पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४१२

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कलातिरेक, विदोप--कौटिल्य ने लिखा है कि ऐसे माले का दाम बनने के समय कालाकला--वि० [हिं० काला+ कलूटा] बहुत कालः । अत्यंत को उसकी लागत का विचार करके निश्चित किया जाता था। श्याम । झाला'.--वि० [सं० फाल] [ जी० काली] १ कागज या कोयनै विशेष---इसका प्रयोग मनुष्यों ही के लिये होता है, जड़ पदाय | के रेग का कृष्ण । म्यहि ।। के लिये नही । यौ --काला कलूटा।--काला भुज़गा फाला चोर। काला कालाकांकर-सुज्ञा पुं० [हिं० फाला+फकिर] एक कस्बा जो पानी । फाला जोरा।। प्रतापगढ़ जिले में गगावट पर बसा है।--उ० फाली काकर महा.- फाला काला होना = शक या स देह होना । उ०—यह का र जिभवन सोया जल मे निश्चित प्रमन । गु जन, बनावट की बात है, इसमे कुछ का ११ फाला जरूर है - पृ० ६४ । फिसाना० भा० ३, पृ० ४०८ । (अपना) में है काला करना = काला कानून-सज्ञा पुं० [ हि काला कानून] १. वह कानुन या (१) कुकर्म करना। पाप करना । (२) व्यभिचार करना । अध्यादेश जो लोकजीवन के विरुद्ध हो । २ अँगरेजी शासन अनुचित महगमन फना । (३) किसी ऐसे मनुष्य का हटना में गर्वनर या वाइसराय द्वारा बनाए गए 959देश या यो चला जाना जिसका हटना या चला जाना इष्ट हो । किसी अडिनेस जो जनता के विरुद्ध पड़ते थे । बुरे प्रादमी का दूर होना । जैसे-जा, यहीं से मु है काला कालाक्षरिक---वि० [सं०] दे० 'कालाक्षरी' । करो । (दूसरे का मुह फाली फरना = (१) किसी अरुचि कक्षिरी--वि० [सं०] काले अक्षर मात्र का अर्थ बना देने वाला। कर या बुरी वस्तु या व्यक्ति को दूर करना । व्यर्थ वस्तु को | अत्यत विद्वान् । सब विद्याओं और मापामों का विद्वान् । हटान। । व्यर्थ को झझट दूर हेटाना । जैसे--(क) तुम्हें इन जैसे-वह तो कालाक्षरी पडित है । भागों में क्या काम, जाने दो, मु है काला करो ! (ख) इन कालागरू-मुवा पुं० [सं०] काना अगर । भवों को जो कुछ देना लेना हो, दे लेकर मैं है काला करो, काला गडा--संज्ञा पुं० [हिं० काला -+ गन्ना] एक प्रकार की ईख जायें । (२) कल क का कारण होना । बदनामी का सवय जो वत मोटी अौर रग मे काली होती है। होना । ऐसी कार्य करना जिससे दूसरे की बदनामी हो । कालागुरु-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] दे॰'कालागरू' । जैसे--तुम अापके अप गए, हमारा भी म है काला किया। काला गैंडा - सच्चा स्त्री॰ [हिं० काला गाँड ३० 'काला गgr'।' फाला मुह होना या मु है काला होना= कल किव होना। कालाग्नि-सज्ञा पुं॰ [सं०] १ प्रलय काल की अग्नि । २ प्रलयाग्नि के पदनाम दीन । कालो हांड़ी सिरपर रखना=(१) सिर पर अधिष्ठाता रुद्र । ३ पचमुखी रुद्राक्ष । बदनामी लेना । (२) कलक का टीका लगाना | फाले कौवे काला चोर-सज्ञा पुं० [सं०] १ व चोर । वहुत भारी चोर। वह खाना = बहुत दिनों तक जीवित रहना । । घोर जो जल्दी पकडा न जा सके । २. बुरे से बुरा अादमी ।। विशप-बहूत जीने वालो को लोग हुँसी से ऐसा कहते हैं । ऐसा तुच्छ मनुष्य । जैसे,-हमारी चीज है, हम काले चोर को देंगे, प्रसिद्ध है कि कौवा वहुत दिनो तक जीता है। '; किसी का क्या है। २ फलुपित । बुरा । जैसे-उसका हृदय वते काला है । ३ मारी। ' फालाजिन–सा पुं० [सं०] १ काले हरिण का चर्म था छाल । प्रचड। बड़ा। जैसे-“काली मधिी । काला कोस । काला' काला मृगछाला । २. एक देश का नाम । वृहत् पृ०६४। चोर । । । । । । कालाजीरा---सच्ची पुं० [हिं० काला+फा० जीरा एक प्रकार का महा०--काते कोस= बहुत दूर । उ०—ाते अव मरियत । | जो जो रग मे काला होता है । स्याह जीरा । मीठा पीरा। अपसोसन । मयुर हू ते गए सखी री भव हरि काले कौन-- पर्वत जीरा। । मूर (शब्द)। " विशेष—यह मसाले और दवा में अधिक काम आता है और काला-वृr पुं० [सं० फाल] फाला १५ । जैसे--जा, तुझे काला, सफेद जीरे से अधिक सुगधित और महँगा होता है । क्रि० प्र०-फाले का काटना, खाना मा बसना । '२. एक प्रकार का धान । । झाला'-*-सः पुं० [a काल | समय । अवसर ! काल । उ०-- विशेप-इसके चावल बहुत दिनों तक रह सकते हैं। यह धान विशप इस चायल वहुत दिना तक रह स ६ । प६ मा चदिय रगतै हिठोर फहा फह तिहि काला --नेद० अ १, ।। अगहन में होता है । १० ३७५। झाला . संभा औ० [सं० कला] फल । माया । उ०----भीखा कालाढोका, काला धोका-सा पुं० [देश॰] एक प्रकार की इरि नटवर बहुरूपी जनहि अाप अपनी काला ---मीवा | वश । धवा । घव । श०, पृ० ३१ । । विशेष--इसकी डालियो नीचे की ओर झुकी होती है और जायें काला-- जी० [सं०] १, कई पौधों के नाम । २ दक्ष प्रजापति ' में पति तोवरे रग की हो जाती है। इसकी लकड़ी वहुत की एक मान्या का नाम । ३, दुर्गा [को०] । मजबूत होती है। उसका रंग कालापन लिए लाल होता है । झालाक द-या ई० [हिं० झाला+करण] एक प्रकार का धान जो यह वृदा मालवा, मध्य प्रदेश और राजपूताने में वहुव होता है। अपने में तैयार होता ३ मोर सिक्का चावल सैकड़ों वर्षों काबातिपात-सभा पुं० [सं० कात + प्रतिपात] ३० कालक्षेप (ो०] । १५ ॥ देवा । काबातिरेक-सा पुं॰ [सं॰ काल +अतिरेक ३० अञ्चचेप' को ! । । ।