कलॉछ । कालिख । ३. बिछुआ नामक पौधा ! कालिब-सज्ञा पुं० [अ०] १ टीन या लकडी का एक गोल ढाँची जिस ४. किस्तवद । ५. रोमराजी । उटामासी ७, काकोली ।। पर चढ़ाकर टोपिया दुरुस्त कों जाती हैं । २ शरीर। देह। ८, शृगाली । ९. कौवे की मादा ! १०, श्यामा पसी । ११. उ०--गुरु पारस पन मे पर्ने सिप कचन कर लीन । सो रज्जब मेघघट १२ सोने का एक दोप। सूवर। १३. मढे का महंगे सदा कुलि कलिवा से छीन ।-रज्जव०, पृ० ८।। कीडा। १४. स्याही । मसी ! १५, सुरा । मदिरा । शराब । कालिमा--सज्ञा भी० [सं० कालि मन्] १. कालापन । २. कनौछ। १६ एक प्रकार की हर । काली हर । १७ एक नदी। १८. कालिख । ३ अँधेर । ४ कलंक । दोष लाछन । उ०-~ अाँख की काली पुतली । १६ दसे को एक कन्या । २०, कान तात मरन यि हरन गीध वध भुज दाहिनी गंवाई । तुलसी मैं की मुख्य नसे । २१ हुलको झडी। झीसी । २२ बिच्छ्। २३ सव भांति अपने कुनहि कालिमा लाई |--तुलसी (शब्द॰) । काली मिट्टी जिससे सिर मलते हैं। २४चार वर्ष की कन्या । कालिय'--वि० [सं०] १. काल या समय सुवघी । २ सामयिक [को०] । २५ रणचडी । २६, चौथे अर्हत को एक दासी ( जैन )। कालिय-संज्ञा पुं० [सं०] कलियुग (को०] । कालिकाधा--सज्ञा पुं० [सं०] १. जिसकी अखि स्वभाबत काली हो। कालिथ-सधा पुं० [सं०] एक सर्प जिसे कृष्ण ने वश में किया था । २ एक राक्षस । । यौo--कालियजित्, कालियदमन, कालियमदन= कृष्ण । कालि- कालिकापुराण--सझा पुं० [सं०] एक उपपुराण का नाम जिसमें पहृद= कालियदह । कालियबह= वह दह जिसमे कालिप ना | कालिका देवी के माहात्म्य आदि का वर्णन है। रहता था। कलिकावन-सृज्ञा पुं० [सं०] एक पर्वत । | कालियादह ---सच्चा पुं० [सं० कालिय+ह, प्रा० ब्रह= वह] कालिकाला५–क्रि०वि० [हिं० फालि+काल कदाचित् । कभी । यमुना नदी का बह खड़े जिसमें कालिय नाम का सर्प किसी समय । उ०--एतेहू पर कोऊ जो राव ह्वजोर करे, रहता था । | ताको जोर देव दीन द्वारे गुदरत ह। पाइ के ओह्नो झोराः। काली-सच्चा स्त्री० [सं०] १. चंडी । कालिका । दुर्गा । २. पार्वती । इनो न दीजै मोहि कालिकाला। काशीनाथ कहे निवरत हो । गिरिजा । ३ हिमालय पर्वत से निकली हुई एक नदी । ५, —तुलसी (शब्द॰) । विशेष—यह शब्द संदिग्ध जान पड़ता है, वैननाय कुमी ने दस महाविद्यग्रो में पहली महाविद्या । ५. अग्नि की सात अपनी टीका में यह अर्थ दिया है। जिह्वाग्रो में पहली । कालकावृटूि-सी मं०] वह व्याज जो महीने महीने लिया विशेप--अग्नि की सात जिह्वाग्रों के नाम ये हैं-काली, कालो, जयं । मासिक ब्याज । {लिकेन-सा पुं० [सं०] दक्ष की कन्या कालिका से उत्पन्न मसुरो मनोजवा, सुलोहिता, सुधूम्रवर्णा, स्फुलिगिनी और विश्वरुची । की एक जति । ६ कृष्णता श्याम । कानपिन (को०)।७ काले रंग की स्याही (को०) १८, काले रग को घटा (को०)।६, काले रंग की स्त्री ।