पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४१०

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कालवृतः । कनिरात्रि कालवृत-सा पु० [फा०। कालबुद्र] वह कच्चा भरा। जिसपर यी । श्रीकृष्ण ने यह जानकर कि मथुराधानों के हाथ से यह मेहराब बनाई जाती हैं । छैन । उ०-फालत दूती बिना नी मारा जायगा, एक चान्न की कि उसके सामने से भागकर जुरे न और उपाय । फिर ताके टारे बने पाके प्रेम लदाय । वे एक गुफा में जाकर छिी रहे जिसमें मुचकुद नामक राजा –विहारी (शब्द॰) । २ चमारों का वह कार का बहुत दिनों से सो रहे थे। जत्रे कालवन ने गुफा के भीतर जा साँचा जिसपर चढ़कर वे जूता सीते हैं । ३ रस्सी बटने का । मुचकु ६ को लात से जगाया, तब उन्ही फ' कोदृष्टि से वह एक औजार। भस्म हो गया। विशेष—यह अनार काठ का एक कु दा होता है जिसमे रस्सी कालयात्रा-सच्चा स्त्री० [सं०] जीवन का सफर। समय या की.लड जाने के लिये कई छेद या दरार बने रहते हैं। इन्हीं अायु का व्यतीत होना । उ०-जो हो हमें तो ऐसा दरारों में लडो को डालकर वटते हैं जिससे कोई लड मोटी दिखाई पड़ता है कि हमारी यह कलयात्रा, जिसे जीवन या पतली न होने पाए, बल्कि दर के अंदाज से एफ सी रहे। कहते हैं, जिन जिन रूपो के बीच से होती चली ग्राती कालबेल- सच्चा स्त्री॰ [पं० फाल वेल] वह धटी जिसे नौकर को है, हमारा हृदय उन सबको पास समेटकर अपनी रागात्मक बुलाने के लिये अधिकारी अपनी मेज पर रखते हैं और उसके सत्ता के अतभूत करने का प्रयत्न करता है ।—प्राचार्य, बजते ही नौकर दरवाजे के बाहर से सामने ला उपस्थित होता पृ० १०२।। है 1 अावाहनघटिका । उ०- दूसरी पर पानदान, इत्रदान, कालथाप–सझा पुं० [सं०] १ विल ब। २. सुमा वितानाचे ।। कालवेल (अावाहकवरिका) 1-प्रेमघन॰, भा॰ २, पृ ७२ कालयापन- सा पुं० [सं०] १ कालक्षेप । दिन काटना। गुज़ारी कालभुजगी- सच्चा भी० [स कालभूजगी) समय की सपणी । | । करना । उ०- परतु भटार्क । जिसे तुम खेत समझकर हाथ में ले रहे क्रि० प्र०-- फरना |--होना। हो, उस कालभुजगी राष्ट्रनीति की प्राण देकर भी रक्षा २ विलय करना (को॰) । करना -- स्कद°, १० ३४) कालयुक्त- सच्चा पु० [सं०] प्रभव अादि साठ संवत्सरों में से धवन कालभैरव --सा पुं० [सं०] काशीस्थ शिव के मुख्य गणो मे से एक सवत्सर ।-वृहत०, १० ५३ ।। गण । भैरव का रूप । कालयोग- संशा पुं० [सं०] भाग्य । नियति । प्रारब्ध (को०)। कालम-- सज्ञा पुं॰ [सं०] पुस्तके या सवाद पत्र के पृष्ठ की चौडाई होनaa नि, काल योगत --क्रि० वि० [सं०] काल की माश्यकता के अनुसार [को०] मे किए हुए विभागों में से एक 1 कालयोगी--अधा पुं० [स० फलियोगिन् ] शिव । परमेय (को०} । । विशेष—इन, विभागों के बीच या, तो कुछ जगह छोड दी जाती कालर- सम्रा पुं०[अ० कालर] १ गले में बाँधने का पट्टा । २ कोट है या खडी लकीर बना दी जाती है। पृष्ठ का इस प्रकार कमीज या कुरते मे वह उठी हुई पट्टी जो गन के चारो विभाग करने से पक्तियो वहुत बडी नहीं होने पाती, इससे मख। मोर रहती है। को एक-पक्ति से दूसरी पक्ति पर अाने में उतना कष्ट नहीं कालर -वि० [हिं० कल्लर] कल्लर । ऊसर । ३०-- सहजो गुरु होता। पूरा मिले सिसे मैला घर चित्त 'मेह बरसे कालर जिमी खेत कालमल्लिका-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] तुलसी (को०] । न उपजे छि !-इजो०, पृ० १३ । । कालभान-- सज्ञा पुं० [सं०] १ तुली का पौधा । २ समय का कालरा-सच्चा पुं० [अ० कालरा] हैजा या विसूचिक नामक रोग । परिमाण (को॰] ।' कालराति:- सुशी ली[स० कालरात्रि ३० 'कालरात्रि' । उ०- कालमाल-संज्ञा पुं० [सं०] १ तुलसी । २ समये की माप (को॰] ।। कालराति निसिचर कुल केरी। तेहि सीता पर प्रति घनेरी । कोजमुखः-सज्ञा पुं० [सं०] १ शव मत का एक प्रकार। —मानस, ५४० । विशेष—इसमे पांव भक्त भगवान शिव के कृष्ण वर्ण और नमु ४ कालरात्रि-सच्चा स्त्री० [सं०1१. अधेरी और भयावनी रात । २ ब्रह्मी माली रूप का ध्यान और उपासना करते हैं। की रात्रि जिसमे सारी सृष्टि प्रलय को प्राप्त रहती है, केवल २ एक प्रकार का बदर जिसका मुंह काला होता है को]। नारायण ही रहते हैं । प्रलय की रात।। ३. मृत्यु की रात्रि । कालमेघ-सज्ञा पुं० [सं०] १ एक पौधा जो औपघ के काम में आता ४. ज्योतिष में रात्रि का वह भाग जिसमें किसी कार्य का है। २ ऐसे घोर वादल जो वर्षा से चारो ओर प्रनय का दृश्य आरंभ करना निपिद्ध समझा जाता है । । उपस्थित कर दें (को॰] । विशेष—इसके लिये रात के दडो के अाठ सम भाग करते हैं । कालमेशिका, कालमेपिका, कालमेपी-संज्ञा स्त्री० [सं०] मजिष्ठा । फिर बारी के हिसाब से एक एक दिन के लिये एक एक मार्ग मजीठ । (को०) ।। वर्जित हैं । जैसे, रविवार की रात का छठा भाग पर्याव २० कालयवन-सज्ञा पुं० [सं०] हरिवंश के अनुसार यवनों का एक राजा । दड के वाद के ४ दडे,सोमवार को चौथा भाग अर्थात १२ दड के विशेष--इसे गायें ऋषि ने मथुरवालों पर ऋतु होकर उनसे वाद के ४ दल, मगलवार को दूसरा भाग अर्थात, ४ दा बदला लेने के लिये गोपाली नाम की अप्सरा के गर्भ से उत्पन्न के बाद के ४ दड, बुधवार को सातवाँ भाग अर्थात २४ दद्ध के किया था। जरासंध के साथ इसने भी मथुरा पर चढ़ाई की | बदके अंदड,बृहस्पतिवार को पाँचवों भाग अर्यात १६दर के बाद