पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४१

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उठाव ५५५ उद्द १४. मोग करना । अनुभव करना भोगना । जैसे-दुख की हलके हले की दुर दुर जोताई । यह दो प्रकार की होती उठाना, सुख उठाना। उ०-इतना कष्ट आप ही के लिये उठाया। है--विदहनी और धुनी। अधिक पानी होने पर जोतने को है। १५ शिरोधार्य करना। सादर स्वीकार करना । मानना । विदहनी कहते हैं और सूखे में जोतने को घुरहुनी कहते हैं । १०-करें उपाय जो विरया जाई । नृप की आज्ञा लियो गाहना । १२. प्रसूता की सेवा सुथूपा। ई -सूर (शब्द०)। १६. जगाना । जैसे,--उसे सोने दो, उठौवा-वि० [हिं० उठ+और (प्रत्य०)] जिसकी कोई स्थान नियत मत उठायो । १७ किसी वस्तु को हाथ में लेकर कसम । | न हो । जो नियत स्थान पर न रहता हो । खाना । जैसे, गंगा उठाना, तुलसी उठाना। यौ॰—उठौवा चूल्हा = वह चूल्हा जिसे हम जहाँ चाहे उठा ले जायें । मुहा०—उठा धरना= बढ़ जाना। जैसे—उसने तो इस बात मे उठौवा पायखाना = वह पायखाना जिसे भंगी नित्य प्रति यो अपने वप को भी उठा घरा । उठा रखना= छोडना, बाकी । प्राय कर उठाता है। रखना । कसर छोड़ना। जैसे,—तुमने हमे तग करने के लिये उठौवा--सच्चा सौ० प्रसूता की सेवा सुश्रुपा जो दाई करती है। उठौनी । कोई बात उठा नहीं रखी । उठा ले जाना=(१) किसी वस्तु क्रि० प्र०--कमाना । को इस प्रकार लेकर चल देना कि किसी को पता ने लगे। उड्डq---वि० [सं० उद्दण्ड दे० पद्दण्ड' 1 उ०-है मन चेतनि वृद्धि चौरी से वस्तु को उठा ले जाना । चोरी करना। (२) बल हू चेतनि चित्त हू चेतनि आहि उड्डा ।—सुदर में , पूर्वक किसी वस्तु को ले जाना। भा॰ २, पृ० ६४६।। विशेष--कहीं कहीं जिम वस्तु यो विषय की सामग्री के साथ इस उडंडी --वि० [हिं० उडना ] उडनेवाला । उड़ता हुआ । ३०- क्रिया का प्रयोग होता है वहाँ उस वस्तु या विपय के करने का समरू वन व बच्चन्न दुन । न फिर तिन हुय्यन मीस पिन। आरभ सूचित होता है। जैसे–कलम उशना= लिखने के लिये अति उच उतग तुरग तुरं। घरि चप्पि गिलद उडद पुरं । तैयार होना। डड़ा उठाना = मारने के लिये तैयार होना। --पृ० १० १२ । ३५।। झोली उठाना= भीख मांगने जाने के लिये तैयार होना, उडग्गुन -सुज्ञा पुं० [सु० उड्गण) नक्षत्रलमह। उदुगन ! ३०-- इत्यादि । उ०--(क) अव विना तुम्हारे कलम उठाए न बनेगा। श्रवन विराजत स्वाति सुत करत न वनै वखान ।। मनु कमल ( ख ) जव हुमसे नही सहा गया, तब हमने ठहो उठाई । उठाव-संवा पुं० [हिं० उठना] १ उन्नन अश। उठान । २. मेहराब । पत्र अग्रज रहे । श्रोस उडग्गन ग्रान --पृ० रा०, ११५३ । के पाट के मध्यविद् और झुका के मध्यविदु कु अतर ।

  • उडियन'---संज्ञा पुं॰ [सं० उडुगण, प्रा० उडिगण] उडुगन। नक्षत्र

उठावना पुं०- क्रि० स० [सं० उत्थापन प्रा; उट्ठावण] दे॰ 'उठाना'। समूहू । तारे। उ०-- इक्क कई प्रकास तसि हो उड़ियेन तुट्टी। उठावनी--सच्चा स्त्री॰ हि० [उठाना] दे० उठानी। इक्क कहै सुरलोक तास कोई नर लुट्टी।—पृ० रा०,४ । ३ । उठेल---संज्ञा स्त्री० [हिं० ठेलना] धक्का । उ}--अरिवर सिलाही वह उडविण -संज्ञा पुं० स० उडुगण ] नक्षत्रसमूह | तारे । उ--- गिराए सक्ति की जु उठेल सो !--पद्माकर ग्र० पृ० २० । राजति राजकुअरि राय अंगरम उडीयण वीरज अवहरि ।- उठौ वि० [हिं० उठ+यौपा (प्रत्य॰)] दे॰ 'उठौवा' ।। वेलि, दू० १४ । उठौनी-- सच्चा स्त्री० [हिं० उ०+नी (प्रत्य॰)] १.उठाने की क्रिया। उड़ कू-वि० [हिं० उड़ाकू = उड+प्राकू, अंकू (प्रत्य॰)] १ उडने- ३ उठाने की मजदूरी या पुरस्कार । ३ वह रुपया जो किसी। वाला । २ उहने की योग्यता रखनेवाला। जो उड़ सके। फसल की पैदावार या और किसी वस्तु के लिये पेशगी दिया ३ चलने फिरनेवाला । डोलनेवाला। जाय । अगौहा। वैह ! दादनी । ४ वनियों या दुकानदारो उड़ त--संज्ञा पुं॰ [ हि° उड़+अंत (प्रत्य)] कुश्ती का एक पैच या के साथ उधार का लेन देन । ५ वह दक्षिणा जो पुरोहित या ढग जिसमें खिलाडी एक दूसरे की पकड को बचाने के लिये

  • ज्योतिषी को विवाह का मुहूर्त विचारेने पर दी जाती है।

इधर से उधर हुआ करते हैं। | उडवरी—संज्ञा स्त्री० [सं० उदुम्वर] एक पुराना बाजा जिसमे बेजाने पुरतं । ६.वह घन या रुपया अादि जो निम्न जातियों में वर के लिये तार लगे रहते हैं। की ओर से कन्या के घर विवाह करने से पहले उसे दृढ बनाने उड -सज्ञा पुं० [सं० उड़ दे० 'उडु' । उ॰--तुनक जु बाम चरन के लिये भेजा जाता है । लगन घरोप्रा । ७ वह रुपया पैसा यी यौ कयौ । उडि के जाय उडनि में रयौ ।-नद० ग्र०, पृ० अन्न जो संकट पहने पर किसी देवता की पूजा के उद्देश्य से । २४१ ।। अलग रखा जाय। ६ वैश्यों के यहाँ की एक रीति जो किसी उडचक-सज्ञा पुं० [हिं० उड़ना ] चोर । उचक्का । के मर जाने पर होती है। इसमें मरने के दूसरे या तीसरे दिन उड़तक-सज्ञा पुं० [हिं० उठना ] दे० 'उठतक' । विरादरी के लोग इकट्ठे होकर मृतक के परिवार के लोगो उड़ती बैठक-संज्ञा स्त्री० [हिं० उडना-वैक 1- को कुछ रुपया देते हैं और पुरुषो को पगडी बाँधते हैं । | समेटकर उठते बैठते हुए आगे बना या पीछे हटना । बैठक ६. एक रीति जो किसी के मरने के तीसरे दिन होती है । इसमे का एक भेद। मृतक की अस्यि सचिव कुरके रख दी जाती है। १० एक लकड़ी उडद-संज्ञा पुं० [हिं० उरव | दे० 'दर्द'। जिसमें जुलाई पाई की लुगदी लपेटते हैं । ११. धान के खेत उड़घf—वि० [ १० ऊध्र्व 1 ऊँचा । उ०—प्रकासे उडध न अच अतिम तत्तु विचारी --रामानद, पृ० १२ ।