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कालभुजंग' s: ०

  • कालिक।

महा०---कोला बाले जाना या समझन= किसी को अत्यन यौ०- फालिजर गढ़। तुच्छ समझना। उ०—-चोर कब उसका जोर माने है । काला कालिडी -सञ्चा, जौ० [सं० कालिन्दी] दे० 'कालिद'। उ०—-वसी बाल उसको अपना जाने है ।-सौदा (शब्द॰) । सहस सह मिल्लियौ कालिडी के हीर---प० रासो,पृ० १२३। कालाभजग'-वि० [हिं० काला+से० भुजङ्ग] बहुत काला। अरयत कालिद'--वि० [र्म० फालिन्द] १ कलिद पर्वत से संबद्ध । २ कलिद काला। घोर कृष्ण वर्ण की । पहाड़ से आता है । ३ यमुना नदी से अता हुआ ये विशेष—इस शब्द का व्यवहार प्राणियों के ही लिये होता है । कालिद--सज्ञा पुं० तरबूज ।। भुजग शब्द से या तो सर्प का अभिप्राय है या 'भुजगे पक्षी का कालिदी--सच्चा सौ॰ [सं० फालिन्दी] १ कलिद पवंत से निकली हुई, जो बहुत काला होता है। यमुना नदी । २ अयोध्या के राजा असित की- स्त्री जो मगर कालाभुजग.. सज्ञा पुं० १.फ'ला सपि । २ मुजग ,पक्षी जो काले । की माता थी । ३ कृष्ण की एक स्त्री । ५ लात निसोय । ५. | रंग का होता है ।। एक असुर कन्या का नाम । ६ उड़ीसा का एक वैष्णव संप्रदाय काला मोहरा--सज्ञा पुं० [हिं० काला+मोहरा सीगिया की जाति का जिसके अनुयायी प्राय छोटी जाति के लोग हैं। 5 प्रोडव जाति एक पौधा, जिसकी जड मे विप होता है । की एक रागिनी । कालायनी-सच्चा सौ० [सं०] शिवा । दुर्गा । रुद्राणी (०) । कालिदकर्षण–सज्ञा पुं० [सं० कालिन्चोकर्प ण]दे० 'कालिदी' भेदन कालावधि-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] किसी कार्य के पूर्ण होने की निश्चित [को०] । तिथि । नियत काल (को०] । | कालिदभेदन--सधा पुं० [सं० फालिन्दीभेदन] कृष्ण के जेठे भाई झालाशुद्धि- सझा सी० [सं०] ज्योतिप में वह समय जो शुभ कार्यों के | वलराम जो हुल से यमुना नदी को वृदावन खीच लाए थे। लिये निषिद्ध है। विशेप कालिंदीकर्षण की कथा हरिवश मे दी हुई है। कालाशौच--- सच्चा पुं० [सं०] वह अशव जो पिता माता अादि गुरुजनों कालिदास-सज्ञा स्त्री० [सं० कालिन्दीसू ] सूर्य की पत्नी ]ि । के मरने के उपरात एक वर्ष तक रहता है। कानदीसू-सज्ञा पुं० [सं० फालिन्दीस] सूर्य । वह जिसकी पुत्री कालासुखदास--सज्ञा पुं० [हिं० काला+सुम्यवास] एक प्रकार का | कालिदी है [को०] । धान जो अगहन में तैयार होता है ।। कालिदीमोदर---सा पुं० [फालिन्दी सोदर] यमुना नदी का भाई, कालास्त्र--सच्चा पु० [सं०] एक प्रकार का वाण जिसके प्रहार से शत्रु यमराज [को० । का निधन निश्चय समझा जाता था । सं पातक बाण ।, कालिद्र- सज्ञा स्त्री० [सं० फालिन्द] दे० कालिदह । उ० -३ कालिग'-..-वि० [सं० फालि ङ्ग] कलिग देश का । कलिग देश में उत्पन्न । | कालिद्र दह सु अति गहूर वारि । पावन्न परम सतल से चार कालिग'--सज्ञा १० [सं०] १ व लिग देश का निवासी । २, कलिंग -पृ० १०, १५.५८ ।। देश का राजा । ३ हामी । ४ सौंप । ५ कनिदा । तरबूज । कालिद्री –सच्चा स्त्री० [सं० फालिन्द्री] दे० 'कालिंदी'। उ०--* हिंदुवाना। ६ भूमिक करुि । कुटज । विलायती कुम्हड़ा। उलटी कालिद्वी बहही । गिरि गगा परसन को चहही ।- ७ लोहा माधवानल०, पृ० १६१। कलिगिका--संज्ञा स्त्री०म० काज्ञिगिका] नि सोथ । त्रिवत् । निधारा। कालि(@t-ऋ० वि० [सं० फल्य १ गत दिवस । 'आज से पहले को कालिंगी--सझा प्रौ॰ [स० कालजर] १ एक पर्वत जो बौदा से ३० दिन । उ०—जनक को सीयं को हमारो तेरो तुलसी को सवको | में ल पूर्व की ओर है ! भावत ह्व है मैं जो कह्यो कालि रौ।—तुलसी (शब्द॰) । विशेष---यह पर्वत संसार के नौ ॐखली में से एक ऊखन माना महा०-- काप्ति को = काल का ।' थोड़े दिनो का । उ०—-दूषण जाता है। इसका माहात्म्य पुराणों में वर्णित है और यह एक विराध खर त्रिशिर कई बधे, ताऊ पिसान वैधे कौतुक हैं। तीर्थ माना जाता है । इस पहाड़ पर एक वडा पुराना किला कालि को -तुलसी (शब्द॰) । है। कालिजर नाम का कसबा पहाड़ के नीचे है । रामायण २ अागामी दिवस । अानेवाला दिन । उ० ---जहाँ कालि नेवधवा (उत्तर कोड) महाभारत और हरिवंश के अतिरिक्त गरुड़, भव दुख दून। गाँव कर रखवरिया सब घर सून --रहीम मत्स्य अादि पुराणों में इस स्थान का उल्लेख मिलता है। यहाँ (शब्द०) । ३. अागामी थोड़े दिनो में । शीघ्र ही । पर नीलकंठ महादेव का एक मदिर है । प्रसिद्ध इतिहास- कालिक'--वि० [सं०] [वि० सी० कालिकी] १.समय सवधी । लेखक फरिश्ता लिखता है कि कलिंजर का गढ़ केदारनाथ समयोचित । नामक एक व्यक्ति ने ईसा की पहली शताब्दी में बनवाया विशेष—इसका प्रयोग प्राय समस्त पदो के मत में मिलता है। था। महमूद गजनवी ने सन् १०२२ मे इस गढ़ को घेरा था । जैसे, नियतकालिक, पूर्व कि । उस समय पहुईं का राजा नद था जिसने एक वर्ष पहले कन्नौज २ जिसका कोई समय नियत हो । ३ मौसमी । सामयिक (को०)। पर चढ़ाई की थी । कालिक सज्ञा पुं० १ नक्षत्र मास । १ काला चंदन । २ ऋची ३ एक नगर का नाम (को॰) । - पक्षी । ४: वैर। शत्रता (को०) 1 ५ बगुला चिडिया (०) ।